भाजपा नहीं चाहती कि लोग समझें कि अयोध्या में राम मंदिर सर्वोच्च न्यायालय द्वारा इस ज़मीन से जुड़े विवाद के निपटारे के फलस्वरूप बन रहा है. वह समझाना चाहती है कि भाजपा, उसकी सरकारों और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ व उसके आनुषंगिक संगठनों ने जी-जान न लगा रखी होती, तो उसका बनना संभव नहीं होता.
जाति, धर्म, पैसे व पहुंच के आधार पर बरते जा रहे भेदभाव नागरिकों के एक समूह को निरंतर अमर्यादित शक्ति से संपन्न और उद्दंड बनाते जा रहे हैं, जबकि दूसरे विशाल समुदाय को लगातार निर्बल, असमर्थ और सब कुछ सहने को अभिशप्त. यह दूसरा समुदाय बार-बार सरकारें बदलकर भी अपनी नियति नहीं बदल पा रहा है.
पुण्यतिथि विशेष: वाराणसी की कोलअसला विधानसभा क्षेत्र से नौ बार विधायक रहे भाकपा नेता ऊदल को बंगले या मंत्री पद के आकर्षण कभी बांधकर नहीं रख सके. स्वतंत्रता सेनानियों के लिए सम्मान पेंशन शुरू हुई तो उन्होंने यह कहकर मना कर दिया कि 'यह जेल जाने, वहां यातनाएं सहने वालों के लिए है. मैं तो कभी गोरी पुलिस के हाथ लगा ही नहीं.'
1856 में ईस्ट इंडिया कंपनी के अवध के नवाब वाजिद अली शाह को जबरन अपदस्थ कर निर्वासित किए जाने के बाद उनकी मां एक शिष्टमंडल के साथ ब्रिटेन की क्वीन विक्टोरिया से मिलने लंदन गई थीं. लेकिन विक्टोरिया ने मदद तो दूर, दस महीनों तक उनसे भेंट करना गवारा नहीं किया.
इंदिरा गांधी यदि नरेंद्र मोदी की तरह बिना आपातकाल वैसे हालात पैदाकर लोकतांत्रिक व संवैधानिक संस्थाओं के क्षरण को अंजाम दे सकतीं, तो भला आपातकाल का ऐलान क्यों करातीं?
यह निर्णायक बात कि इस बहुभाषी-बहुधर्मी देश में सुलह, समन्वय, सामंजस्य और शांति के अलावा दूसरा रास्ता नहीं है, अकबर के वक़्त यानी सोलहवीं शताब्दी में ही समझ ली गई थी, उसे आज क्यों नहीं समझा जा सकता?
अयोध्या में एक तरफ राम मंदिर के उद्घाटन की तारीख़ तय हो रही है, वहीं, धन्नीपुर में मिली वैकल्पिक ज़मीन पर प्रस्तावित 'मस्जिद-ए-अयोध्या' की बस नींव रखी जा सकी है. मस्जिद निर्माण का ज़िम्मा संभाल रहा इंडो इस्लामिक कल्चरल फाउंडेशन नक़्शा पास कराने की जद्दोज़हद और धन की कमी से जूझ रहा है.
इंदौर में हिंदी माध्यम से पढ़ाई करके आई एक इंजीनियरिंग छात्रा ने भाषा को लेकर मज़ाक उड़ाए जाने से क्षुब्ध होकर आत्महत्या कर ली. क्या इससे समझा जा सकता है कि छात्र अपनी मातृभाषा में ही ‘अपना सर्वश्रेष्ठ’ दे सकते हैं और उन पर शिक्षा का गैर-मातृभाषा माध्यम थोपकर कितनी प्रतिभाओं का संहार कर दिया जा रहा है!
बनारस का ज़िक्र इसकी सुबहों के बिना अधूरा है. जहां शाम-ए-अवध इतिहास के उतार-चढ़ावों के बीच कई बार बदलने को मजबूर हुई, सुबह-ए-बनारस जाने कितनी सदियों से वैसी ही है. सूरज की पहली किरण गंगा को छूती हुई घाटों का स्पर्श करती है तो वे सोने के लगने लगते हैं और चिड़ियों की चहचहाहट सुहागे का काम करती है.
पहलवानों के यौन उत्पीड़न के आरोपों का सामना कर रहे भाजपा सांसद बृजभूषण शरण सिंह के समर्थन में अयोध्या के 'संतों' का एक समूह मुखर है और आरोप लगाने वाली महिलाओं का विरोध कर रहा है. साथ ही पॉक्सो क़ानून को 'दोषपूर्ण' बताते हुए इसमें बदलाव की मांग भी उठा रहा है.
बीते दिनों सज़ायाफ़्ता गैंगस्टर मुख़्तार अंसारी ने यूपी की एक स्थानीय अदालत में अर्ज़ी देकर कहा कि मीडिया को उनके नाम के साथ 'बाहुबली' और 'डॉन' जैसे शब्द न इस्तेमाल करने के निर्देश दिए जाएं. लेकिन क्या आप जानते हैं कि आम बोलचाल और क़ानून में यह शब्द कैसे पहुंचे?
स्मृति शेष: वरिष्ठ पत्रकार शीतला सिंह नहीं रहे. पत्रकारिता में सात दशकों की सक्रियता में उन्होंने देश-विदेश में अजातशत्रु की-सी छवि व शोहरत पाई और अपनी पत्रकारिता को इतना वस्तुनिष्ठ रखा कि उनके दिए तथ्यों की पवित्रता पर उनके विरोधी मत वाले भी संदेह नहीं जताते थे.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जिस तरह कर्नाटक विधानसभा चुनाव को अपनी प्रतिष्ठा से जोड़कर समूचे प्रचार में अपने पद की गरिमा तक से समझौता किए रखा और मतदाताओं ने जिस तरह उनकी बातों की अनसुनी की, उसका साफ़ संदेश है कि भाजपा के ‘मोदी नाम केवलम्’ वाले सुनहरे दिन बीत गए हैं.
पुण्यतिथि विशेष: ‘मुकम्मल आज़ादी’ और ‘इंक़लाब जिंदाबाद’ का नारा बुलंद करने वाले हसरत मोहानी के बारे में डाॅ. आंबेडकर कहते थे कि वही एकमात्र ऐसे नेता हैं जो समानता का ढोंग करने के बजाय अपने हर आचरण में उसे बरतते हैं.
अवध की बलरामपुर रियासत गंगा-जमुनी तहज़ीब का पूर्वी द्वार कही जाती थी. 1997 में कुछ क्षेत्रों को मिलाकर इसे ज़िला बनाया गया तो रहवासियों ने विकास के सपने देखे. पर अब हाल यह है कि 2021 में नीति आयोग द्वारा जारी राष्ट्रीय बहुआयामी गरीबी सूचकांक में यह देश का सबसे बुरा प्रदर्शन करने वाला चौथा ज़िला रहा.