जीडीपी का तीन फीसदी वैज्ञानिक शोध और दस फीसदी शिक्षा पर ख़र्च करने की मांग को लेकर बुधवार को देश भर में हज़ारों की संख्या में वैज्ञानिक और शिक्षाविद सड़क पर उतरे.
विज्ञान, इंजीनियरिंग और कॉस्मिक किरणों के अध्ययन में महत्वपूर्ण योगदान देने के लिए उन्हें जाना जाता है.
शोधकर्ताओं ने बताया कि फिल्म में दिखाए गए मकड़ी के किरदार ऐरागॉग और खोजी गई मकड़ी में कई समानताएं हैं.
भारत ने संचार उपग्रह जीसैट-19 को ले जाने वाले सबसे वज़नी रॉकेट जीएसएलवी एमके थ्री-डी1 का सफलतापूर्वक प्रक्षेपण कर इतिहास में अपना नाम दर्ज कर लिया.
पक्षी विज्ञानियों के अनुसार, मोर और मोरनी में एवियन प्रजनन अंग होता है, जिसे ‘क्लोअका’ कहा जाता है. इसी के माध्यम से दोनों संबंध बनाते हैं.
हम अक्सर किसी टिप्पणी या दलील को महज़ इसलिए स्वीकार कर लेते हैं, क्योंकि वे हमारी परंपरागत मान्यताओं के अनुरूप होती हैं. ऐसा करते वक़्त हम न तो इनके पीछे के तर्कों की परवाह करते हैं, न दावों की प्रामाणिकता जांचने की ज़हमत उठाते हैं.
साइबर विशेषज्ञ के अनुसार, देश के अधिकांश एटीएम अभी विंडो आॅपरेटिंग सिस्टम पर चल रहे हैं जिसे हैक करना आसान होता है.
यह नया जीव सिर्फ अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन में ही मिलता है. एपीजे अब्दुल कलाम के नाम पर इस बैक्टीरिया को सोलीबैकिलस कलामी नाम दिया गया है.
रैन्समवेयर एक ऐसा सॉफ्टवेयर है जिससे एक कम्प्यूटर में वायरस आ जाता है और यूज़र तब तक इसे खोल नहीं पाता जब तक कि वह इसे अनलॉक करने के लिए रैन्सम (फिरौती) नहीं देता.
इसमें संदेह नहीं कि अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भारत की क्षमताएं उच्च स्तर की हैं, इसके बावजूद कई संचार उपग्रह जैसे एडुसैट कई साल बाद भी अपने लक्ष्यों को पूरा नहीं कर सका है.
कई मीडिया संस्थानों ने प्रसिद्ध अंतरिक्ष विज्ञानी शिवथानु पिल्लई की हीलियम-3 पर दी गई जानकारी को ठीक से समझे बिना ही प्रसारित किया. विज्ञान से जुड़ी कोई ख़बर देते समय तथ्यों को लेकर सतर्कता बरतना बेहद ज़रूरी है.
भारतीय चिकित्सा परिषद ने डॉक्टरों को पर्ची पर दवाओं के नाम स्पष्ट और बड़े अक्षरों में लिखने की निर्देश दिया.
केंद्रीय दवा मानक नियंत्रण संगठन (सीडीएससीओ) ने इन दवाओं को लेकर चेतावनी जारी की है. इस साल मार्च में इन दवाओं पर टेस्ट किए गए थे.
उच्चतम न्यायालय ने सोशल मीडिया साइट वॉट्सऐप की निजता नीति के मामले को एक संविधान पीठ के पास भेज दिया जो 18 अप्रैल को इस मामले पर सुनवाई करेगी.
कैग की एक रिपोर्ट के अनुसार मध्य प्रदेश में पिछले पांच सालों में तकरीबन 93.7 लाख गर्भवती महिलाओं ने प्रसव पूर्व देखभाल के लिए अपना पंजीकरण करवाया था पर प्रसव सिर्फ 69.8 लाख के हुए. ऐसे में सवाल उठता है कि बाकी 23.9 लाख गर्भवती महिलाओं का क्या हुआ?