लखनऊ जाकर ‘दरियादिल’ कहलाए नवाब आसफउद्दौला फैजाबाद में अभी तक ‘तंगदिल’ क्यों बने हुए हैं?

अवध के नवाब आसफउद्दौला की छवियों में दो ध्रुवों का कहें या आकाश पाताल का अंतर है. लखनऊ में वे नायक हैं, जबकि फैजाबाद में खलनायक. लखनऊ ने जहां उनके वक्त में उनके प्रति खासे कृतज्ञ होकर उनकी प्रजावत्सलता, दरियादिली व दानवीरता का भरपूर बखान किया, वहीं फैजाबाद उन्हें माल व जर की हवस में अपनी हरदिलअजीज मां (बहू बेगम) का खजाना लूटने के लिए अंग्रेजों से मिलकर दल-बल से उन पर चढ़ाई कर देने व उनके दूध को लजाने

संगीत एकांत का विराग है

कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: मधु लिमये ने आपातकाल के दौरान जेल में कुमार गन्धर्व का संगीत सुनते हुए उन्हें पत्र में लिखा था कि उनका संगीत सुनकर लगता है कि वे संसार का रहस्य छू सा रहे हैं. संसार के बुनियादी रहस्य और उस पर होने वाले विस्मय को संगीत सहेजता है. एक ऐसे काल में जिसमें रहस्य और विस्मय दोनों ही अपदस्थ कर दिए गये हैं, संगीत उनका पुनर्वास करता है.

बंगनामा: आमी बांग्ला भालो कोरे बोलते पारी

सरकारी अधिकारी बनने के बाद राज्य की भाषा सीखना ज़रूरी होता है पर बचपन से बांग्ला परिवेश में पले-बढ़े होने के चलते मुझे लगता था कि मैं इसे धाराप्रवाह बोल सकता हूं, इसलिए इसे सीखने में समय नष्ट नहीं करना चाहिए. पर अहंकार आने के साथ ठोकर खाना भी निश्चित हो जाता है. बंगनामा की इक्कीसवीं क़िस्त.

बिट्स पिलानी के गोवा कैंपस पर एक और छात्र ने ली अपनी जान, परेशान अभिभावकों ने उठाए संस्थान पर सवाल

गोवा स्थित बिट्स पिलानी में तीन महीनों के भीतर दूसरी आत्महत्या का मामला सामने आया है. 20 वर्षीय अथर्व देसाई हॉस्टल के कमरे में मृत पाए गए हैं. इससे पहले दिसंबर 2024 में भी एक छात्र ने अपनी जान ले ली थी. एक छात्र की मां ने संस्थान पर गंभीर सवाल उठाते हुए कहा कि इस मसले पर सिर्फ एक ईमेल कर देना पर्याप्त नहीं है.

हिंदी पट्टी में 90% से अधिक लोग केवल एक भाषा बोलते हैं: डेटा

तमिलनाडु और केंद्र सरकार के बीच समग्र शिक्षा अभियान के फंड संबंधी विवाद ने हिंदी थोपे जाने की बहस को फिर हवा दी है. आंकड़े बताते हैं कि ग़ैर -हिंदीभाषी राज्य अधिक बहुभाषी हैं, जबकि हिंदीभाषी राज्यों में यह प्रवृत्ति कमज़ोर है.

अवध के नवाबों के साथ विलासिता की छवि कैसे जुड़ी?

अवध के नवाबों की विलासिता के क़िस्से लोगों के दिल व दिमाग में इस कदर जड़ हो गए हैं कि इस बात का यक़ीन दिलाना मुश्किल है कि आसफउद्दौला (1775-1797) से पहले तक ये नवाब न सिर्फ खुद बेहद पराक्रमी थे, बल्कि अपनी फ़ौज की ताकत से भी कोई समझौता नहीं करते थे.

एएसआई ने संभल मस्जिद को ‘अच्छे हाल’ में बताया, पर तस्वीरें कुछ और ही बयां करती हैं

एएसआई ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में पेश रिपोर्ट में कहा कि संभल की शाही जामा मस्जिद पूरी तरह से 'अच्छी स्थिति' में है, इसमें रंगरोगन की ज़रूरत नहीं है. हालांकि तस्वीरें बताती हैं कि इमारत के बाहरी हिस्से का पेंट उखड़ा हुआ है और अंदर कुछ जगहों पर मरम्मत की ज़रूरत हैं.

