भाजपा महासचिव कैलाश विजयवर्गीय ने कहा कि महामारी के मुश्किल दौर में ऐसी ख़बरें भी दिखाई जानी चाहिए, जिनसे समाज में सकारात्मक माहौल बन सके. हर 100 साल में एक बार महामारी आती है. ऐसे समय में आप यह भी दिखाएं कि डॉक्टर और पैरामेडिकल स्टाफ किस तरह लगातार काम कर रहे हैं.
रिपोर्टर्स विदआउट बॉर्डर्स की ओर से जारी विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक में भारत 180 देशों में 142वें स्थान पर है. रिपोर्ट में देश में कम होती प्रेस की आज़ादी के लिए भाजपा समर्थकों को ज़िम्मेदार ठहराते हुए कहा गया है कि पार्टी समर्थकों ने पत्रकारों को डराने-धमकाने का माहौल बनाया है. साथ ही पत्रकारों की ख़बरों को 'राष्ट्र विरोधी' क़रार दिया है.
पुलिस का दावा है कि ऐसा इसलिए किया गया है, ताकि हिंसा को फैसले से रोका जा सके, क्योंकि एनकाउंटर वाले स्थान से रिपोर्टिंग करने पर ‘देशविरोधी भावना’ भड़कती है. हालांकि एडिटर्स गिल्ड ने कहा है कि सत्य बताने में कुछ भी ग़लत नहीं है.
फैक्ट चेक: अप्रैल के पहले हफ़्ते में मीडिया द्वारा एक अध्ययन के हवाले से दावा किया गया कि हार्वर्ड स्टडी ने अन्य राज्यों की तुलना में प्रवासी संकट को अधिक प्रभावी ढंग से संभालने के लिए यूपी सरकार की सराहना की है. पड़ताल बताती है कि हार्वर्ड ने ऐसा कोई अध्ययन नहीं किया.
अक्तूबर 2020 में न्यूज़ ब्रॉडकास्टिंग स्टैंडर्ड अथॉरिटी ने आज तक को सुशांत सिंह राजपूत की मौत के बाद उनके कुछ ट्वीट को लेकर की गई ग़लत रिपोर्टिंग का दोषी मानते हुए माफ़ीनामा और जुर्माना देने को कहा था. चैनल ने इसे लेकर समीक्षा याचिका दायर की थी, जिसे खारिज़ करते हुए अथॉरिटी ने इस आदेश को बरक़रार रखा है.
एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने कहा है कि समाचार संगठन लगातार महामारी, चुनाव आदि मामलों को कवर कर रहे हैं जिससे पाठकों तक ख़बरों व सूचनाओं की निर्बाध आपूर्ति सुनिश्चित हो. समाचार मीडिया आवश्यक सेवाओं में शामिल है, इसलिए यह उचित होगा कि पत्रकारों को संरक्षण के दायरे में लाया जाए.
फैक्ट चेक: विभिन्न मीडिया रिपोर्ट्स में अमेरिका की जॉन हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी के एक अध्ययन में यूपी सरकार के कोविड-19 प्रबंधन को अग्रणी बताने का दावा किया गया. यूनिवर्सिटी के एक प्रोफेसर ने इसका खंडन करते हुए कहा कि ये कोई तुलनात्मक अध्ययन नहीं था बल्कि यूपी सरकार के अफसरों के साथ मिलकर राज्य की कोविड-19 की तैयारी और इसे संभालने संबंधी व्यवस्थाओं पर तैयार की गई रिपोर्ट थी.
मध्य प्रदेश में बुधवार को कोविड-19 संक्रमण के 9,720 मामले सामने आए और 51 लोगों की मौत हो गई. जो एक दिन का अब तक का सबसे बड़ा आंकड़ा है. इसके साथ ही प्रदेश में इस वायरस से अब तक संक्रमित पाए गए लोगों की कुल संख्या 363,352 तक पहुंच गई.
विशेष रिपोर्ट: केंद्र द्वारा लाए गए डिजिटल मीडिया के नए नियमों को लेकर हो रहे विरोध में एक मुद्दा इस बारे में हितधारकों के साथ समुचित चर्चा न होने का है. सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने इन्हें बनाने से पहले हुए विचार-विमर्श के नाम पर दो सेमिनार और एक मीटिंग का हवाला दिया है, हालांकि इसमें से किसी के भी मिनट्स तैयार नहीं किए गए हैं.
समाचार वेबसाइट ‘मिल्लत टाइम्स’ की 9 अप्रैल की महाराष्ट्र में कोविड-19 लॉकडाउन के ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शन पर एक वीडियो रिपोर्ट प्रकाशित की थी. इसके चीफ एडिटर ने बताया कि अधिकतर प्रदर्शनकारी दिहाड़ी मज़दूर थे. वे मुख्यमंत्री निवास के पास विरोध कर रहे थे और उन मुद्दों के बारे में बोल रहे थे, जिनका सामना वे लॉकडाउन के कारण करेंगे.
एक समाचार पोर्टल चलाने वाले हिसार के पत्रकार राजेश कुंडू को ज़िले में हिंसा होने की आशंका संबंधी पोस्ट करने पर हरियाणा पुलिस ने आईपीसी की विभिन्न धाराओं और आईटी अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया है. पत्रकारों समेत विपक्षी दलों ने इसका विरोध करते हुए मामले को तुरंत वापस लेने की मांग की है.
असमी समाचार चैनल प्रतिदिन टाइम्स ने एक ऑडियो क्लिप प्रसारित किया था, जिसमें कथित तौर पर मंत्री और भाजपा नेता पीयूष हज़ारिका को पत्रकार नजरूल इस्लाम से बातचीत करते सुना जा सकता है. इस बातचीत के दौरान मंत्री ने नजरूल और एक अन्य पत्रकार तुलसी को उनके घरों से घसीट कर बाहर निकालने और ‘गायब’ करने की धमकी दी.
कांग्रेस का आरोप है कि समाचार की शक्ल में छपे इस विज्ञापन के ज़रिये भाजपा ने ऊपरी असम की उन सभी सीटों पर अपनी जीत का दावा किया है, जहां 27 मार्च को पहले चरण में मतदान हुआ था. कांग्रेस की शिकायत के आधार पर निर्वाचन आयोग ने असम के अख़बारों को नोटिस जारी किया है.
आज़मगढ़ शहर के वरिष्ठ फोटो जर्नलिस्ट सुनील कुमार दत्ता का कहना है कि नगर पालिका परिषद ने वर्ष 2000 में उन्हें यह ज़मीन किराये पर आवंटित की थी, जहां उन्होंने कार्यालय बनाया था. उनका आरोप है कि कार्यालय ख़ाली करने के तय समय से पहले ही इसे प्रशासन ने ध्वस्त कर दिया.
ये मामला तीन जुलाई 2020 को किए गए एक फेसबुक पोस्ट से जुड़ा हुआ है, जिसमें शिलॉन्ग टाइम्स की संपादक पैट्रिशिया मुखीम ने ग़ैर-आदिवासी युवाओं पर हुए हमले को लेकर सवाल उठाया था. राज्य सरकार का कहना था कि ऐसा करके मुखीम ने मामले को सांप्रदायिक रंग दिया है.