हमारे समाज का पतन हो गया है. उन्मादपूर्ण भीड़ द्वारा निर्दोष व्यक्ति की हत्या, घर वापसी, एंटी-रोमियो दल, निरंकुश गौरक्षा दल और देश के प्रधानमंत्री और उनके अनुयायियों द्वारा मुसलमानों के लिए घृणा फैलाने के लिए बयानबाज़ी, ये सब समाज की दिनचर्या का हिस्सा बन चुके हैं.
आज जब लोकतंत्र का अस्तित्व संकट में है, तब भी छोटे राजनीतिक कद लेकिन विराट अहंकारी विपक्षी नेता आपसी सहमति और एकजुटता से चुनाव लड़ने को इच्छुक नहीं हैं.