तिनका भर संसार: अठारह समकालीन हिंदी कवि

रुस्तम सिंह अपने सहकर्मियों के रचना-संसार पर गहरी निगाह रखते हैं और उनकी उपलब्धियों को सार्वजनिक रूप से दर्ज करते हैं. हाल ही में उन्होंने हिंदी के अठारह समकालीन कवियों का संकलन तैयार किया है. यहां प्रस्तुत है, उस संकलन का प्राक्कथन और कुछ चुनिंदा कविताएं. 

क्या लगातार हमलों और क्षति के बाद संवैधानिक राष्ट्र बच पाएगा?

कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: इस क़दर लुच्चई-लफंगई-टुच्चई-दबंगई दृश्य पर छा गई हैं कि लगता है भद्रता और सिविल समाज जैसे ग़ायब या पूरी तरह से निष्क्रिय हो गए हैं.

टुकड़ा नागरिक संहिता: सृष्टि का उत्सव मनाता लीलावान गद्य

पुस्तक समीक्षा: उदयन वाजपेयी की 'टुकड़ा नागरिक संहिता' के निबंधों में बंधी-बंधाई लीक नहीं है. अच्छे निबंध का सबसे ज़रूरी गुण है विचारों की बढ़त, जो पढ़नेवाले के दिमाग़ में भी होती रहती है. कोई बात निबंध में जहां से शुरू हुई है वहीं ख़त्म नहीं होती, पाठक के मन में बढ़ती बदलती रहती है.

रचनाकार का समय: बदनाम गली मेँ लाला-रुख़

प्रचण्ड प्रवीर की यह कहानी आयरिश लेखक टॉमस मूर के प्रसिद्ध काव्य ‘लाला रूख’ (1817) और उस पर बनी हिन्दी फिल्म ‘लाला-रुख़’ (1958) के संदर्भ में लिखी गई है. प्रसिद्ध गायक तलत महमूद और अभिनेत्री श्यामा की मुख्य भूमिकाओं में अभिनीत यह फिल्म टॉमस मूर की कथा को कुछ बदलती है. प्रवीर की कहानी इस कथा में एक नया मोड़ जोडती है.

माटी राग: आज़ादी के अमृत काल में किसानों के नरक

पुस्तक समीक्षा: ‘माटी-राग’ उपन्यास में लेखक हरियश राय किसानों के साथ पूरी हमदर्दी के साथ खड़े हैं. वे सरकारी आंकड़ों और मीडिया के प्रचार-प्रसार से बचते हुए आंखों देखे भयावह यथार्थ को अपनी गहन पीड़ा के साथ रखते हैं.

मुस्लिम बस्तियों का सामाजिक और सांस्कृतिक अलगाव: एक औपन्यासिक पड़ताल

पुस्तक अंश: मुहल्ले के मुसलमानों के विपरीत सिविल क्षेत्रों में रहने वाले मुसलमानों और आसपास के हिंदू समाज के बीच काफ़ी रफ्त-जफ्त रहता है. किंतु किसी कारणवश यदि सामाजिक समरसता गड़बड़ाती है, चाहे उसी शहर के किसी हिस्से में या किसी पड़ोसी शहर में, तो दोनों समुदायों के बीच अघोषित तनाव व्याप्त हो जाता है.

मंदिर के होने से स्वतंत्र होने की तुलना संविधान और उससे प्राप्त लोकतंत्र का घोर अपमान है

कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: संविधान में सिर्फ़ स्वतंत्रता का अनेक स्तरों पर सत्यापन भर नहीं है उसमें सभी नागरिकों को समान अधिकार, समता और न्याय के मूल्यों की स्थापना, सभी नागरिकों को धर्म-जाति-लिंग आदि से परे कुछ बुनियादी अधिकार, लोकतांत्रिक व्यवस्था आदि के रूप में क्रांति की गई है.

