1988 में भारत सरकार ने राष्ट्रीय साक्षरता मिशन का शुरू किया था, जिसका मक़सद था अनपढ़ लोगों को व्यावहारिक रूप से साक्षर बनाना, ताकि सभी लोग काम के लायक़ पढ़-लिख सकें. बंगाल की प्रौढ़ महिलाओं की साक्षरता की यात्रा पढ़िए बंगनामा की बीसवीं क़िस्त में.
रामचंद्र गुहा के हालिया प्रकाशित निबंध संकलन, 'शताब्दी के झरोखे से', की भूमिका में आशुतोष भारद्वाज लिखते हैं कि वे किसी कथावाचक की दृष्टि से इतिहास लिखते हैं. उनके प्रिय शीर्षक को थोड़ा फेर कर कहें, वे ‘इतिहासकारों के बीच स्थित उपन्यासकार’ हैं.
कभी-कभार | मदन लाल देखने में कहीं से मूर्तिकार नहीं लगते जबकि उनका कला-जीवन चार दशकों से ज़्यादा का है. उन्हें उत्तर प्रदेश, गुजरात, योकोहोमा, कानागावा न्यूयार्क आदि से अनेक सम्मान मिल चुके हैं. उनकी कृतियां संसार के अनेक कला संस्थानों और संग्रहालयों में संग्रहीत हैं. इस सबके बावजूद उनका व्यवहार बेहद विनयशील, सौम्य, निश्छल है. आज की बेहद चिकनी-चुपड़ी दुनिया में वे बिरले हैं.
रुस्तम सिंह अपने सहकर्मियों के रचना-संसार पर गहरी निगाह रखते हैं और उनकी उपलब्धियों को सार्वजनिक रूप से दर्ज करते हैं. हाल ही में उन्होंने हिंदी के अठारह समकालीन कवियों का संकलन तैयार किया है. यहां प्रस्तुत है, उस संकलन का प्राक्कथन और कुछ चुनिंदा कविताएं.
कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: इस क़दर लुच्चई-लफंगई-टुच्चई-दबंगई दृश्य पर छा गई हैं कि लगता है भद्रता और सिविल समाज जैसे ग़ायब या पूरी तरह से निष्क्रिय हो गए हैं.
पुस्तक समीक्षा: उदयन वाजपेयी की 'टुकड़ा नागरिक संहिता' के निबंधों में बंधी-बंधाई लीक नहीं है. अच्छे निबंध का सबसे ज़रूरी गुण है विचारों की बढ़त, जो पढ़नेवाले के दिमाग़ में भी होती रहती है. कोई बात निबंध में जहां से शुरू हुई है वहीं ख़त्म नहीं होती, पाठक के मन में बढ़ती बदलती रहती है.
प्रचण्ड प्रवीर की यह कहानी आयरिश लेखक टॉमस मूर के प्रसिद्ध काव्य ‘लाला रूख’ (1817) और उस पर बनी हिन्दी फिल्म ‘लाला-रुख़’ (1958) के संदर्भ में लिखी गई है. प्रसिद्ध गायक तलत महमूद और अभिनेत्री श्यामा की मुख्य भूमिकाओं में अभिनीत यह फिल्म टॉमस मूर की कथा को कुछ बदलती है. प्रवीर की कहानी इस कथा में एक नया मोड़ जोडती है.
पुस्तक समीक्षा: ‘माटी-राग’ उपन्यास में लेखक हरियश राय किसानों के साथ पूरी हमदर्दी के साथ खड़े हैं. वे सरकारी आंकड़ों और मीडिया के प्रचार-प्रसार से बचते हुए आंखों देखे भयावह यथार्थ को अपनी गहन पीड़ा के साथ रखते हैं.
पुस्तक अंश: मुहल्ले के मुसलमानों के विपरीत सिविल क्षेत्रों में रहने वाले मुसलमानों और आसपास के हिंदू समाज के बीच काफ़ी रफ्त-जफ्त रहता है. किंतु किसी कारणवश यदि सामाजिक समरसता गड़बड़ाती है, चाहे उसी शहर के किसी हिस्से में या किसी पड़ोसी शहर में, तो दोनों समुदायों के बीच अघोषित तनाव व्याप्त हो जाता है.
कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: संविधान में सिर्फ़ स्वतंत्रता का अनेक स्तरों पर सत्यापन भर नहीं है उसमें सभी नागरिकों को समान अधिकार, समता और न्याय के मूल्यों की स्थापना, सभी नागरिकों को धर्म-जाति-लिंग आदि से परे कुछ बुनियादी अधिकार, लोकतांत्रिक व्यवस्था आदि के रूप में क्रांति की गई है.
अगर मुझे होती हुई या हो चुकी घटना के विवरण को लिखना हो, तो मैं गद्य का सहारा लेती हूं, लेकिन उस घटना से मेरे मन पर क्या प्रभाव पड़ा, उसे मैंने कैसे देखा, यह ज़ाहिर करना हो, तो मैं कविता का सहारा लेती हूं. 'रचनाकार का समय' की इस क़िस्त में पढ़ें लवली गोस्वामी का आत्म-कथ्य.
बारासात में दोपहर के वक़्त दुकानें बंद देखकर मुझे वह चर्चित गीत याद आया जो संकेत करता था कि जिन देशों के निवासी धूप बर्दाश्त न कर सके, वहां अंग्रेज़ तीखी दुपहरी में विचरते थे और अपनी हुकूमत चलाते थे. बंगनामा की उन्नीसवीं क़िस्त.
दिल्ली हाईकोर्ट की वकील अमिता सचदेवा द्वारा एमएफ हुसैन की दो पेंटिंग को 'आपत्तिजनक' बताने की शिकायत के बाद दिल्ली आर्ट गैलरी ने कहा कि वह कलात्मक स्वतंत्रता में भरोसा करती है और उसने कोई ग़लत काम नहीं किया. इस मामले में स्थानीय अदालत ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है.
दिल्ली हाईकोर्ट की एक वकील ने दिल्ली आर्ट गैलरी में प्रदर्शित पद्म पुरस्कार से सम्मानित कलाकार एमएफ हुसैन की हिंदू देवता- हनुमान और गणेश की दो पेंटिंग को 'आपत्तिजनक' बताते हुए शिकायत दर्ज करवाई थी. अब अदालत ने इन्हें ज़ब्त करने का आदेश दिया है.
कृष्णा सोबती की मृत्यु हुए छह बरस हो गए. उनकी अंतिम इच्छा थी कि उनके घर को लेखकीय आवास में तब्दील कर दिया जाए. लेकिन हाउसिंग कॉलोनी की ज़िद की वजह से सोबती की वसीयत आज तक पूरी न हो सकी, और उनका बंद पड़ा घर देखभाल के अभाव में जर्जर हो रहा है.