इस हफ्ते नॉर्थ ईस्ट डायरी में मिज़ोरम, त्रिपुरा, सिक्किम, मणिपुर और असम के प्रमुख समाचार.
आरटीआई से मिली जानकारी के मुताबिक राज्य में हर एक विधायक की कमाई सूबे की अनुमानित प्रति व्यक्ति आय के मुक़ाबले क़रीब 18 गुना ज़्यादा थी.
देश में अरबपतियों की तेज़ी से बढ़ती संख्या के बीच आप रोते रहिए कि राजनीति का पतन हो गया है और अब वह समाजसेवा या देशसेवा का ज़रिया नहीं रही, इन बहुमतवालों को कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता क्योंकि उन्होंने इस स्थिति को सामाजिक-सांस्कृतिक मान्यता भी दिला दी है.
देशभर के मौजूदा 4,086 विधायकों में से 3,145 विधायकों ने ही अपने आय का ब्योरा चुनाव आयोग को दिया है. 941 विधायकों ने अपनी आय घोषित नहीं की है.
भाजपा को अन्य दलों से नौ गुना ज़्यादा चंदा मिला. सभी दलों को 2016-17 में ‘अज्ञात स्रोतों’ से 711 करोड़ रुपये का चंदा मिला, जिसमें भाजपा की अज्ञात स्रोतों से आय 464.94 करोड़ रुपये रही.
देश में 48 मान्यता प्राप्त क्षेत्रीय दल हैं. 16 ने चुनाव आयोग को अपनी ऑडिट रिपोर्ट नहीं सौंपी है. 2016-17 में समाजवादी पार्टी की कमाई 32 दलों की कुल कमाई का 25.78 प्रतिशत है.
नफ़रत फैलाने वाले भाषण देने वाले सांसदों/विधायकों की संख्या के लिहाज से भाजपा शासित उत्तर प्रदेश शीर्ष पर है. राज्य में सांप्रदायिक हिंसा के मामलों में भी वृद्धि हुई है.
वर्ष 2016-17 में देश के सात राष्ट्रीय दलों ने कुल 1,559.17 करोड़ रुपये की आय घोषित की. भाजपा की आय सबसे ज़्यादा 1,034.27 करोड़ रुपये रही, जो कुल राशि का 66.34 प्रतिशत है.
एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) की रिपोर्ट के अनुसार महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस 22 मामलों के साथ पहले स्थान पर हैं और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार एक मामले के साथ सबसे कम आपराधिक मामलों वाले मुख्यमंत्री हैं.
एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स की रिपोर्ट के अनुसार, इलेक्टोरल ट्रस्ट द्वारा दिए गए कुल चंदे में से 92.30 प्रतिशत यानी 588.44 करोड़ रुपये पांच राष्ट्रीय दलों की जेब में गए हैं. वहीं क्षेत्रीय दलों के खाते में सिर्फ 7.70 प्रतिशत या 49.09 करोड़ रुपये की राशि गई.
गुजरात के 47 और हिमाचल प्रदेश के 22 नवनिर्वाचित विधायकों के ख़िलाफ़ दर्ज हैं आपराधिक मामले.
सवाल है कि क्या हमारे नेता नौकरशाही में अपने समर्थ सहयोगियों की मिलीभगत के बग़ैर ही अकूत काला धन जमा करने और तरह-तरह के अपराध करने में कामयाब हो जाते हैं?
एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) का कहना है, 32 क्षेत्रीय दलों की 221 करोड़ रुपये की आय में से आधी ख़र्च नहीं हुई.
एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स की रिपोर्ट के मुताबिक, राजनीतिक दलों के आय-व्यय में पारदर्शिता बढ़ाने के लिए ऑडिट दिशानिर्देश पर अमल नहीं हो रहा है.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि नेताओं की आय का स्रोत जनता को पता होना चाहिए.