रचनाकार का समय: मेरा वक़्त से दोस्ताना रिश्ता तो नहीं है

अगर मुझे होती हुई या हो चुकी घटना के विवरण को लिखना हो, तो मैं गद्य का सहारा लेती हूं, लेकिन उस घटना से मेरे मन पर क्या प्रभाव पड़ा, उसे मैंने कैसे देखा, यह ज़ाहिर करना हो, तो मैं कविता का सहारा लेती हूं. 'रचनाकार का समय' की इस क़िस्त में पढ़ें लवली गोस्वामी का आत्म-कथ्य.

बंगनामा: अभी दोपहर है, यानी शटर डाउन है

बारासात में दोपहर के वक़्त दुकानें बंद देखकर मुझे वह चर्चित गीत याद आया जो संकेत करता था कि जिन देशों के निवासी धूप बर्दाश्त न कर सके, वहां अंग्रेज़ तीखी दुपहरी में विचरते थे और अपनी हुकूमत चलाते थे. बंगनामा की उन्नीसवीं क़िस्त.

एमएफ हुसैन की ‘आपत्तिजनक’ पेंटिग मामले में आर्ट गैलरी ने कहा- शिकायतकर्ता ने ख़ुद तस्वीरें फैलाईं

दिल्ली हाईकोर्ट की वकील अमिता सचदेवा द्वारा एमएफ हुसैन की दो पेंटिंग को 'आपत्तिजनक' बताने की शिकायत के बाद दिल्ली आर्ट गैलरी ने कहा कि वह कलात्मक स्वतंत्रता में भरोसा करती है और उसने कोई ग़लत काम नहीं किया. इस मामले में स्थानीय अदालत ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है.

दिल्ली: अदालत का आर्ट गैलरी से एमएफ हुसैन की दो ‘आपत्तिजनक’ कृतियां ज़ब्त करने का आदेश

दिल्ली हाईकोर्ट की एक वकील ने दिल्ली आर्ट गैलरी में प्रदर्शित पद्म पुरस्कार से सम्मानित कलाकार एमएफ हुसैन की हिंदू देवता- हनुमान और गणेश की दो पेंटिंग को 'आपत्तिजनक' बताते हुए शिकायत दर्ज करवाई थी. अब अदालत ने इन्हें ज़ब्त करने का आदेश दिया है.

कृष्णा सोबती की अंतिम इच्छा पर हाउसिंग सोसाइटी का ताला, राष्ट्रीय धरोहर उनका मकान हो रहा जर्जर

कृष्णा सोबती की मृत्यु हुए छह बरस हो गए. उनकी अंतिम इच्छा थी कि उनके घर को लेखकीय आवास में तब्दील कर दिया जाए. लेकिन हाउसिंग कॉलोनी की ज़िद की वजह से सोबती की वसीयत आज तक पूरी न हो सकी, और उनका बंद पड़ा घर देखभाल के अभाव में जर्जर हो रहा है.

द वेजीटेरियन: स्त्री की व्यथा और उसके एकल विद्रोह की कथा

हान कांग 'द वेजीटेरियन' में खाने की राजनीति पर कोई बात नहीं कर रही हैं, उनका विषय नायिका यंगहे का शाकाहारी हो जाने का निर्णय है, जो इस साधारण महिला को असाधारण बना देता है.

नफ़रत और धर्मांधता से लड़ने के लिये हमें संगठित होना होगा: एमके रैना 

प्रसिद्ध रंगकर्मी, अभिनेता और सांस्कृतिक कर्मी एमके रैना से सांस्कृतिक परंपरा में प्रतिरोध, विशेषकर नाट्य और सांगीतिक परंपरा के इतिहास, अपनी गतिविधियों, अनुभवों और उनकी आज के वक़्त में उपयोगिता पर मुकेश कुलरिया से बातचीत.

देखना, परखना और निरखना: हमारी दृष्टि कहां निवास करती है?

कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: जीने का देखने से बड़ा गहरा और अनिवार्य संबंध है. अगर दिखाई न दे तो जीवन, प्रकृति, घर-परिवार आदि का क्या अस्तित्व? बहुत सारी सचाई तो इसलिए सचाई है, हमारे लिए, कि हम उसे देख पाते हैं. पर यह भी सच है कि बहुत सारी सचाई हम अनदेखी करते हैं.

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