क्लब, क्राइम, कैबरे का यह फॉर्मूला 1970 के दशक की फिल्मों तक बेहद लोकप्रिय बना रहा.
फादर स्टेन स्वामी की हिरासत, ख़ारिज होती ज़मानत, बुनियादी ज़रूरतों के लिए अदालत में अर्ज़ियां लगाना और अंत में अपनों से दूर एक अनजान शहर में उनका गुज़र जाना यह एहसास दिलाता है कि उनके ख़िलाफ़ कोई आरोप तय किए बिना और उन पर कोई मुक़दमा चलाए बगैर उन्हें सज़ा-ए-मौत मुक़र्रर कर दी गई.
ट्रैजिक हीरो की भूमिकाओं के साथ-साथ ही हल्की-फुल्की कॉमेडी करने की भी क्षमता के लिए मशहूर दिलीप कुमार को उनके प्रशंसकों और साथ काम करने वालों द्वारा भी हिंदी सिनेमा का महानतम अभिनेता माना जाता है.
किसी भी आम नागरिक के लिए जेल एक ख़ौफ़नाक जगह है, पर देवांगना, नताशा और आसिफ़ ने बहुत मज़बूती और हौसले से जेल के अंदर एक साल काटा. उनके अनुभव आज़ादी के संघर्ष के सिपाहियों- नेहरू और मौलाना अबुल कलाम आज़ाद के जेल वृतांतों की याद दिलाते हैं.
स्मृति शेष: पिछले दिनों उर्दू साहित्यकार और 90 वर्षों से ज़्यादा से छपने वाली पत्रिका ‘शायर’ के संपादक इफ़्तिख़ार इमाम सिद्दीक़ी इस दुनिया से चले गए. 'शायर' उन्हें पुरखों से विरसे में मिली थी, जिसे बनाए रखने का सफ़र आसान नहीं था, लेकिन उन्होंने ज़िंदगीभर अपना सब कुछ लगाकर इसे मुमकिन किया.
जनतंत्र को अपने ठेंगे पर रखे घूम रहे लठैतों के इस दौर में 46 साल पहले के आपातकाल के 633 दिनों पर खूब हायतौबा मचाइए, मगर पिछले 2,555 दिनों से भारतमाता की छाती पर चलाई जा रही अघोषित आपातकाल की चक्की के पाटों को नज़रअंदाज़ मत करिए.
स्मृति शेष: देश में महिला और जेंडर संबंधी अध्ययन को बढ़ावा देने वालों में से एक चर्चित समाजशास्त्री और अर्थशास्त्री के. शारदामणि नहीं रहीं. शारदामणि ने न केवल महिला अध्ययन केंद्रों की शुरुआत करने में अहम भूमिका निभाई थी, बल्कि इंडियन एसोसिएशन फॉर विमेंस स्टडीज़ की स्थापना में भी योगदान दिया.
हीरेन मुखर्जी ने कहा था कि जवाहरलाल नेहरू सफल राजनेता नहीं हो सके क्योंकि राजनीति में सफलता के लिए जो असभ्यता चाहिए, नेहरू उसके सर्वथा अयोग्य थे.
जहां देश एक ओर 'गुजरात मॉडल' के भेष में पेश किए गए छलावे को लेकर आज सच जान रहा है, वहीं गुजरात के केवड़िया गांव के आदिवासियों ने काफ़ी पहले ही इसके खोखलेपन को समझकर इसके ख़िलाफ़ सफलतापूर्वक एक प्रतिरोध आंदोलन खड़ा किया था.
2021 में बंगाल गर्वपूर्वक अपने कवि से कह सकता है, ये जो फूल आपको अर्पित करने मैं आया हूं वे सच्चे हैं, नकली नहीं. इस बार प्रेम, सद्भाव, शालीनता के लिए स्थान बचा सका हूं. यह कितने काल तक रहेगा इसकी गारंटी नहीं पर यह क्या कम है कि इस बार घृणा और हिंसा के झंझावात में भी ये कोमल पुष्प बचाए जा सके.
1971 रिवाइंड: पचास साल बाद भी हृषिकेश मुखर्जी का 'आनंद' भाषा, जाति, मज़हब की हदों के परे जाकर उसी तरह ख़ुशियां लुटा रहा है.
उत्तर प्रदेश के गोरखपुर ज़िले के बड़हलगंज क़स्बे का मामला. अस्पताल प्रबंधन ने ऑक्सीजन की कमी से मरीज़ों की मौत की बात से इनकार करते हुए कहा है कि मरीज़ पहले से ही गंभीर हालत में थे.
'ग़रीबी हटाओ' के नारे के साथ उस साल इंदिरा की जीत ने कांग्रेस को नई ऊर्जा से भर दिया था. 1971 एक ऐतिहासिक बिंदु था क्योंकि इंदिरा गांधी ने लक्ष्य और दिशा का एक बोध जगाकर सरकार की संस्था में नागरिकों के विश्वास की बहाली का काम किया.
जाति एक ऐसी बाधा है जो एक समाज का निर्माण नहीं होने देती. राष्ट्र बनकर भी नहीं बन पाता क्योंकि हम एक दूसरे के प्रति उत्तरदायी नहीं होते. एकजुटता या बंधुत्व के अभाव में सामाजिक संपदा का निर्माण भी नहीं हो पाता.
गांधी कहते थे कि वे किसी को चेचक का टीका लेने से नहीं रोकेंगे, लेकिन उन्होंने यह भी कहा था कि वे अपनी मान्यता नहीं बदल सकते और टीकाकरण को बढ़ावा नहीं दे सकते हैं.