सरकार के अर्थव्यवस्था व विकास के ढांचे में सामूहिक समाज तो है ही नहीं. वह उसके हिस्सों को अलग-अलग कर उठाती है और विकास के अपने खाकों में इस तरह से फिट करती है कि उसके अपने व कॉरपोरेट जगत के राजनीतिक व आर्थिक स्वार्थ सधते रहें.
डाकुओं के लिए कुख्यात चंबल क्षेत्र के कई डाकुओं ने नागरिक समाज संगठन तरुण भारत संघ की मदद और प्रोत्साहन के बाद हिंसा, लूटपाट और बंदूकें छोड़कर जल संकट से जूझ रहे इस इलाके में पानी के संरक्षण का बीड़ा उठाया है. विश्व जल शांति दिवस के मौक़े पर इनमें से कइयों को सम्मानित भी किया गया.
लोकसभा व विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत सीटें आरक्षित करने वाला बिल सोच और ड्राफ्ट के स्तर पर न भाजपा का है न कांग्रेस का, बल्कि विशुद्ध रूप से महिला संगठनों का है. लेकिन विडंबना ही है कि प्रधानमंत्री द्वारा लाए गए बिल में महिला संगठनों की भूमिका का प्रस्तावना तक में कोई ज़िक्र तक नहीं है.
भारत के इतिहास में नोआखली की हिंसा और महात्मा गांधी द्वारा वहां रहकर शांति का क़ायम किया जाना दोनों ही उल्लेखनीय हैं. अगर वास्तव में ही मणिपुर में शांति स्थापित करनी है, तो वहां किसी महात्मा गांधी को जाना होगा.
मूर्तियों का गिराया जाना महज़ किसी पत्थर की निर्जीव प्रतिमा को ख़त्म किया जाना नहीं है. वह उस विचार, उस मूल्य को ज़मींदोज करने की कोशिश है, जिसका प्रतिनिधित्व वह प्रतिमा करती थी.
अमृतसर के गोबिंदगढ़ क़िले में इतिहास की निशानियां सुरक्षित रहनी चाहिए, लेकिन पुरातात्विक विभाग को इमारत का ज़िम्मा देने के बजाय पंजाब सरकार ने बॉलीवुड अभिनेत्री दीपा साही को इसे वर्चुअल रियलिटी थीम पार्क में बदलने की ज़िम्मेदारी सौंपी है.