मुक्तिबोध के आईने से: जनतंत्र का पहला और आख़िरी सवाल

अपूर्णता का एहसास मनुष्य के होने का सबूत है. समस्त प्राणी जगत में एकमात्र मनुष्य है जिसे अपने अधूरेपन का एहसास है. यह उसे अपनी सीमाओं का अतिक्रमण करने की प्रेरणा देता है.

छत्तीसगढ़ नसबंदी त्रासदी के दस साल: शिक्षा और स्वास्थ्य का सवाल अब भी बरक़रार

नवंबर 2014 में छत्तीसगढ़ के बिलासपुर ज़िले में लगा एक नसबंदी शिविर त्रासदी में तब्दील हो गया था, जब ऑपरेशन के बाद 13 महिलाओं की मौत हुई और कई अन्य स्त्रियां अस्पतालों में भर्ती रहीं. उस वक्त ढेरों सरकारी वादे किए गए थे, लेकिन आज उनका नामोनिशान नहीं दिखता.

मुक्तिबोध की उपस्थिति के तीन क्षण

कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: मुक्तिबोध मनुष्य के विरुद्ध हो रहे विराट् षड्यंत्र के शिकार के रूप में ही नहीं लिखते, बल्कि वे उस षड्यंत्र में अपनी हिस्सेदारी की भी खोज कर उसे बेझिझक ज़ाहिर करते हैं. इसीलिए उनकी कविता निरा तटस्थ बखान नहीं, बल्कि निजी प्रामाणिकता की कविता है.

गुजरात में बलात्कारियों को रिहा करने वाले मोदी बंगाल के ऐसे अपराधियों के लिए फांसी चाहते हैं

साल 2022 में मोदी सरकार ने बिलक़ीस बानो के बलात्कार के लिए दोषी ठहराए गए सज़ायाफ़्ता अपराधियों की रिहाई को मंज़ूरी दी थी. बिलक़ीस के आग्रह पर सुप्रीम कोर्ट ने मामला अपने हाथ में लिया और उन हत्यारों और बलात्कारियों को वापस जेल भेजा.

बांग्लादेश: ‘दूसरी आज़ादी’ का कट्टर और धर्मांध सवेरा?

तख्तापलट के बाद मुहम्मद यूनुस ने कहा था कि बांग्लादेश को दूसरी आज़ादी मिली है, लेकिन इसके असल लाभार्थी तमाम कट्टरपंथी संगठन बन रहे हैं.

मुसलमानों के ख़िलाफ़ घृणा और हिंसा भारत में महामारी की तरह फैल गई है

मुसलमानों पर हिंसा करने वाले हिंदू कम हो सकते हैं. लेकिन एक सच यह भी है कि हिंदुओं में बहुलांश को मुसलमानों पर हिंसा से फ़र्क नहीं पड़ता.

बिहार: केसी त्यागी के जदयू के राष्ट्रीय प्रवक्ता पद से इस्तीफ़ा देने की वजह क्या है

नीतीश कुमार के जनता दल (यूनाइटेड) की राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन में वापसी के बाद भी केसी त्यागी भारतीय जनता पार्टी की नीतियों की खुलकर आलोचना कर रहे थे. माना जा रहा है कि ‘संवेदनशील मुद्दों’ पर त्यागी के बयानों ने पार्टी को गठबंधन के भीतर मुश्किल स्थिति में डाल दिया था.

यामिनी कृष्णमूर्ति: लय-लालित्य-लावण्य की त्रिमूर्ति

कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: यामिनी कृष्णमूर्ति देह और नृत्य की ज्यामिति को बहुत संतुलित ढंग और अचूक संयम से व्यक्त व अन्वेषित करती थीं. नर्तकी और नृत्य इस क़दर तदात्म हो जाते थे कि उनको अलगाकर देखना या सराहना संभव नहीं होता था.

बांग्लादेश की विभाजित अल्पसंख्यक राजनीति: हिंदू बनाम हिंदू

शेख हसीना के तख्तापलट के बाद बांग्लादेश की अल्पसंख्यक राजनीति विभाजित हो गयी है. कुछ हिंदू कहते हैं कि तख्तापलट के दौरान और उसके बाद अल्पसंख्यकों पर हमले तेज हो गये हैं, और कुछ दावा करते हैं कि ये आरोप बेबुनियाद हैं और माहौल को भड़काने के लिए हैं.

अयोध्या: फ़ैज़ाबाद की बहू बेगम की आख़िरी निशानी भी ख़तरे में है

सरकारी वेबसाइटों पर फ़ैज़ाबाद में स्थित बहू बेगम के मक़बरे को ग़ैर-मुग़ल मुस्लिम स्थापत्य कला का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण बताया गया है, हालांकि अब इसके परिसर में स्थापत्य की नहीं, अतिक्रमण व गंदगी की ‘भव्यता’ ही नज़र आती है.

भारत के विश्वविद्यालयों में अकादमिक स्वतंत्रता पर गंभीर संकट है

देश के विश्वविद्यालय ख़ासकर केंद्रीय विश्वविद्यालय एक प्रकार से केंद्र सरकार के ‘विस्तारित कार्यालय’ में तब्दील कर दिए गए हैं. कोई भी अकादमिक विभाग बिना प्रशासन की ‘छन्नी’ से गुजरे किसी भी प्रकार का आयोजन नहीं कर सकता.

क्या आज सिर्फ़ कृष्ण को ही याद करेंगे, कृष्णभक्त मुस्लिम कवियों को नहीं?

कृष्ण जन्माष्टमी पर श्रीकृष्ण के साथ-साथ उन महान कवियों को भी याद किया जाना चाहिए, जिन्होंने कभी श्रीकृष्ण के प्रति भक्तिभाव से सुंदर काव्य रचे. यह दिन कवि तानसेन, ताज, रहीम, रसखान, जमाल, मुबारक, ताहिर अहमद, नेवाज, आलम, शेख तथा रसलीन का भी दिन है.

साहित्य की नागरिकता ऐसी विशाल नागरिकता से घिरी है, जिसे उसके होने का पता ही नहीं

कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: हम जिस हिंदी समाज में लिखते हैं, जिसके बारे में लिखते हैं और जिससे समझ और संवेदना की अपेक्षा करते हैं वह ज़्यादातर पुस्तकों-लेखकों से मुंहफेरे समाज है. उसके लिए साहित्य कोई दर्पण नहीं है जिसमें वह जब-तब अपना चेहरा देखने की ज़हमत उठाए.

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