देश के चीनी के कटोरे के नाम से मशहूर पश्चिमी उत्तर प्रदेश का बागपत और कैराना इलाका चुनाव प्रचार के इस मौसम में पोस्टरों, झंडों, रैलियों से पटा पड़ा है. लेकिन इस चुनाव ने कई किसानों के घाव हरे कर दिए हैं.
वाराणसी से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ़ चुनाव लड़ने की घोषणा कर चुके 111 किसानों की योजना है कि वे अपना नामांकन दाखिल करेंगे और अघोरी साधुओं की वेषभूषा में मोदी के खिलाफ प्रचार करेंगे.
गन्ना किसानों का 10,074.98 करोड़ रुपये में से 4,547.97 करोड़ रुपये यानी 45 फीसदी से अधिक उत्तर प्रदेश के सिर्फ छह निर्वाचन क्षेत्रों मेरठ, बागपत, कैराना, मुज़फ़्फ़रनगर, बिजनौर और सहारनपुर की मीलों पर बकाया है.
प्रधानमंत्री मोदी पर वादा नहीं पूरा करने का आरोप लगाते हुए किसान नेता अय्याकन्नु ने कहा कि हम चाहते हैं कि भाजपा अपने घोषणापत्र में हमारी मांगों को शामिल करे. अगर वे ऐसा करते हैं तो हम अपना फैसला वापस ले लेंगे.
भाजपा ने आम चुनाव में राष्ट्रवाद और पाकिस्तान से ख़तरे को मुद्दा बनाने का मंच सजा दिया है. वो चाहती है कि विपक्ष उनके उग्रता के जाल में फंसे, क्योंकि विपक्षी दल उसकी उग्रता को मात नहीं दे सकते. विपक्ष को यह समझना होगा कि जनता में रोजगार, कृषि संकट, दलित-आदिवासी और अल्पसंख्यकों पर बढ़ते अत्याचार जैसे मुद्दों को लेकर काफी बेचैनी है और वे इनका हल चाहते हैं.
ग्रामीण क्षेत्रों में न सिर्फ कृषि आय घटी है बल्कि इससे जुड़े काम करने वालों की मज़दूरी भी घटी है. प्रधानमंत्री मोदी कृषि आय और मज़दूरी घटने को जोशीले नारों से ढंकने की कोशिश में हैं.
पिछले साल अगस्त में केरल में आई बाढ़ के दौरान इडुकी और त्रिशूर ज़िले सबसे अधिक प्रभावित हुए थे. पिछले दो माह में इडुकी ज़िले में आठ जबकि त्रिशूर जिले में एक किसान ने आत्महत्या कर ली.
2015-16 से तीन साल तक 10.4 प्रतिशत की दर से प्रगति करने पर ही हम कृषि क्षेत्र में दोगुनी आमदनी के लक्ष्य को पा सकते थे. इस वक़्त यह 2.9 प्रतिशत है. मतलब साफ है लक्ष्य तो छोड़िए, लक्षण भी नज़र नहीं आ रहे हैं. अब भी अगर इसे हासिल करना होगा तो बाकी के चार साल में 15 प्रतिशत की विकास दर हासिल करनी होगी जो कि मौजूदा लक्षण के हिसाब से असंभव है.
केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय के द्वारा जारी ये आंकड़े आधार वर्ष 2011-2012 पर आधारित हैं.
क्या अगले आम चुनाव में मोदी सरकार या महागठबंधन में से कोई नेता या दल अपने चुनावी घोषणा-पत्र में यह वादा कर सकता है कि वो देश की आम जनता को शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी मूलभूत सुविधा देने की संवैधानिक जवाबदारी निभाने के लिए 2019 से देश के अरबपतियों और अमीरों पर उचित टैक्स लगाने का काम करेगा?
राजसमंद जिले के कांकरोली पीपली आचार्यान गांव में एक किसान लेहरुलाल कीर ने कथित रूप से फसल बर्बाद होने पर आत्महत्या कर ली. परिजनों ने बताया कि बैंक से ऋण न मिलने पर मजबूरन साहूकार से कर्ज लेना पड़ा था, इसलिए सरकार की कर्ज माफी से हमें कोई फायदा नहीं.
ग्राउंड रिपोर्ट: बिहार के सूखाग्रस्त किसानों के लिए सरकार ने सब्सिडी देने की घोषणा की है, लेकिन इसके लिए ऑनलाइन आवेदन ही किया जा सकता है. वहीं अधिकांश किसानों को पता ही नहीं ऐसी कोई योजना चलाई जा रही है.
बस्तर ज़िले के लोहांडीगुड़ा में टाटा के इस्पात संयंत्र के लिए साल 2008 में अधिग्रहित की गई थी आदिवासी किसानों की ज़मीन. कांग्रेस ने घोषणापत्र में किया था ज़मीन वापस दिलाने का वादा.
कृषि मामलों के विशेषज्ञ देवेंद्र शर्मा ने कहा कि किसान क़र्ज़ माफ़ी के हकदार हैं. इससे निश्चित तौर पर किसानों को राहत मिली है लेकिन यह थोड़ी ही है, किसानों के लिए देश में बहुत कुछ और करने की आवश्यकता है.
सरकार सरकारी बैंकों में एक लाख करोड़ रुपये क्यों डाल रही है? किसान का लोन माफ़ करने पर कहा जाता है कि फिर कोई लोन नहीं चुकाएगा. यही बात उद्योगपतियों के लिए क्यों नहीं कही जाती?