अमेरिकी पत्रकार व लेखक विंसेंट शीन की महात्मा गांधी से मुलाकात और गणतंत्र दिवस पर इतिहासकार सुधीर चंद्रा से प्रो. अपूर्वानंद की बातचीत.
दिल्ली पुलिस ने 2016 में दर्ज राजद्रोह के मामले में जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष कन्हैया कुमार तथा अन्य के ख़िलाफ़ आरोप-पत्र दाख़िल किया है. इस मुद्दे पर अपूर्वानंद का नज़रिया.
राजतंत्र हम सबको इतना मूर्ख समझ रहा है कि हम विश्वास कर लेंगे कि सामाजिक कार्यकर्ता इस देश में हिंसा की साज़िश कर रहे हैं. यह कहने वाले वे हैं जो दिन-रात मुसलमानों, ईसाईयों और सताए जा रहे लोगों के हक़ में काम करने वालों को शहरी माओवादी कहकर नफ़रत और हिंसा भड़काते रहते हैं.
केंद्र सरकार द्वारा आर्थिक रूप से पिछड़े सामान्य वर्ग को 10% आरक्षण देने पर दिल्ली यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर सतीश देशपांडे से चर्चा कर रहे हैं अपूर्वानंद.
क्या सत्ता के चरित्र में ही कुछ ऐसा है कि वह आपको अधर्म की ओर ले जाती है? वो भूपेश बघेल जो एसआरपी कल्लूरी को जेल भेजना चाहते थे, वही उन्हें अब महत्वपूर्ण पद सौंप रहे हैं. बघेल कह सकते हैं कि तब वे विपक्ष में थे और उसका कर्तव्य निभा रहे थे और अब उनकी मुख्यमंत्री की कुर्सी उनसे यह काम करवा रही है.
दिल्ली हाईकोर्ट ने 1984 के सिख विरोधी दंगों में 34 साल बाद कांग्रेस के नेता सज्जन कुमार को उम्रक़ैद की सज़ा सुनाई है. इस विषय पर अपूर्वानंद की पहली मास्टरक्लास.
कांग्रेस ने धर्मनिरपेक्षता का नाम लेना छोड़ दिया है. वह विचार जो उस पार्टी का विशेष योगदान था, भारत को ही नहीं, पूरी दुनिया को, उसमें उसे इतना विश्वास नहीं रह गया है कि चुनाव के वक़्त उसका उच्चारण भी किया जा सके.
नेमेथ लास्लो की अचूक नैतिकता गांधी के संदेश के मर्म को पकड़ लेती है, 'सत्याग्रह-सत्य में निष्ठा-का अर्थ है राजनीति का संचालन स्वार्थ या हित साधन से नहीं, बल्कि सत्य से प्रेम के द्वारा हो.'
तिरंगा लेकर आप कांवर यात्रा में चल सकते हैं. गणेश विसर्जन में भी उसे लहरा सकते हैं. भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन में विशाल डंडों में बांधकर मोटरसाइकिल पर दौड़ा सकते हैं. तिरंगे से आप मुसलमानों के ख़िलाफ़ हिंसा करने वालों के शव ढंक सकते हैं, लेकिन उससे आप अपनी बेपर्दगी ढंक नहीं सकते!
शिक्षकों के साथ अपमानजनक व्यवहार कोई नई बात नहीं. पिछले चार सालों में केंद्र सरकार ने भारत के संघीय ढांचे को धता बताते हुए जिस तरह शिक्षक दिवस को हड़प लिया है ताकि उसके ज़रिए प्रधानमंत्री की छवि निखारी जा सके, उसे याद कर लेना काफ़ी है.
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय शिक्षक संघ (जेएनयूटीए) ने सात अगस्त को कुलपति प्रो. एम. जगदीश कुमार को पद से हटाने और उच्च शिक्षा निधि प्राधिकरण से ऋण लेने के ख़िलाफ़ जनमत संग्रह कराने का फैसला किया है.
प्रेमचंद की प्रासंगिकता का सवाल बेमानी जान पड़ता है, लेकिन हर दौर में उठता रहा है. अक्सर कहा जाता है कि अब भी भारत में किसान मर रहे हैं, शोषण है, इसलिए प्रेमचंद प्रासंगिक हैं. प्रेमचंद शायद ऐसी प्रासंगिकता अपनी मृत्यु के 80 साल बाद न चाहते.
यशपाल सक्सेना, अकरम हबीब और मौलाना रशीदी ने बदले की कार्रवाई के बजाय इंसाफ़ को तरजीह दी है.
बुरक़ा और टोपी को मुसलमानों की प्रगति की राह में रोड़ा बताने वालों को अपने पूर्वाग्रहों के परदे हटाने की ज़रूरत है.
शोर के इस दौर में समझदार, ख़ामोश लेकिन नीलाभ जैसी दृढ़ आवाज़ का शांत हो जाना बड़ा अभाव है लेकिन जीवन में आनंद लेने और उसे स्वीकार करने वाले मित्र का न रहना जो शिकायती न हो, ज़्यादा बड़ा नुकसान है.