कश्मीर मसले के हल के लिए भारत सरकार द्वारा वार्ताकार नियुक्त करने पर दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर अपूर्वानंद का नज़रिया.
हिंदू धर्म आज तक अगर प्राणवान रहा है तो राजाओं, अदालतों और पुलिस या लठैतों के बल पर नहीं. उसकी प्राणवत्ता परस्पर विरोधी स्वरों को सुनने और बोलने देने की उसकी तत्परता में रही है. उसे किसी मध्यस्थ की आवश्यकता नहीं.
‘जुमला जयंती पर आनंदित, पुलकित, रोमांचित वैशाखनंदन’ वाक्य में व्यंग्य अवश्य है, घृणा कतई नहीं.
जनता को नहीं पता होता कि उसके साथ सत्ता क्या कर रही है. ऐसे मेें ख़तरा उनसे होता है जो जनता से उनकी भाषा में सत्ता का सच बताते हैं. इसलिए उन्हें ख़ामोश करने की कोशिश की जाती है.
व्यक्ति कुछ मौलिक अधिकारों से संपन्न है. संविधान इन अधिकारों की निशानदेही कर राज्य को बताता है कि वह व्यक्ति के जीवन में कहां हस्तक्षेप नहीं कर सकता.
धृतराष्ट्र आलिंगन लोकबुद्धि के सबसे दिलचस्प शब्दों में से एक है. शक्तिशाली जब सम्मुख हो तो उसके प्रत्येक प्रस्ताव की ठीक से जांच किए बिना उसे ग्रहण करना ख़ुद को जोख़िम में डालना है.
11 अगस्त को झारखंड के अधिकतर हिंदी अख़बारों में छपे एक सरकारी विज्ञापन में गांधी के नाम से धर्मांतरण के संबंध में वो बातें लिखी गईं, जो उन्होंने कभी कही ही नहीं थीं.
जब भारत में मुसलमान कहेंगे कि वे सुरक्षित अनुभव कर रहे हैं तब ही माना जाएगा कि वे सुरक्षित हैं.
प्रेमचंद लिखते हैं, ‘राष्ट्रीयता वर्तमान युग का कोढ़ है, उसी तरह जैसे मध्यकालीन युग का कोढ़ सांप्रदायिकता थी.’
आप पर भ्रष्टाचार का गंभीर आरोप है. हो सकता है क़ानूनी लड़ाई में वह आरोप ग़लत सिद्ध हो लेकिन अभी छवि-युद्ध में आपकी पीठ दीवार से लगी है.
2017 की ढलती जून की इस सुबह ईद मुबारक कहना झूठी तसल्ली जान पड़ती है, एक झूठा आश्वासन, सच्चाई से आंख चुराना! सच यह है कि यह ईद मुबारक नहीं है.
इसके पहले किसी जनरल या सैन्य अधिकारी के प्रेस कांफ्रेंस की कोई मिसाल हमें याद नहीं. पाकिस्तानी सेना के आत्मसमर्पण के समय भी नहीं.
ये लोग नारा लगाते हैं जय जवान जय किसान! ज़्यादातर जवान किसान के ही बच्चे हैं. किसानों पर गोली चलाकर, आप सिर्फ़ सैनिकों के सहारे अपनी देशभक्ति प्रमाणित नहीं कर सकते.
मुस्लिमों को यह कहना होगा कि वे यहां हैं और यहीं रहेंगे. उन्हें यह कहना होगा कि किसी को भी उन्हें इस देश को छोड़ कर जाने के लिए कहने का हक़ नहीं है. उन्हें यह कहना होगा कि वे यहां अपने मुस्लिमपन के साथ वैसे ही रहेंगे जैसे हिंदू अपने हिंदूपन के साथ रहते हैं.
मोदी के हर क़दम ने हमें अचंभित किया है. यहां तक कि जब वे ज़हर उगलते रहे, तब भी हमारी प्रतिक्रिया ऐसी ही रही. योगी की ताजपोशी उनकी नयी पेशकश है. जो किया जा चुका है उसमें ख़ूबी तलाशना ही अब हमारा कर्तव्य रह गया है.