सरकारी दस्तावेज़ों से पता चलता है कि खरीफ 2020-21 सीजन में सरकार ने 51.91 लाख टन दालें एवं तिलहन खरीदने की योजना बनाई थी, लेकिन इसमें से महज 3.08 लाख टन खरीद हुई है. इसके लिए 10.60 लाख किसानों ने रजिस्ट्रेशन कराया था, लेकिन 1.67 लाख को ही लाभ मिला है.
विशेष रिपोर्ट: कृषि क़ानूनों के विरोध के बीच ख़ुद को 'किसान हितैषी' बताते हुए मोदी सरकार ने फसल बीमा योजना की सफलता के दावे किए हैं. हालांकि दस्तावेज़ दर्शाते हैं कि इस बीच किसानों द्वारा दायर किए गए फसल बीमा दावों को ख़ारिज करने की संख्या में नौ गुना की बढ़ोतरी हुई है, जहां एचडीएफसी ने 86, टाटा ने 90 और रिलायंस ने 61 फीसदी दावों को ख़ारिज किया है.
केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर द्वारा राज्यसभा में पेश किए गए आंकड़ों के अनुसार, प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के तहत साल 2017-18 में किसानों के 92,869 दावों को ख़ारिज किया था. इसके अगले ही साल 2018-19 में आंकड़ा दोगुनी से भी ज्यादा हो गया है और इस दौरान 2.04 लाख दावों को ख़ारिज किया गया.
विशेष रिपोर्ट: उत्तर प्रदेश में धान की ख़रीद शुरू होने पर योगी आदित्यनाथ ने कहा था कि किसी भी किसान को एमएसपी से कम मूल्य पर अपने कृषि उत्पादन नहीं बेचना है. हालांकि सरकारी आंकड़ों के मुकाबले प्रदेश की मंडियों में एमएसपी से कम पर बिक्री तो हो ही रही है, सरकारी ख़रीद भी काफी कम है. रफ़्तार इतनी धीमी है कि ख़रीद केंद्र एक दिन में दो किसानों से भी धान नहीं ख़रीद पा रहे हैं.
विशेष रिपोर्ट: बाजार मूल्य की जानकारी देने वाले कृषि मंत्रालय के पोर्टल से मिले आंकड़ों का विश्लेषण बताता है कि अक्टूबर-नवंबर में एमएसपी से कम दाम पर कृषि उपजों की बिक्री से किसानों को क़रीब 1,881 करोड़ रुपये का घाटा हुआ है. कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ प्रदर्शन कर रहे किसानों की प्रमुख मांग एमएसपी को क़ानूनी अधिकार बनाने की है.
एक्सक्लूसिव रिपोर्ट: बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कृषि क़ानूनों का समर्थन करते हुए कहा है कि उनकी सरकार ने 2006 में एपीएमसी एक्ट ख़त्म कर दिया, जिसका बड़ी संख्या में किसानों को लाभ मिला. हालांकि आधिकारिक दस्तावेज़ों से पता चलता है कि बिहार के कृषि मंत्रालय ने केंद्र को पत्र लिखकर बताया था कि उनके यहां न तो पर्याप्त गोदाम हैं और न ही अनाज ख़रीदने की अच्छी व्यवस्था.
हाल ही में 15 देशों ने आरसीईपी समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं, जिसे दुनिया का सबसे बड़ा व्यापार समझौता माना जा रहा है. इस समूह का प्रबल दावेदार माने जा रहे भारत ने इससे अलग होने का निर्णय लेते हुए कहा कि इससे उसकी चिंताओं का संतोषजनक समाधान नहीं किया गया है.
विशेष रिपोर्ट: सितंबर में विवादित कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ प्रदर्शनों के बीच मोदी सरकार ने छह रबी फसलों के लिए एमएसपी की घोषणा करते हुए इसे ऐतिहासिक कहा था. हालांकि आधिकारिक दस्तावेज़ बताते हैं कि भाजपा शासित राज्यों समेत कई राज्य सरकारों ने इसे मामूली वृद्धि बताते हुए इसका विरोध किया था.
विशेष रिपोर्ट: ख़रीफ फसलों के लिए केंद्र द्वारा घोषित एमएसपी और इस बारे में राज्यों के प्रस्ताव में बड़ा अंतर है. द वायर द्वारा प्राप्त आधिकारिक दस्तावेज़ दिखाते हैं कि भाजपा शासित राज्यों समेत विभिन्न राज्य सरकारों ने केंद्र से बढ़ी उत्पादन लागत के हिसाब से एमएसपी घोषित करने की मांग की थी, जिसे माना नहीं गया.
16 अक्टूबर के अपने आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और दिल्ली में पराली जलाने की घटनाओं की निगरानी के लिए पूर्व जस्टिस मदन लोकुर की अध्यक्षता में एक सदस्यीय समिति गठित की थी.
केंद्र सरकार किसानों द्वारा खरीदी जाने वाली सब्सिडीयुक्त खाद बोरियों की संख्या में कमी लाने की योजना बना रही है. उसका कहना है कि रिटेल स्तर पर उर्वरक बिक्री में अनियमितताओं को रोकने के लिए ऐसा किया जा रहा है. वर्तमान में कोई भी सब्सिडी वाली खाद खरीद सकता है, चाहे वो किसान हो या न हो.
एनसीआरबी के मुताबिक, साल 2019 में देश भर के कुल 10,281 किसानों ने आत्महत्या की थी. इसमें से 3,927 किसान आत्महत्या के मामले महाराष्ट्र के हैं. आंकड़ों के अनुसार, पिछले कई वर्षों में राज्य में हर साल 3500 से अधिक किसान अपनी जान दे देते हैं.
विशेष रिपोर्ट: बीते दिनों कृषि विधेयकों के देशव्यापी विरोध के बीच मोदी सरकार ने रबी फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य की घोषणा की और इसे 'ऐतिहासिक' कहते हुए किसानों को लाभ होने दावा किया. हालांकि राज्यों द्वारा भेजी गई उत्पादन लागत रिपोर्ट बताती है कि यह एमएसपी कई राज्यों की उत्पादन लागत से भी कम है.
इस बार बिहार सरकार द्वारा किसानों से सात लाख टन गेहूं खरीदने का लक्ष्य रखा गया था, लेकिन आंकड़े बताते हैं कि इसकी तुलना में सरकार ने महज़ 0.71 फीसदी गेहूं खरीदा है.
साल 2014 से लेकर अब तक दस राज्यों ने कुल 2.70 लाख करोड़ रुपये के कृषि ऋण को माफ़ करने की घोषणा की थी, लेकिन इसमें से 1.59 लाख करोड़ रुपये के ही क़र्ज़ माफ़ हुए हैं. इसके साथ ही आंकड़े बताते हैं कि 2015 से 2020 के बीच किसानों के क़र्ज़ में लगभग 35 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है.