हिंदी लेखक अन्य कलाओं के रसास्वादन से क्यों बचता है

कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: हिंदी ने कलाओं को अंगीकार कर अपना सर्जनात्मक और बौद्धिक परिवेश नहीं बनाया. जो थोड़ा-बहुत कलाओं की शुद्ध भौतिक उपस्थिति के कारण अनजाने-अनचाहे बन गया था, उसे भी अपनी जिज्ञासाहीनता और अरुचि, उपेक्षा के कारण गंवा दिया या नष्ट कर दिया.

रचनाकार का समय: ‘जाति के सवाल से टकराए बगैर कैसे लेखक बनेंगे आप?’

मेरे समय का रचनाकार अपने आपसे मुठभेड़ क्यों नहीं करता है? विविधता और प्रतिनिधित्व के सवाल उसके व्यक्तिगत, पारिवारिक, सामाजिक और व्यवसायिक स्थलों पर क्यों नहीं दिखाई देते हैं? रचनाकार का समय में पढ़िए कथाकार कैलाश वानखेड़े को.

त्रिभाषा विवाद: भाषा उस तिकड़मी दरिंदे का कौर है, जो सड़क पर और, संसद में कुछ और है

शिक्षा मंत्री त्रिभाषा सूत्र को संवैधानिक प्रावधान बतला रहे हैं. वे झूठ बोल रहे हैं. संविधान में कहीं भी भाषा के मामले में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है. संविधान में हिंदी अन्य भारतीय भाषाओं की तरह की एक भाषा है लेकिन हिंदीवादी उसे राष्ट्रभाषा कहते रहे हैं.

महाराष्ट्र: ग्राम सभा ने अवैध रूप से मुस्लिम व्यापारियों के बहिष्कार का प्रस्ताव पारित किया

महाराष्ट्र के अहिल्यानगर में 700 साल पुराने कानिफनाथ मंदिर में सालाना मढ़ी मेले में देश भर से खानाबदोश समुदायों के लोग बड़ी संख्या में आते हैं. बीते दिनों मढ़ी गांव की ग्राम सभा में इस मेले से मुस्लिम व्यापारियों का बहिष्कार करने के प्रस्ताव पर दस्तख़त किए गए हैं.

गांधीजी के शहादत दिवस पर हम क्यों हुए अजमेर दरगाह पर एकत्रित

30 जनवरी 2025 को शहीद दिवस के दिन मानवाधिकारों, इंसानियत और एकता के लिए खड़े होने वाले ढेरों लोग अजमेर में सद्भावना यात्रा के लिए जुटे थे. अलग-अलग सदी की तीन कहानियों से जुड़े ये लोग शांति और करुणा के लिए दरगाह शरीफ़ तक पहुंचे.

उत्तर प्रदेश: एक युवा निषाद कार्यकर्ता की खुदकुशी से उठते सवाल

निषाद पार्टी के कार्यकर्ता परेशान हैं. पार्टी नेतृत्व असुरक्षा बोध से ग्रस्त है और अपनी अक्षम संतानों को कार्यकर्ताओं पर थोप रहा है. कुछ नेता समय रहते पार्टी छोड़ गए, लेकिन धर्मात्मा निषाद ऐसा नहीं कर पाए. एक युवा राजनीतिक कार्यकर्ता की ख़ुदक़ुशी व्यापक विमर्श की मांग करती है.

बैरिकेडिंग से बेहाल अयोध्या: पाबंदियों में जकड़े अयोध्यावासी अब कराहने लगे हैं!

13 जनवरी से ही अयोध्या के राम मंदिर में आ रहे श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए मुख्य मार्गों तक पहुंचाने वाली शहर की प्रायः सारी गलियों व मार्गों पर बैरियर लगाकर बंद कर दिया गया है. बीते सप्ताह इन थोपी गई कड़ी यातायात पाबंदियों के चलते एक स्थानीय भाजपा नेता ने जान गंवा दी.

मैं बोली: बोलना ज़रूरी है क्या?

स्त्री-जीवन के विभिन्न पहलुओं पर केंद्रित एक स्तंभ हम इस सप्ताह शुरू कर रहे हैं - 'मैं बोली'. जिन्होंने यह आरंभिक क़िस्त लिखी है, वह अपने साथ होते आये अन्याय को पहली बार सार्वजनिक कर रही हैं. लेकिन अपनी आवाज उठाते वक्त भी वह अज्ञात रहना चाहती हैं. उनकी लंबी चुप्पी की तरह उनका अनाम रहे आना भी हमारे समाज पर एक सवाल है.
संभव है इसे पढ़ते वक्त आपको माया अंजेलो का वह अमर वाक्य याद आयेगा - 'जब

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