चतुर सांप्रदायिकता पर सवार आम आदमी पार्टी आखिर कितना दूर जा सकती थी?

‘इंडिया अगेंस्ट करप्शन’ की नीतिविहीनता और चतुर सांप्रदायिकता का प्रदर्शन ‘आप’ ने पिछले 11 सालों में बार-बार किया. हर बार कहा गया कि वह अपने आदर्श से विचलित हो रही है. लेकिन वह आदर्श क्या था, यह आज तक किसी ने न बताया. फिर हम किस आदर्शवादी राजनीति से धोखे का रोना रो रहे हैं?

मणिपुर: एनडीए में वापस लौटी एनपीपी, कहा- विरोध केवल बीरेन सिंह के ख़िलाफ़ था

कोनराड संगमा की नेशनल पीपुल्स पार्टी ने नवंबर 2024 में मणिपुर में एन. बीरेन सिंह सरकार से समर्थन वापस ले लिया था. बीरेन के इस्तीफ़े के बाद वह फिर से भाजपा के नेतृत्व वाले गठबंधन में शामिल हो गई है. पार्टी प्रमुख शेख नूरुल हसन का कहना है कि उनका विरोध केवल बीरेन सिंह से है.

महाकुंभ: ‘हाउस अरेस्ट’ हुए शहर के लोग, मालवाहनों के प्रवेश-निषेध से राशन की किल्लत बढ़ी

महाकुंभ के चलते इलाहाबाद शहर में लग रहे जाम से स्थानीय व्यापारियों से लेकर छात्र, शिक्षक, श्रमिक, हॉकर सभी परेशान हैं. जहां छात्र और शिक्षक पढ़ाई का कोई रूटीन न बन पाने से चिंतित हैं, वहीं काम पर निकले लोगों का आधा समय जाम से निपटने में निकल रहा है.

डाॅ. ज़ाकिर हुसैन: राष्ट्रपति होना उनका सबसे बड़ा परिचय ज़रूर था, एकमात्र परिचय नहीं

डाॅ. ज़ाकिर हुसैन के व्यक्तित्व की सबसे उल्लेखनीय बात यह थी कि उन्होंने अपना पूरा जीवन देश की एकता, सामाजिक न्याय और सभी के लिए शिक्षा जैसे उद्देश्यों के लिए समर्पित किए रखा- इस मान्यता के साथ कि शिक्षा समाज को बदलने का सबसे शक्तिशाली हथियार है.

दिल्ली चुनाव परिणाम: धूल में मिले आम आदमी पार्टी के धूमकेतु क्या फिर आकाश में चमकेंगे?

जो लोग कांग्रेस को मिले वोट और कई सीटों पर हार-जीत का अंतर दिखा कर बता रहे हैं कि कांग्रेस की वजह से आप हारी, वे आधा सच देख और बता रहे हैं. पूरा सच यह है कि आप अपनी वजह से हारी, वरना बीते दो चुनावों में उसे न कांग्रेस की दया की ज़रूरत पड़ी थी और न ही डबल इंजन सरकार के प्रचार से फ़र्क पड़ा था.

मिल्कीपुर विधानसभा उपचुनाव : ‘साधन को भूल सिद्धि पर जब टकटकी हमारी लगती है…!’

सीएम योगी आदित्यनाथ और उनके मंत्रियों ने मिल्कीपुर की कितनी यात्राएं कीं, वहां जाकर कितना जोर लगाया या प्रत्यक्ष व परोक्ष रूप से कितना साम दाम दंड और भेद बरता, इस सवाल को भूल ही जाइए. योगी के राज में उत्तर प्रदेश में यह सब इस तरह एक 'समृद्ध' परंपरा में बदल चुका है कि योगी सरकार किसी भी रूप में लजाने से परहेज बरतती है.

बनारस की विरासत और मुस्लिम बाहुल्य दालमंडी बाज़ार पर चलेगा बुलडोजर?

वाराणसी के मुस्लिम बाहुल्य दालमंडी बाजार में सड़क चौड़ीकरण के प्रस्ताव से तनाव गहराया है. दस मस्जिदें और लगभग 10,000 दुकानें इस प्रक्रिया की जद में आ सकती हैं. व्यापारी इसे राजनीतिक चाल मान रहे हैं. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा था कि काशी विश्वनाथ कॉरिडोर में श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए यह विस्तार आवश्यक है.

