जो गांधी के विचारों के समर्थक और शांति के पैरोकार हैं, ख़ुद एक दिमाग़ी बुखार में गिरफ़्तार हैं. हिंसा हमारा स्वभाव हो गई है. हम हमला करने का पहला मौका छोड़ना नहीं चाहते. पढ़ने-सुनने के लिए जो समय और धीरज चाहिए, हमने वह जानबूझकर गंवा दिया है.
परीक्षाओं के टॉपर्स की सफलता का समाज की बेहतरी में क्या योगदान रहता है?
अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के इस्लामिक यूथ फेडरेशन ने एक तस्वीर जारी की है, जिसमें औरतों को इस्लाम के पिंजरे में क़ैद पंछी की शक्ल दी गई. बताया गया कि ये पिंजरा ही वो महफ़ूज़ जगह है, जहां औरतें न सिर्फ़ नेकियां कमा सकती हैं बल्कि तमाम 'ज़हरीली' विचारधाराओं से बची रह सकती हैं.
क्या वाकई देश का हिंदू अब इस अवस्था को प्राप्त कर चुका है जहां उसके इंसानी और नागरिक बोध का प्रतिनिधित्व प्रज्ञा ठाकुर जैसों के रूप में होगा?
देश में चुनाव हो रहे हैं और लोकतांत्रिक अधिकारों को लेकर चिंताएं गहराती जा रही हैं. लोग बदहाल ज़िंदगियां जी रहे हैं, बीमारी, भूख, अत्याचार, दुर्घटना और हिंसक हमलों में मारे जा रहे हैं. अपमानित किए जा रहे हैं. उनके अधिकार दिन-ब-दिन कमज़ोर किए जा रहे हैं.
आदिवासी अपनी आस्था, अपने विश्वास, अपने धर्म का बाज़ार कभी नहीं चलाते. संगठित धर्मों और आदिवासियों की आस्था के बीच यह बड़ा फर्क है.
वीडियो: अंतरराष्ट्रीय श्रमजीवी महिला दिवस के अवसर पर अलग-अलग क्षेत्रों में सक्रिय महिलाएं बता रहीं हैं कि उनके लिए इस दिन का क्या मतलब है. बीते साल आए विभिन्न कोर्ट के फ़ैसलों को और महिला आंदोलनों को नारीवाद की दृष्टि से कैसे देखा जा सकता है.
आम महिलाओं के रोज़मर्रा का संघर्ष महिला सशक्तिकरण की कहानियों में जगह क्यों नहीं बना पाता?
13 पॉइंट रोस्टर लागू करने का फ़ैसला देश की अब तक प्राप्त सभी सामाजिक उपलब्धियों को ख़त्म कर देगा. इससे विश्वविद्यालय के स्टाफ रूम समरूप सामाजिक इकाई में बदल जाएंगे क्योंकि इसमें भारत की सामाजिक विविधता को सम्मान देने की कोई दृष्टि नहीं है.
राष्ट्रवाद के शोर के बीच कवि भगवत रावत की एक कविता जिसे अभिनेत्री रत्ना पाठक शाह, निर्देशक तिग्मांशु धूलिया और अभिनेत्री रसिका दुग्गल ने स्वरबद्ध किया है.
पुस्तक समीक्षा: अपनी किताब ‘नो नेशन फॉर वीमेन’ में प्रियंका दुबे इस बात की पड़ताल करती हैं कि कैसे भारत में महामारी की तरह फैले बलात्कार का कारण हवस कम, पितृसत्ता ज़्यादा है. कैसे औरत को ‘उसकी जगह’ दिखाने के लिए बलात्कार का सहारा लिया जाता है.
पटकथा लेखक और गीतकार जावेद अख़्तर ने कहा कि राष्ट्रवाद और देशभक्ति का मतलब सामाजिक रूप से जागरूक होना होता है. यह सिर्फ़ नारा नहीं बल्कि एक जीवनशैली है.
उर्दू वाला चश्मा की 45वीं कड़ी में नूपुर शर्मा सोशल मीडिया की लत पर बात कर रही हैं.
एक मामले की सुनवाई करते हुए दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि अगर कोई कथित थप्पड़ मारने को उकसावा मानता है तो उसे ध्यान रखना चाहिए कि कथित आचरण ऐसा हो कि कोई सामान्य विवेक का व्यक्ति ऐसी स्थिति में आत्महत्या कर ले.
दुनिया में लगातार विकसित और मुखर हो रही नारीवादी सोच की ठोस बुनियाद सावित्रीबाई और उनके पति ज्योतिबा ने मिलकर डाली. दोनों ने समाज की कुप्रथाओं को पहचाना, विरोध किया और उनका समाधान पेश किया.