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सुप्रीम कोर्ट में लगभग दो महीने में अफ्रीका से लाए गए तीन चीतों की मौत पर चिंता जताते हुए कहा कि सरकार उन्हें अन्य अभयारण्यों में स्थानांतरित करने पर विचार कर सकती है. इस दौरान सरकार की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि भारत में कोई चीता विशेषज्ञ नहीं हैं, क्योंकि 1947-48 में चीता देश से विलुप्त हो गए थे.
राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण ने सुप्रीम कोर्ट में एक आवेदन दायर कर 2020 में शीर्ष अदालत द्वारा कूनो राष्ट्रीय उद्यान में लाए गए अफ्रीकी चीतों की देखरेख के लिए गठित विशेषज्ञ समिति को भंग करने की अपील की है. प्राधिकरण के अनुसार, शेरों को चीतों के क्षेत्र में छोड़ना उचित नहीं है, क्योंकि प्रतिद्वंद्विता के कारण दोनों प्रजातियों के अस्तित्व के लिए यह क़दम हानिकारक होगा.
मध्य प्रदेश सरकार बीते दिनों पेसा क़ानून लागू करने के बाद से इसे अपनी उपलब्धि बता रही है. 1996 में संसद से पारित इस क़ानून के लिए ज़रूरी नियम बनाने में राज्य सरकार ने 26 साल का समय लिया. आदिवासी नेताओं का कहना है कि शिवराज सरकार के इस क़दम के पीछे आदिवासियों की चिंता नहीं बल्कि समुदाय को अपने वोट बैंक में लाना है.
कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने 'प्रोजेक्ट चीता' के सिलसिले में वर्ष 2010 में बतौर केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्री की उनकी अफ्रीका यात्रा का फोटो ट्विटर पर डालते हुए कहा कि आज प्रधानमंत्री मोदी ने बेवजह का तमाशा खड़ा किया. यह राष्ट्रीय मुद्दों को दबाने और 'भारत जोड़ो यात्रा' से ध्यान भटकाने का प्रयास है.
गुजरात द्वारा उठाई गईं आपत्तियों और पर्यावरण मंत्रालय व मध्य प्रदेश वन विभाग के पीछे हटने की वजह से सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश को लागू नहीं किया जा सका. मध्य प्रदेश में शेरों को लाने के लिए हुआ प्रदर्शन.
गुजरात ने शेरों के संरक्षण पर काफ़ी मेहनत की है, लेकिन यह भी दिखता है कि उनके प्रयास केवल 'गुजरात के शेरों तक सीमित है, जबकि आवश्यकता एक राष्ट्रीय नज़रिये की है.