संहार के समय कविता

वीडियो: कविता की भाषा के इस्तेमाल पर वरिष्ठ पत्रकार और लेखक निधीश त्यागी के साथ चर्चा कर रहे हैं प्रोफेसर अपूर्वानंद.

दिल्ली हिंसा के दौरान यौन उत्पीड़न का शिकार हुई महिलाओं की आपबीती

दिल्ली में हुई हिंसा के दौरान जान-माल के नुकसान के अलावा बड़ी संख्या में महिलाओं के साथ बदसलूकी की घटनाएं हुई हैं, लेकिन ये ख़ौफ़ज़दा पीड़ित पुलिस में शिकायत दर्ज कराना तो दूर इसके बारे में बात करने से भी कतरा रही हैं.

कश्मीर में केवल इंटरनेट नहीं, कश्मीरियों की ज़िंदगी के कई दरवाज़े बंद थे

बीते 5 मार्च को सात महीने के बाद जम्मू कश्मीर में इंटरनेट से प्रतिबंध हटाया गया है. एक तबके का मानना था कि यह बैन शांति प्रक्रिया के लिए अहम था, हालांकि स्थानीयों के मुताबिक़ यह प्रतिबंध मनोरंजन या सोशल मीडिया पर नहीं बल्कि आम जनता के जानने और बोलने पर था.

दिल्ली दंगा: हाईकोर्ट ने अगले आदेश तक अज्ञात शवों के अंतिम संस्कार पर रोक लगाई

दिल्ली हाईकोर्ट ने शुक्रवार को सभी सरकारी अस्पतालों को दिल्ली के उत्तर-पूर्वी इलाकों में दंगों के दौरान मरने वाले सभी लोगों के डीएनए नमूने संरक्षित करने और वीडियोग्राफी पोस्टमार्टम कराने का आदेश दिया. इन दंगों में करीब 53 लोगों की मौत हुई है.

दंगा प्रभावित क्षेत्रों में पेड़ लगाए एमसीडी, समाज को उबरने में मदद मिलेगी: दिल्ली हाईकोर्ट

औद्योगिक विवाद से जुड़े एक मामला, जिसमें दिल्ली नगर निगम भी पक्ष है, को सुनते हुए दिल्ली उच्च न्यायालय के जस्टिस नजमी वज़ीरी ने पूर्वी दिल्ली नगर निगम को पांच सौ पेड़ लगाने का आदेश देते हुए कहा है कि इससे दंगों से ज़ख़्मी समाज को उबरने में मदद मिलेगी.

दिल्ली दंगा: शिव विहार की महिलाओं ने बताई यौन हिंसा की आपबीती

वीडियो: दिल्ली दंगों के दौरान हुई हिंसा के साथ महिलाओं के साथ बदसलूकी की घटनाएं भी हुई हैं. शिव विहार में हिंसा के बाद ढेरों महिलाओं ने मुस्ताफाबाद में शरण ली है. इन महिलाओं ने द वायर को बताया कि दंगों के दौरान उनके साथ यौन हिंसा की भी घटनाएं हुई हैं.

असहमति का अधिकार लोकतंत्र के लिए आवश्यक है: जस्टिस दीपक गुप्ता

सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन द्वारा आयोजित ‘लोकतंत्र और असहमति’ पर एक व्याख्यान देते हुए जस्टिस दीपक गुप्ता ने कहा कि अगर यह भी मान लिया जाए कि सत्ता में रहने वाले 50 फीसदी से अधिक मतदाताओं का प्रतिनिधित्व करते हैं तब क्या यह कहा जा सकता है कि बाकी की 49 फीसदी आबादी का देश चलाने में कोई योगदान नहीं है?

सीएए विरोधी जनांदोलन से पैदा हो रहे गीत और कविताएं प्रतिरोध की नई इबारत लिख रहे हैं

नागरिकता संशोधन क़ानून के ख़िलाफ़ चल रहे आंदोलन के मद्देनज़र लिखी गईं कविताएं युवाओं के बीच कविता की लोकप्रियता के प्रति उम्मीद तो जगाती ही हैं, साथ ही इन्होंने युवाओं को सामाजिक-राजनीतिक सरोकारों के प्रति भी सचेत किया है.

तमिलनाडुः भीड़ ने दलित युवक की पीट-पीटकर हत्या की, सात गिरफ़्तार

यह घटना चेन्नई के पास विल्लुपुरम की है, जहां शौच जा रहे एक युवक को भीड़ द्वारा बुरी तरह पीटा गया. घटना का वीडियो सामने आने के बाद पुलिस ने तीन महिलाओं और चार पुरूषों सहित सात लोगों को गिरफ़्तार किया है.

फिल्म इंडस्ट्री हमेशा सत्ताधारियों के साथ रही है: नसीरुद्दीन शाह

साक्षात्कार: बीते दिनों द वायर के संस्थापक संपादक सिद्धार्थ भाटिया के साथ बातचीत में फिल्म अभिनेता नसीरुद्दीन शाह ने सीएए-एनआरसी-एनपीआर के विरोध में चल रहे विरोधी प्रदर्शनों, सांप्रदायिकता के उभार और अहम मसलों पर फिल्म उद्योग के बड़े नामों की चुप्पी समेत कई विषयों पर बात की.

असहमति या विरोध को एंटी नेशनल बताना लोकतंत्र के मूल विचार पर चोट: जस्टिस चंद्रचूड़

अहमदाबाद में हुए एक कार्यक्रम में सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि असहमति पर अंकुश लगाने के लिए सरकारी तंत्र का इस्तेमाल डर की भावना पैदा करता है जो क़ानून के शासन का उल्लंघन है.

मध्य प्रदेशः बच्चा चोरी के शक़ में भीड़ के हमले में एक की मौत, छह पुलिसकर्मी सस्पेंड

धार ज़िले के मनावर क्षेत्र में मज़दूरों से अपनी रकम वापस लेने आए इंदौर के सात किसानों पर भीड़ ने पत्थरों और लाठियों से हमला कर दिया था, जिसमें एक व्यक्ति की मौत हो गई, जबकि छह गंभीर रूप से घायल हो गए. हमले का मुख्य आरोपी स्थानीय भाजपा नेता को बताया जा रहा है.

साल 2019 के लिए ऑक्सफोर्ड का हिंदी शब्द बना ‘संविधान’

ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस ने कहा कि कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 को निरस्त करने का सरकार का निर्णय एक ऐसा मुद्दा था जिसके कारण संविधान काफी चर्चा में रहा और इसने अपनी ओर लोगों का ध्यान खींचा.

भारतीय संविधान की 70वीं वर्षगांठ और ‘हम भारत के लोग’

पिछले 40-45 वर्षों में संविधान की नींव कई बार हिली और ‘हम भारत के लोगों’ को तोड़ने के कई प्रयास किए गए, पर ‘हम लोग’ की परिभाषा अपरिवर्तित ही रही. कई सरकारें आईं-गईं पर एक समूचे समुदाय को देश की मुख्यधारा से काटने का प्रयास नहीं हुआ, लेकिन आज परिस्थितियां और हैं.

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