दिल्ली के विधानसभा क्षेत्रों में एक अहम प्रश्न यह है कि क्या मुसलमान आम आदमी पार्टी को सिर्फ़ इसलिए वोट कर रहे हैं कि वे उसे भाजपा के मुकाबले एकमात्र विकल्प के तौर पर देखते हैं? या फिर अरविंद केजरीवाल के काम से संतुष्ट हैं? या क्या उत्तर पूर्वी दिल्ली के मतदाता के लिए 2020 दंगा अब भी चुनावी मुद्दा है?
दिल्ली के कड़कड़डूमा कोर्ट ने असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम के उम्मीदवार शिफा-उर-रहमान को चुनाव प्रचार के लिए 30 जनवरी से 3 फरवरी तक की पैरोल दी है. हालांकि, पुलिस पहरे की बंदिशों की वजह से उन्हें तमाम तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है.
ज़किया जाफ़री ने अपनी ज़िंदगी के पिछले 22 साल इंसाफ़ की जद्दोजहद में झोंक दिए. हर कदम पर भारत के ताकतवर निज़ाम की तरफ़ से रुकावट और मुख़ालिफ़त के बावजूद उन्होंने इंसाफ़ की अपनी टेक नहीं छोड़ी.
कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: इस क़दर लुच्चई-लफंगई-टुच्चई-दबंगई दृश्य पर छा गई हैं कि लगता है भद्रता और सिविल समाज जैसे ग़ायब या पूरी तरह से निष्क्रिय हो गए हैं.
कहते हैं कि जब कोई गंगा स्नान करके घर आता है तो उसके पैरों में लगकर गंगा की माटी भी उन लोगों के लिए चली आती है जो गंगा तक नहीं जा पाए. महाकुंभ में भगदड़ की रात जब तमाम श्रद्धालु मेला क्षेत्र से निकलकर शहर में फंसें, तो जिन मुसलमानों को कुंभ में हिस्सा लेने से रोका गया, कुंभ ख़ुद ही उनके घरों, उनकी मस्ज़िदों में चला आया.
भारतीय संविधान ने हर धर्म, जाति और पहचान के लोगों के लिए समान अधिकार वाला देश बनाने का संकल्प लिया था. लेकिन जिस तरह बहुसंख्यक हिंदू और ऊंची जातियां दलितों और मुसलमानों को हमारे पड़ोस, स्कूलों और हमारे जीवन से बाहर निकाल रही हैं, ये समुदाय डाल से टूटकर दूर जा गिरे हैं.
हादसे के दो दिन बाद भी प्रयागराज में विकट स्थिति बनी हुई है. लोगों के घरों में दूध और अख़बार तक नहीं पहुंच पाए हैं. शहर की सड़कों पर बेहिसाब भीड़ के बीच वाहन अटके हुए हैं.
गांधी को लिखे पत्र में हरिशंकर परसाई कहते हैं, 'गोडसे की जय-जयकार होगी, तब यह तो बताना ही पड़ेगा कि उसने कौन-सा महान कर्म किया था. बताया जाएगा कि उस वीर ने गांधी को मार डाला था. तो आप गोडसे के बहाने याद किए जाएंगे. अभी तक गोडसे को आपके बहाने याद किया जाता था. एक महान पुरुष के हाथों मरने का कितना फायदा मिलेगा आपको.'
पुस्तक समीक्षा: ‘माटी-राग’ उपन्यास में लेखक हरियश राय किसानों के साथ पूरी हमदर्दी के साथ खड़े हैं. वे सरकारी आंकड़ों और मीडिया के प्रचार-प्रसार से बचते हुए आंखों देखे भयावह यथार्थ को अपनी गहन पीड़ा के साथ रखते हैं.
सरकारों द्वारा 'हर घर जल' के दावों के बीच चंदौली ज़िले की नौगढ़ तहसील में विंध्य के पहाड़ों और घने जंगलों के बीच बसे केल्हड़िया गांव के निवासी आज भी स्वच्छ पेयजल से वंचित हैं. पहाड़ियों के बीच रिसता पानी (चुहाड़) उनकी ज़रूरत तो पूरी कर रहा है, हालांकि यह स्वच्छता मानक पर पीने योग्य नहीं है.
कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: संविधान में सिर्फ़ स्वतंत्रता का अनेक स्तरों पर सत्यापन भर नहीं है उसमें सभी नागरिकों को समान अधिकार, समता और न्याय के मूल्यों की स्थापना, सभी नागरिकों को धर्म-जाति-लिंग आदि से परे कुछ बुनियादी अधिकार, लोकतांत्रिक व्यवस्था आदि के रूप में क्रांति की गई है.
अगर मुझे होती हुई या हो चुकी घटना के विवरण को लिखना हो, तो मैं गद्य का सहारा लेती हूं, लेकिन उस घटना से मेरे मन पर क्या प्रभाव पड़ा, उसे मैंने कैसे देखा, यह ज़ाहिर करना हो, तो मैं कविता का सहारा लेती हूं. 'रचनाकार का समय' की इस क़िस्त में पढ़ें लवली गोस्वामी का आत्म-कथ्य.
दिल्ली चुनावों के बीच विश्व हिंदू परिषद दिल्ली के युवाओं को त्रिशूल और स्त्रियों को कटार बांट रहा है. कौन हैं वे स्त्रियां और लड़कियां जो इन भव्य आयोजनों में कटार लेने पहुंच रही हैं?
हान कांग 'द वेजीटेरियन' में खाने की राजनीति पर कोई बात नहीं कर रही हैं, उनका विषय नायिका यंगहे का शाकाहारी हो जाने का निर्णय है, जो इस साधारण महिला को असाधारण बना देता है.
कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: जीने का देखने से बड़ा गहरा और अनिवार्य संबंध है. अगर दिखाई न दे तो जीवन, प्रकृति, घर-परिवार आदि का क्या अस्तित्व? बहुत सारी सचाई तो इसलिए सचाई है, हमारे लिए, कि हम उसे देख पाते हैं. पर यह भी सच है कि बहुत सारी सचाई हम अनदेखी करते हैं.