क्या राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के कार्यकाल में कुछ याद रखने लायक है?

राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी का कार्यकाल अगले महीने खत्म हो रहा है. लंबे राजनीतिक अनुभव वाले प्रणब का राष्ट्रपति के रूप में कार्यकाल कैसा रहा है?

46 साल पुरानी जनगणना के आंकड़ों पर होगा नए राष्ट्रपति का चुनाव

2002 में केंद्र की अटल बिहारी बाजपेयी के नेतृत्व वाली राजग सरकार ने संविधान में संशोधन करके यह तय कर दिया कि 2026 तक के सभी राष्ट्रपति चुनाव 1971 की जनगणना के अनुसार ही होंगे.

एक राष्ट्रपति चुनाव, जिसने ‘इंदिरा युग’ की शुरुआत की

प्रासंगिक: 1969 में हुए पांचवें राष्ट्रपति चुनाव ने इंदिरा गांधी को अबाध नियंत्रण स्थापित करने का मौका दिया, लेकिन इससे कहीं ज़्यादा इस ख़तरनाक विचार को बढ़ावा दिया कि सिर्फ़ एक नेता यह फैसला लेने में सक्षम है कि देश और उसकी जनता के लिए क्या सर्वश्रेष्ठ है.

जो लोग सत्ता में हैं, उनसे सवाल किए जाने की ज़रूरत है: राष्ट्रपति

रामनाथ गोयनका स्मृति व्याख्यान में दिए भाषण में राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने कहा कि देश में निर्णय लेने की प्रक्रिया में बातचीत और असहमति ज़रूरी हैं.

विधायिका में मुसलमानों की घटती नुमाइंदगी लोकतंत्र के लिए बेहतर संकेत नहीं है

आंकड़े बताते हैं कि देश में मुसलमानों का राजनीतिक प्रतिनिधित्व बहुत तेज़ी से गिरता जा रहा है, जिसका मतलब होगा कि वह पूरी तरह से हाशिये पर चले जाएंगे.

लोकपाल के क्रियान्वयन को लटकाकर रखना न्यायसंगत नहीं: उच्चतम न्यायालय

संसद ने वर्ष 2013 में लोकपाल विधेयक पारित कर दिया था और यह वर्ष 2014 में लागू हो गया था. इसके बावजूद अब तक लोकपाल की नियुक्ति नहीं हो सकी है.

लोकपाल की नियुक्ति अभी संभव नहीं: केंद्र सरकार

लोकपाल बिल पारित होने के बाद भी लोकपाल की नियुक्ति में हो रही देरी से संबंधित एक याचिका की सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने साफ कह दिया कि इस सत्र में नियुक्ति संभव नहीं है.

क्या हमारे मीडिया को अपनी आलोचना से डर लगने लगा है?

राज्यसभा में चुनाव सुधार पर केंद्रित लंबी चर्चा के दौरान विपक्षी नेताओं ने भारत में मीडिया की अंदरूनी संरचना और उसकी भूमिका पर गंभीर सवाल उठाए.

संसद में बोले शरद यादव, यह भाषण कोई नहीं छापेगा

राज्यसभा सांसद शरद यादव ने यह भाषण 22 मार्च 2017 को राज्यसभा में दिया. सदन में चर्चा के दौरान अपनी बात रखते हुए शरद यादव ने देश में पत्रकारिता की ​दशा और दिशा पर महत्वपूर्ण टिप्पणी की है. पढ़ें पूरा भाषण...

बोलते वक़्त मोदी क्यों भूल जाते हैं कि वो देश के पीएम हैं!

वे मुझे मार डालेंगे, मुझे थप्पड़ मार देना’, 'मुझे लात मार कर सत्ता से हटा देना’, 'मुझे फांसी पर चढ़ा देना’, 'मुझे उलटा लटका देना’, 'मुझे चौराहे पर जूते मारना’.... ये सब मोदी क्यों बोलते हैं?

किसी भी प्रधानमंत्री ने मोदी जैसी स्तरहीन भाषा का प्रयोग नहीं किया

सोनिया गांधी और राहुल गांधी भी भाषिक संयम के लिए नहीं जाने जाते हैं. मोदी की पकड़ भाषा और उसके नाटकीय इस्तेमाल पर कहीं ज़्यादा गहरी है.

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