पुस्तक समीक्षा: अमेरिकी इतिहासकार निको स्लेट द्वारा कमलादेवी चट्टोपाध्याय की जीवनी 'द आर्ट ऑफ फ्रीडम' उनके उस योगदान को केंद्र में लाती है जिसे इतिहास ने विस्मृत कर दिया है.
कला हो या जीवन दोनों ही बस अंततः सफल हो जाने वाले नायकों के गुणगान गाते हैं. मंज़ूर एहतेशाम की कहानी ‘तमाशा’ इसके विपरीत संघर्षों में बीत जाने वाले जीवन की कहानी है, बिना किसी परिणाम की प्राप्ति के.
एक स्वतंत्र और ख़ुद को विकसित बताने वाले देश में स्त्रियों का सुरक्षित न महसूस कर पाना हमारे लोकतंत्र और समाज की साझी असफलता है, लेकिन अपराधी को समय से सज़ा न दे पाना उससे भी बड़े ख़ौफ़ और शर्म का सबब है.
जन्मदिन विशेष: प्रेमचंद ने 'चंद्रकांता संतति' पढ़ने वाले पाठकों को 'सेवासदन' का पाठक बनाया. साहित्य समाज की अनुकृति मात्र नहीं बल्कि समाज को दिशा भी दिखा सकता है, यह प्रेमचंद से पहले कल्पना करना असंभव था.
नैयरा नूर की पैदाइश हिंदुस्तान की थी, पर आख़िरी सांसे उन्होंने पाकिस्तान में लीं. वे इन दोनों मुल्कों की साझी विरासत की उन गिनी चुनी कड़ियों में थी, जिन्हें दोनों ही देश के संगीत प्रेमियों ने तहे-दिल से प्यार दिया.
प्रायः समीक्षकों ने कुंवर नारायण को ऐसा कवि सिद्ध करना चाहा है जिनकी कविताएं बौद्धिकता और अतिवैयक्तिकता के अलावा और कुछ नहीं हैं. शमशेर जैसे कवि को भी उनकी कविताओं में ‘रस’ की कमी लगी. पर यह एकांगी दृष्टि कवि की बहुआयामी रचनाशीलता को कमतर कर के देखने की कवायद है.
पुस्तक समीक्षा: डॉ. बीआर आंबेडकर की पत्नी डॉ. सविता आंबेडकर की मूल रूप से मराठी में लिखी गई आत्मकथा का अंग्रेज़ी अनुवाद 'बाबासाहेब माई लाइफ विद डॉ. आंबेडकर' के नाम से आया है. यह किताब बाबासाहेब को विशिष्ट विद्वेता या युगांतरकारी छवि से उतारकर एक सामान्य, गृहस्थ के तौर पर सामने रखती है.
जन्मदिवस विशेष: साहित्य में स्त्री की उपस्थिति एक विचारणीय बात है. जिस प्रकार से कला-संस्कृति-समाज सब पुरुषों द्वारा परिभाषित और व्याख्यायित रहे हैं, ऐसे में स्त्री और उसकी भूमिका को भी प्राय: पुरुषों ने परिभाषित किया है. इसीलिए जब स्त्री और उसके इर्द-गिर्द निर्मित संसार को एक स्त्री अभिव्यक्त करती है तो एक अलग दृष्टि-एक अलग पाठ की निर्मिति होती है.
एक सरकारी नौकरी को पाने के लिए लाखों लाख युवा अपनी युवावस्था, अपनी उत्पादकता के सबसे चरम वर्षों को जिस पूरी यंत्रणा से गुज़ारते हैं, क्या वह वाकई ज़रूरी है?
स्मृति शेष: हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत घरानों का रिवाज़ है और गायक अपने घराने की विशिष्टता को अभिव्यक्त करते हैं, ऐसे में उस्ताद राशिद ख़ान की गायकी न केवल उनके अपने घराने की प्रतिनिधि थी, बल्कि उस पर अन्य घरानों और तहज़ीबों का भी प्रभाव था.
परवीन शाकिर की रचनाएं साहित्य में जिस स्त्री दृष्टि को लाईं, वह निस्संदेह मील का पत्थर है. पश्चिमी नारीवादी अवधारणा या उससे प्रभावित साहित्य की लोकप्रियता तो आम बात है, पर भारत-पाकिस्तान जैसे देशों की कुंठित सामाजिकता और पितृवादी संस्कृति में जब स्त्रियां अपनी अनुभूतियां दर्ज करती हैं, तो वह निज को राजनीतिक बना देने का काम करता है.
किसी साहित्यिक रचना के पुनर्पाठ की प्रक्रिया उस शीशे को मांजने की तरह होती है, जिसकी चमक बार-बार रगड़ने से निखरती है. विनोद कुमार शुक्ल का उपन्यास 'दीवार में एक खिड़की रहती थी' इस दृष्टिकोण से ऐसी ही रचना है, जिसके पुनर्पाठों में ही कई-कई अर्थ-छवियां स्पष्ट होते हैं.
आज की संवेदनशीलता में प्रेमचंद के साहित्य में वर्णित स्त्रियां निश्चित रूप से परंपरा या पितृसत्ता के हाथों अपने अस्तित्व को मिटाती हुई नज़र आएंगी, पर उनके कथ्य को ऐतिहासिक गतिशीलता में रखकर देखें, तो नज़र आता है कि ये स्त्रियां अपने समय की परिधि, अपनी भूमिका को विस्तृत करती हैं, ऐसे समय में जब ये परिधियां अत्यंत संकरी थीं.
देश के महाविद्यालयों, कॉलेजों में पढ़ाने का क्या एकमात्र रास्ता जुगाड़ रह गया है?
बनारस संस्कृति की आदिम लय का शहर है. जब मार्क ट्वेन कहते हैं कि 'बनारस इज़ ओल्डर दैन द हिस्ट्री' यानी ये शहर इतिहास से भी पुराना है तब वाकई लगता है कि सौ साल से भी अधिक समय पहले लिखी उनकी यह बात आज भी इस शहर के चरित्र पर सटीक बैठती है.