कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: हिंदी राज्यों में अपनी सांस्कृतिक संस्थाओं को नष्ट करने की लंबी परंपरा है. भारत भवन भी कोई अपवाद नहीं है.
बतौर एक युवा अधिकारी मैं चाहता था कि सरकारी राशि से बनते ग्रामीण घरों का निर्माण नए नक्शों के अनुसार हो, लेकिन प्रत्येक सपना कहां सच हो पाता है. बंगनामा स्तंभ की बारहवीं क़िस्त.
धीरेंद्र के. झा की 'गोलवलकर: द मिथ बिहाइंड द मैन, द मैन बिहाइंड द मशीन' साफ़ करती है कि सावरकर के साथ एमएस गोलवलकर को भारतीय फ़ासिज़्म का जनक कहा जा सकता है. इसे पढ़कर हम यह सोचने को बाध्य होते हैं कि क्यों फ़ासिज़्म के इस रूप के प्रति भारत के हिंदुओं में सहिष्णुता है.
पुस्तक अंश: 'फ़िलिस्तीन के लोगों के व्यवहार से लगता है कि उन्हें लोगों से मुहब्बत करना आता है. मैंने देखा कि कितनी छोटी-छोटी चीज़ों का वे ध्यान रखते थे. पूरे मिडिल-ईस्ट में बहुत मुहब्बत है, और बेपनाह मुहब्बत है हिंदुस्तान के लिए.'
कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: कृष्ण कुमार की ‘थैंक यू गांधी’ कई बार संस्मरणात्मक लगते हुए भी आज के भारत के बारे में है. उसमें कथा, कथा-इतर गद्य, स्मृतियां, आत्मवृतांत, विचार-विश्लेषण आदि सबका रसायन बन गया है और उनमें पाठक की आवाजाही सहज ढंग से होती चलती है.
पुस्तक अंश: चुनावी राजनीति में विरोधी नेता का मज़ाक बनाना कोई नई चीज़ नहीं है. लेकिन पिछले एक दशक में यह काम संगठित ढंग से भारी पैमाने पर किया जाने लगा है. अगर इसे और अच्छी तरह से समझना है तो कांग्रेस नेता राहुल गांधी के 'पप्पू' बनने की पूरी प्रक्रिया को देखना होगा.
‘हान’ दक्षिण कोरियाई भाषा का एक प्रतिनिधि शब्द है. यह उन तमाम संवेदनाओं को प्रतिबिंबित करता है जिन्हें कोरिया अपनी पहचान का प्रतीक मानता है.
पुस्तक अंश: यह किताब काफ़्का के जीवन की हर महत्वपूर्ण घटना को उसके अथक रचनाकर्म के साथ जोड़कर देखती है और एक तटस्थ, पैनी निगाह के साथ उसके लेखन के मर्म को थामकर पाठक के सामने धर देती है.
कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: इस समय गांधी सच्चे प्रतिरोध, प्रगतिशीलता, अध्यात्म और सच-प्रेम-सद्भाव-न्याय पर आधारित राजनीति के सबसे उजले प्रतीक हैं. उनकी मूल्यदृष्टि को पुनर्नवा कर भारत की बहुलता, उसकी आत्मा और अंतःकरण बचाए जा सकते हैं.
पुस्तक अंश: अतिवाद हमेशा बुनियादी शिष्टता का नाश करता है. हिंसा समाज में बर्बरता के ऐसे बीज बो देगी जिससे कोई भी नहीं बच सकेगा.
बंगाल में लिटिल मैगज़ीन की शुरुआत पिछली शताब्दी के तीसरे दशक में 'कल्लोल' के साथ हुई. आरंभ से ही ये पत्रिकाएं लीक से हटकर पनपते प्रयोगात्मक तथा वैकल्पिक सोच की वाहन बनीं और बाद में वाम विचारधारा से भी प्रभावित हुईं. बंगनामा स्तंभ की ग्यारहवीं क़िस्त.
यूएसएआईडी और रूम टू रीड इंडिया ट्रस्ट द्वारा आदिवासी लेखक-कवि जसिंता केरकेट्टा को उनकी किताब 'जिरहुल' के लिए पुरस्कार के लिए चुना गया था. जसिंता ने इज़रायल द्वारा फ़िलिस्तीन के ख़िलाफ़ छेड़े गए युद्ध के पीड़ितों के साथ एकजुटता दिखाने के लिए इसे लेने से मना कर दिया है.
पुस्तक अंश: दारा ने इस्लाम का गहरा अध्ययन किया था. उनकी किताबें अल्लाह और मुहम्मद साहब का उल्लेख करती हैं, लेकिन उन्हें विधर्मी और काफ़िर घोषित कर उनकी हत्या कर दी गई.
कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: वेद हमारे प्रथम काव्यग्रंथ हैं. ‘स्वस्ति’ शीर्षक से रज़ा पुस्तकमाला के अंतर्गत सेतु प्रकाशन से प्रकाशित ऋग्वेद के प्रथम मंडल के 112 सूक्तों का कवि-विद्वान मुकुंद लाठ द्वारा किया गया हिंदी अनुवाद इसका प्रमाण है.
'जब भी कोई नया माध्यम आता है तो यही आशंका जताई जाती है कि पुराने माध्यम चलन से बाहर हो जाएंगे. लेकिन टीवी और कंप्यूटर जैसे जितने भी नए माध्यम आए, वे किताब के ही अलग-अलग रूप बने, न कि प्रतिद्वंद्वी. प्रिंट हमेशा अपनी जगह रहेगा. साहित्य की जगह हमेशा बनी रहेगी.'