द वायर बुलेटिन: आज की ज़रूरी ख़बरों का अपडेट.
नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नगालैंड (इसाक-मुइवा) का यह बयान केंद्र सरकार द्वारा विद्रोही समूह के साथ बातचीत फिर से शुरू करने के कुछ दिनों बाद आया है. एनएससीएन-आईएम समेत नगा समूहों का दावा है कि नगा कभी भी भारत का हिस्सा नहीं थे और उन्होंने 14 अगस्त 1947 को ‘स्वतंत्रता’ की घोषणा की थी.
सिविल सोसायटी संगठन ‘यूनाइटेड क्रिश्चियन फोरम’ द्वारा जारी नवीनतम आंकड़े बताते हैं कि मौजूदा वर्ष 2023 के पहले 8 महीनों में भारत में ईसाइयों के खिलाफ 525 हमले हुए हैं. मणिपुर में हिंसा, जहां पिछले चार महीनों में सैकड़ों चर्च नष्ट कर दिए गए हैं, को देखते हुए इस वर्ष यह संख्या विशेष रूप से अधिक होने की संभावना है.
2024 के लोकसभा चुनाव के लिए अपने राजनीतिक अभियान के तहत ‘स्पीकिंग फॉर इंडिया’ नामक पॉडकास्ट में तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने लोगों के अधिकारों के उल्लंघन और राज्यों की पहचान और अधिकारों को नष्ट करने के केंद्र सरकार के प्रयासों को लेकर उस पर निशाना साधा.
बीते शुक्रवार को मुंबई में विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ की तीसरी बैठक का आयोजन किया गया. दो दिवसीय बैठक में 14 सदस्यीय केंद्रीय समिति, एक अभियान समिति, एक मीडिया समिति और एक सोशल मीडिया कार्य समूह बनाने पर सहमति बनी. इस दौरान गठबंधन में शामिल नेताओं ने महंगाई और भ्रष्टाचार को लेकर मोदी सरकार पर निशाना भी साधा.
द वायर बुलेटिन: आज की ज़रूरी ख़बरों का अपडेट.
द वायर बुलेटिन: आज की ज़रूरी ख़बरों का अपडेट.
द वायर बुलेटिन: आज की ज़रूरी ख़बरों का अपडेट.
पंजाब के राज्यपाल बनवारीलाल पुरोहित के राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाने की धमकी के जवाब में मुख्यमंत्री भगवंत मान ने कहा कि एक 'चयनित राज्यपाल' को निर्वाचित प्रतिनिधियों को धमकाने और लोकतांत्रिक रूप से चुनी गई सरकार को गिराने का दुर्भावनापूर्ण प्रयास करने का नैतिक अधिकार नहीं है.
द वायर बुलेटिन: आज की ज़रूरी ख़बरों का अपडेट.
द वायर बुलेटिन: आज की ज़रूरी ख़बरों का अपडेट.
द वायर बुलेटिन: आज की ज़रूरी ख़बरों का अपडेट.
द वायर बुलेटिन: आज की ज़रूरी ख़बरों का अपडेट.
हिंदुस्तान में जगह-जगह दरारें पड़ रही हैं या पड़ चुकी हैं. यह कहना बेहतर होगा कि ये दरारें डाली जा रही हैं. पिछले विभाजन को याद करने से बेहतर क्या यह न होगा कि हम अपने वक़्त में किए जा रहे धारावाहिक विभाजन पर विचार करें और उसे रोकने को कुछ करें?
अफ़सोस की बात थी कि जिस वक़्त संसद में सरकार के लोग ठिठोली, छींटाकशी कर रहे थे जब मणिपुर में लाशें 3 महीने से दफ़न किए जाने का इंतज़ार रही हैं. इतनी बेरहमी और इतनी बेहिसी के साथ कोई समाज किस कदर और कितने दिन ज़िंदा रह सकता है?