दक्षिण कश्मीर के अनंतनाग ज़िले में शनिवार को अज्ञात लोगों ने मट्टन इलाके में पहाड़ पर स्थित माता बरघशिखा भगवती मंदिर में तोड़-फोड़ की. यह घटना ऐसे समय में हुई है, जब केंद्र सरकार 1990 के दशक के शुरुआत में घाटी छोड़कर गए कश्मीरी पंडितों के पुनर्वास को लेकर क़दम उठा रही है.
जम्मू कश्मीर के सामान्य प्रशासन विभाग द्वारा 15 सितंबर को जारी किए गए इन नए नियमों से जम्मू कश्मीर के छह लाख सरकारी कर्मचारियों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता गंभीर रूप से प्रभावित हो सकती है. कार्यकर्ताओं का कहना है कि यूएपीए और पीएसए का इस्तेमाल असंतोष को दबाने के लिए किया जा रहा है.
पुलिस द्वारा यह कार्रवाई कठोर यूएपीए क़ानून के तहत पिछले साल दर्ज एक मामले को लेकर की गई है, जो कश्मीर के पत्रकारों व कार्यकर्ताओं को जान से मारने की धमकी से जुड़ा हुआ है.
अलगावादी नेता सैयद अली शाह गिलानी के परिवार का कहना है कि पहले जम्मू कश्मीर पुलिस इस बात पर सहमत हुई थी कि उनके परिजन उन्हें दफ़नाने के इंतज़ाम कर सकेंगे, लेकिन बाद में पुलिसकर्मी उनका शव लेकर चले गए.
बीते दिनों जम्मू कश्मीर पुलिस द्वारा एक मुठभेड़ में इमरान क़यूम नाम के शख़्स को आतंकवादी बताते हुए मार गिराने के बाद उनको दफ़ना दिया गया. इमरान के परिवार ने पुलिस के दावों का खंडन करते हुए कहा है कि यह फ़र्ज़ी एनकाउंटर था. उन्होंने मामले की जांच के लिए उपराज्यपाल और वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को पत्र भी लिखा है.
केंद्र शासित जम्मू कश्मीर प्रशासन ने 'राज्य की सुरक्षा' के ख़िलाफ़ संदिग्ध गतिविधियों वाले सरकारी कर्मचारियों के मामलों की जांच के लिए एक विशेष टास्क फोर्स का गठन किया है. संविधान के अनुच्छेद 311 (2)(सी) के अंतर्गत पारित इस आदेश के तहत सरकार को हक़ है कि वो बिना जांच समिति का गठन किए किसी भी कर्मचारी को बर्ख़ास्त कर दे.
श्रीनगर के बाहरी इलाके लवायपोरा में 29-30 दिसंबर को एक कथित मुठभेड़ में तीन संदिग्ध आतंकियों का मार गिराया गया था, जिसमें से एक 16 साल का किशोर था. यह इस तरह की दूसरी घटना है, जिसमें मुठभेड़ में मारे गए कथित आतंकी के परिजन के ख़िलाफ़ पुलिस ने यूएपीए के तहत मामला दर्ज किया है.
जम्मू कश्मीर पुलिस ने लोगों से ‘साइबर क्राइम वालंटियर’ बनने की अपील की है, जो ऑनलाइन उपलब्ध ग़ैर क़ानूनी बातें जैसे चाइल्ड पोर्नोग्राफी, आतंकवाद, कट्टरता, राष्ट्रविरोध आदि के बारे में सरकार को बताएंगे. कार्यकर्ताओं का कहना है कि इसे सत्ता के ख़िलाफ़ बोलने वालों के विरुद्ध इस्तेमाल किया जा सकता है.