अपनी व्यक्तिगत ईमानदारी का हवाला देकर प्रधानमंत्री मोदी बड़े पूंजीपतियों से अपने करीबी रिश्तों को लेकर हो रही आलोचना को नहीं टाल सकते.
भाजपा सांसद मुरली मनोहर जोशी की अध्ययक्षता वाली प्राक्कलन समिति को भेजे अपने नोट में रिज़र्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने कहा था कि उन्होंने पीएमओ को एनपीए के फ़र्ज़ीवाड़े के बड़े मामलों की एक सूची भेजी थी, ताकि उनकी गंभीरतापूर्वक जांच की जा सके.
आॅल इंडिया बैंक आॅफिसर्स कनफेडरेशन ने कहा कि इससे पहले एसबीआई के साथ पांच सहयोगी बैंकों के विलय हुआ था, लेकिन कोई चमत्कार नहीं हुआ. गुजरात बैंक कर्मचारी यूनियन का कहना है कि इससे बेरोज़गारी बढ़ेगी.
केंद्र सरकार का कहना है कि यह निर्णय बैंकों की कर्ज देने की ताकत बढ़ाने और आर्थिक वृद्धियों को गति देने के लिए लिया गया है.
अब यह देखा जाना बाक़ी है कि क्या मोदी सरकार इन बड़े कॉरपोरेट घरानों के ख़िलाफ़ कार्रवाई करने में सफल हो पाती है, जो आने वाले आम चुनावों में अज्ञात चुनावी बॉन्डों के सबसे बड़े ख़रीदार हो सकते हैं.
विजय माल्या ने हर दल की मदद से खुद को राज्यसभा में पहुंचाकर भारत की संसदीय परंपरा को उपकृत किया. मैं माल्या के इस योगदान का सम्मान करता हूं. इस मामले में प्रो-माल्या हूं. क्या माल्या बहुत बड़े राजनीतिक विचारक थे? जिन-जिन लोगों ने उन्हें संसद में पहुंचाया वो सामने आकर बोले तों. वन सेंटेंस में!
अगर यह राजनीतिक विवाद किसी भी तरह से आर्थिक अपराध का है तो दस लाख करोड़ रुपये लेकर फरार अपराधियों के नाम लिए जाने चाहिए. किसके राज मे लोन दिया गया यह विवाद है, किसे लोन दिया गया इसका नाम ही नहीं है.
कुछ अमीर उद्योगपति और अमीर होते रहें, जनता हिंदू-मुस्लिम करती रहे, इसलिए कांग्रेस भी नहीं बताती है कि वह जब सत्ता में आएगी तो उसकी अलग आर्थिक नीति क्या होगी. भाजपा भी यह सब नहीं करती है जबकि वह सत्ता में है.
संसद की प्राक्कलन समिति को भेजे पत्र में आरबीआई के पूर्व गर्वनर रघुराम राजन ने उन तरीक़ों के बारे में बताया है जिनके ज़रिये बेईमान बिज़नेस घरानों को सरकार और बैंकिंग व्यवस्था से घोटाला करने की खुली छूट मिली.
जन गण मन की बात की 303वीं कड़ी में विनोद दुआ रिज़र्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन द्वारा एनपीए को लेकर संसदीय समिति को लिखे पत्र और भारत नेपाल के संबंधों पर चर्चा कर रहे हैं.
नीति आयोग के उपाध्यक्ष राजीव कुमार ने कहा कि पूर्व आरबीआई गवर्नर रघुराम राजन की नीतियों के चलते अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचा न कि नोटबंदी से.
सरकार में हर कोई दूसरा टॉपिक खोजने में लगा है जिस पर बोल सकें ताकि रुपये और पेट्रोल पर बोलने की नौबत न आए. जनता भी चुप है. यह चुप्पी डरी हुई जनता का प्रमाण है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शनिवार को एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कांग्रेस नीत पूर्ववर्ती संप्रग सरकार को एनपीए के लिए जिम्मेदार ठहराया था.
रिज़र्व बैंक की रिपोर्ट में बताया गया है कि एनपीए 31 मार्च, 2018 तक बढ़कर 10 लाख करोड़ रुपये के ऊपर पहुंच गया है, जो 31 मार्च, 2015 तक तीन लाख करोड़ रुपये था.
वरिष्ठ कांग्रेस नेता एम वीरप्पा मोइली की अगुवाई वाली वित्त पर संसद की स्थायी समिति की इस रिपोर्ट को स्वीकार कर लिया गया है. इसे संसद के शीतकालीन सत्र में पेश किया जा सकता है.