वीडियो: क्या यूट्यूब ने पत्रकारिता का स्वरूप बदला है, यूट्यूबर्स के आने से पत्रकारों की चुनौतियां बढ़ी हैं. इस विषय में मीडिया विश्लेषक और लेखक विनीत कुमार के साथ चर्चा कर रहे हैं द वायर हिंदी के संपादक आशुतोष भारद्वाज.
अयोध्या की सभा असत्य और अधर्म की नींव पर निर्मित हुई है, क्योंकि जिसे इसके दरबारीगण सत्य की विजय कहते हैं, वह दरअसल छल और बल से उपजी है. अदालत के निर्णय का हवाला देते हुए ये दरबारी भूल जाते हैं कि इसी अदालत ने छह दिसंबर के अयोध्या-कांड को अपराध क़रार दिया था.
वीडियो: अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव में रिपब्लिकन उम्मीदवार डोनाल्ड ट्रंप की जीत वैश्विक परिदृश्य पर क्या प्रभाव डालेगी, और अमेरिका की राजनीति और समाज पर ट्रंप की वापसी का क्या असर पड़ेगा, इस बारे में बता रहे हैं द वायर हिंदी के संपादक आशुतोष भारद्वाज.
वीडियो: इतिहासकार रामचंद्र गुहा की नई किताब 'स्पीकिंग विद नेचर' भारतीय पर्यावरणवाद के आरंभिक इतिहास को दर्ज करती है. द वायर हिंदी के संपादक आशुतोष भारद्वाज ने इस किताब को लेकर उनसे बातचीत की.
पिछले बरस जून में कनाडा में ख़ालिस्तानी नेता हरदीप सिंह निज्जर की हत्या हुई थी. यह उस वक़्त हुई अकेली ऐसी घटना नहीं थी. 45 दिनों के अंतराल में तीन अलग-अलग देशों में तीन ख़ालिस्तानी नेताओं की मौत हुई थी. इस दौरान, भारतीय दक्षिणपंथ ने इन हत्याओं का जश्न मनाना शुरू कर दिया था.
भारत ने हाल ही में घोषणा की है कि उसने चीन के साथ सीमा विवाद सुलझा लिया है. क्या भारत अब 2020 में खोए क्षेत्र को फिर से हासिल कर पाएगा? इस समझौते पर द वायर हिंदी के संपादक आशुतोष भारद्वाज की वरिष्ठ पत्रकार मनोज जोशी के साथ बातचीत.
पिछली बार भाजपा ने जिन पार्टियों के साथ मिलकर सरकार बनाई थी- 2014 में कश्मीर की पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) और 2019 में हरियाणा की जननायक जनता पार्टी- इस चुनाव में उन दोनों का सफाया हो गया है.
वीडियो: इतिहासकार रामचंद्र गुहा की हालिया किताब 'द कुकिंग ऑफ बुक्स' और उनके विलक्षण संपादक रुकुन आडवाणी के बारे में द वायर हिंदी के संपादक आशुतोष भारद्वाज के साथ उनका संवाद.
वीडियो: इतिहासकार और प्रिंसटन यूनिवर्सिटी के अध्यापक ज्ञान प्रकाश की किताब 'इमरजेंसी क्रॉनिकल्स' का हिंदी संस्करण 'आपातकाल आख्यान' नाम से प्रकाशित हुआ है. इस किताब के मद्देनज़र भारतीय लोकतंत्र के काले अध्याय और बहुसंख्यक शासन पर नियंत्रण और संतुलन को लेकर उनसे द वायर हिंदी के संपादक आशुतोष भारद्वाज की बातचीत.
हालिया सालों में कई दक्षिण एशियाई देशों में हिंसक तरीके से सरकारें गिराई गई हैं. अपने पड़ोस में भारत की कूटनीतिक विफलताएं क्या रहीं? क्या भारत कुछ अलग कर सकता था? इस बारे स्वतंत्र पत्रकार और विदेश मामलों की विशेषज्ञ निरुपमा सुब्रमण्यम से द वायर हिंदी के संपादक आशुतोष भारद्वाज की बातचीत.
वीडियो: देश के अग्रणी विचारकों में से एक आशीष नंदी का मानना है कि उनके जैसे लोग 2014 के चुनावों के परिणामों का अनुमान नहीं लगा पाए थे. द वायर हिंदी के संपादक आशुतोष भारद्वाज के साथ बातचीत में उन्होंने नरेंद्र मोदी, गोपाल गोडसे और मदनलाल पाहवा के साथ अपने प्रसिद्ध साक्षात्कारों को याद किया.
कश्मीर का भारत में विलय सामाजिक-सांस्कृतिक प्रक्रिया है, जिसे दैनिक स्तर पर अंजाम दिए बगैर काम नहीं चलेगा.
दक्षिणपंथी कश्मीर को मुस्लिम आक्रांता की भूमि घोषित कर इसका भारत से अलगाव गहरा कर रहे हैं. पिछले पांच वर्षों में कश्मीर की भारत से खाई बढ़ गई है.
अगस्त 2019 में दावे किए जा रहे थे कि बहुत जल्द पंडित लौटकर कश्मीर आ जाएंगे, बाकी हिंदुस्तानी भी पहलगाम और सोनमर्ग में ज़मीन ख़रीद सकेंगे. लेकिन हालात ऐसे बिगड़े कि घाटी में बचे रह गए पंडित भी अपना घर छोड़कर जाना चाह रहे हैं.
कश्मीर में इस वक्त दो भावनाएं साथ बहती हैं: गहरा आक्रोश व अपमान, और घनघोर निराशा कि यह स्थिति अपरिवर्तनीय है. न पाकिस्तान आज़ादी दिला सकता है, न केंद्र की कोई आगामी सरकार 5 अगस्त से पहले की स्थिति बहाल कर पाएगी.