रिहाई के बाद सुधीर धवले ने कहा- काम जारी रहेगा…

एल्गार परिषद मामले में गिरफ़्तार लोगों में से एक सुधीर धवले 2,424 दिनों की कैद के बाद रिहा होने वाले नौवें व्यक्ति हैं. पिछले डेढ़ दशक में कांग्रेस-भाजपा, दोनों सरकारों में 10 साल से अधिक समय तक जेल में रहने के बाद धवले कहते हैं कि दोनों के शासन में बहुत अंतर नहीं है. दोनों ने हर तरह की असहमति को बहुत हिंसक तरीके से दबाया है.

दिल्ली: चुनावी सौगात के आगे क्यों फीके पड़ जाते हैं वायु प्रदूषण और मैली यमुना के मुद्दे?

दिल्ली-एनसीआर में वायु प्रदूषण केवल एक पर्यावरणीय मुद्दा नहीं है, बल्कि यह एक सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट है. इन दिनों बड़ी संख्या में अस्थमा और फेफड़ों से संबंधित रोग सामने रहे हैं. बुजुर्गों में हृदय रोग, क्रॉनिक ऑब्स्ट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (सीओपीडी) और अन्य गंभीर बीमारियां बढ़ रही हैं.

दिल्ली चुनाव: 2020 का दंगा झेल चुके मुस्लिमों के लिए ‘आप’ भाजपा के मुक़ाबले बस विकल्प मात्र

दिल्ली के विधानसभा क्षेत्रों में एक अहम प्रश्न यह है कि क्या मुसलमान आम आदमी पार्टी को सिर्फ़ इसलिए वोट कर रहे हैं कि वे उसे भाजपा के मुकाबले एकमात्र विकल्प के तौर पर देखते हैं? या फिर अरविंद केजरीवाल के काम से संतुष्ट हैं? या क्या उत्तर पूर्वी दिल्ली के मतदाता के लिए 2020 दंगा अब भी चुनावी मुद्दा है?

चुनाव प्रचार के लिए तिहाड़ जेल से बाहर, ओवैसी के प्रत्याशी की समस्याएं बरक़रार

दिल्ली के कड़कड़डूमा कोर्ट ने असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम के उम्मीदवार शिफा-उर-रहमान को चुनाव प्रचार के लिए 30 जनवरी से 3 फरवरी तक की पैरोल दी है. हालांकि, पुलिस पहरे की बंदिशों की वजह से उन्हें तमाम तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है.

ज़किया जाफ़री: प्रतिरोध का स्वर जो कभी थका नहीं

ज़किया जाफ़री ने अपनी ज़िंदगी के पिछले 22 साल इंसाफ़ की जद्दोजहद में झोंक दिए. हर कदम पर भारत के ताकतवर निज़ाम की तरफ़ से रुकावट और मुख़ालिफ़त के बावजूद उन्होंने इंसाफ़ की अपनी टेक नहीं छोड़ी.

क्या लगातार हमलों और क्षति के बाद संवैधानिक राष्ट्र बच पाएगा?

कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: इस क़दर लुच्चई-लफंगई-टुच्चई-दबंगई दृश्य पर छा गई हैं कि लगता है भद्रता और सिविल समाज जैसे ग़ायब या पूरी तरह से निष्क्रिय हो गए हैं.

महाकुंभ और मुसलमान: इलाहाबादियत और इंसानियत का परचम

कहते हैं कि जब कोई गंगा स्नान करके घर आता है तो उसके पैरों में लगकर गंगा की माटी भी उन लोगों के लिए चली आती है जो गंगा तक नहीं जा पाए. महाकुंभ में भगदड़ की रात जब तमाम श्रद्धालु मेला क्षेत्र से निकलकर शहर में फंसें, तो जिन मुसलमानों को कुंभ में हिस्सा लेने से रोका गया, कुंभ ख़ुद ही उनके घरों, उनकी मस्ज़िदों में चला आया.

भारतीय मुसलमान की त्रासदी: थोपा हुआ अकेलापन

भारतीय संविधान ने हर धर्म, जाति और पहचान के लोगों के लिए समान अधिकार वाला देश बनाने का संकल्प लिया था. लेकिन जिस तरह बहुसंख्यक हिंदू और ऊंची जातियां दलितों और मुसलमानों को हमारे पड़ोस, स्कूलों और हमारे जीवन से बाहर निकाल रही हैं, ये समुदाय डाल से टूटकर दूर जा गिरे हैं. 

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