गुलज़ार देहलवी साहब का जाना उस आख़िरी क़िस्सागो का जाना है, जिसकी कहानियों में दिल्ली की तहज़ीब और ज़बान सांस लेती थी.
तबलीग़ी जमात की आलोचना सही है, लेकिन ज़रूरी है कि उनके इतिहास को पढ़ा जाए और सोच समझकर उनके बारे में कोई राय बनाई जाए.
वीडियो: युवा कथाकार अणुशक्ति सिंह का पहला उपन्यास ‘शर्मिष्ठा' बीते दिनों आया है. इस उपन्यास के मद्देनज़र उनसे मिथकीय और पौराणिक चरित्रों में स्त्री की मौजूदगी, सिंगल मांओं के संघर्ष, स्त्री-पुरुष के कथित वैध और अवैध प्रेम समेत विभिन्न विषयों पर फ़ैयाज़ अहमद वजीह की बातचीत.
वीडियो: भारत के दलित मुसलमान किताब के लेखक मोहम्मद अयुब राईन से फ़ैयाज़ अहमद वजीह की बातचीत.
वीडियो: दिल्ली के शाहीन बाग़ में नागरिकता संशोधन क़ानून और एनआरसी को लेकर चल रहे विरोध प्रदर्शन में शामिल 'चुप्पी तोड़ो' समूह के शारिक़ हुसैन और शाएक़ा शौकत ने बॉलीवुड के गीतों के साथ प्रतिरोध के शब्द मिलाकर कुछ गीत तैयार किए हैं. उनसे फ़ैयाज़ अहमद वजीह की बातचीत.
जो लोग ‘हम देखेंगे’ को हिंदू विरोधी कह रहे हैं, वो ईश्वर की पूजा करने वाले 'बुत-परस्त' नहीं, सियासत को पूजने वाले ‘बुत-परस्त’ हैं.
बीते दिनों आईसीएसई ने प्रसिद्ध कहानीकार कृश्न चंदर की कहानी ‘जामुन का पेड़’ को दसवीं कक्षा के पाठ्यक्रम से हटा दिया था. उनकी लेखनी और ज़िंदगी की महत्वपूर्ण घटनाओं के बारे में उनके भतीजे पवन चोपड़ा से द वायर के फ़ैयाज़ अहमद वजीह की बातचीत.
बेपनाह प्रेम के एहसास में हर तरह के अभाव से लड़ते हुए जीवन की जद्दोजहद से कभी हौसला न हारने वाली शौकत कैफ़ी की पूरी ज़िंदगी एक इंक़लाबी किताब है. असीमित उड़ान के सपने देखने वालों के लिए वे ख़ुद एक संस्मरण हैं.
मुल्क की सियासत अब ज़्यादा शिद्दत से पहचान की राजनीति के गिर्द नाच रही है. राम को इमाम-ए-हिंद कहने वाले इक़बाल की दुआ को मदरसे की दुआ कहकर सीमित किया जा रहा है, लेकिन देश के बच्चे शायद इक़बाल की दुआ के सबक़ के माने समझ रहे हैं.
ख़य्याम ने जितनी फिल्मों के लिए काम किया उससे कहीं ज़्यादा फिल्मों को मना किया. एक-एक गाने के लिए वो अपनी दुनिया में यूं डूबे कि जब ‘रज़िया सुल्तान’ की धुन बनाई तो समकालीन इतिहास में तुर्कों को ढूंढा और और ‘उमराव जान’ के लिए उसकी दुनिया में जाकर अपने साज़ को आवाज़ दी.
अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के इस्लामिक यूथ फेडरेशन ने एक तस्वीर जारी की है, जिसमें औरतों को इस्लाम के पिंजरे में क़ैद पंछी की शक्ल दी गई. बताया गया कि ये पिंजरा ही वो महफ़ूज़ जगह है, जहां औरतें न सिर्फ़ नेकियां कमा सकती हैं बल्कि तमाम 'ज़हरीली' विचारधाराओं से बची रह सकती हैं.
जलियांवाला बाग़ नरसंहार ने मंटो को बदल दिया था. मंटो तब सात साल के थे, जब बाग़ का ख़ूनी दृश्य देखा और उसको कहीं अपने भीतर महसूस किया. बचपन की ये कैफ़ियत उनके परिपक्व होने तक भी नहीं निकल पाई. इसके बहुत बाद में जब वे अपने साहित्यिक जीवन की पहली कहानी ‘तमाशा’ लिख रहे थे, तब शायद उसी यातना से गुज़र रहे थे.
मानव संसाधन और विकास मंत्रालय के अंतर्गत आने वाले राष्ट्रीय उर्दू भाषा विकास परिषद ने उर्दू के प्रमोशन के लिए बॉलीवुड के कलाकारों से प्रचार करवाने की बात कही. हालांकि बजट से मालामाल परिषद पर अक्सर यह इल्ज़ाम लगता रहा है कि हाल के सालों में इसने उर्दू भाषा के विकास में कोई अहम रोल अदा नहीं किया.
क़ादिर ख़ान हिंदी सिनेमा में उस पीढ़ी के आख़िरी लेखक थे, जिन्हें आम लोगों की भाषा और साहित्य की अहमियत का एहसास था. उनकी लिखी फिल्मों को देखते हुए दर्शकों को यह पता भी नहीं चलता था कि इस सहज संवाद में उन्होंने ग़ालिब जैसे शायर की मदद ली और स्क्रीनप्ले में यथार्थ के साथ शायरी वाली कल्पना का भी ख़याल रखा.
वीडियो: ‘लाइफ ऑफ पाई’, ‘ज़ेड प्लस’, ‘इंग्लिश विंग्लिश’, ‘इश्क़िया’, ‘मुक्ति भवन’ और ‘ह्वॉट विल पीपल से’ जैसी फिल्मों में काम कर चुके अभिनेता आदिल हुसैन के साथ फ़ैयाज़ अहमद वजीह की बातचीत.