देश में कोविड-19 महामारी के शुरुआती दिनों में वहां पिछले साल तबलीगी जमात का एक धार्मिक कार्यक्रम हुआ था और इसे पिछले साल 31 मार्च से बंद रखा गया है. दिल्ली वक़्फ़ बोर्ड ने नियमों में ढील दिए जाने की मांग करते हुए अदालत का दरवाज़ा खटखटाया था.
दक्षिण मुंबई की जुमा मस्जिद ट्रस्ट द्वारा दायर याचिका में ट्रस्ट की एक मस्जिद में पांच वक़्त की नमाज़ अदा करने की इजाज़त मांगी गई थी. बॉम्बे हाईकोर्ट ने इससे इनकार करते हुए कहा कि धार्मिक रीति-रिवाज़ों को मनाना या उनका पालन करना महत्वपूर्ण है, लेकिन सबसे महत्वपूर्ण लोक व्यवस्था और लोगों की सुरक्षा है.
दिल्ली हाईकोर्ट ने सोमवार को केंद्र और दिल्ली पुलिस के इस दावे को ख़ारिज कर दिया कि रमज़ान के लिए निज़ामुद्दीन मरकज़ में 200 लोगों की पुलिस-सत्यापित सूची में से केवल 20 लोगों को प्रार्थना के लिए परिसर में प्रवेश करने की अनुमति दी जा सकती है.
दिल्ली स्थित निज़ामुद्दीन मरकज़ को दोबारा खोलने की मांग करते हुए याचिका दायर की गई है. इससे पहले अदालत ने केंद्र, आप सरकार और दिल्ली पुलिस को नोटिस जारी कर स्थिति रिपोर्ट दाख़िल करने के लिए कहा था. पिछले साल मार्च में निज़ामुद्दीन मरकज़ कोरोना हॉटस्पॉट बनकर उभरा था.
महाराष्ट्र में एमबीबीएस के द्वितीय वर्ष के छात्रों के लिए ‘एसेंशियल्स ऑफ मेडिकल माइक्रोबायलॉजी’ में कोरोना वायरस संक्रमण के प्रसार को कथित तौर पर नई दिल्ली में तबलीग़ी जमात के कार्यक्रम से जोड़ा गया था, जिस पर आपत्ति जताई गई थी. लेखकों ने इस संबंध में माफ़ी भी मांगी है.
पिछले साल मार्च में दिल्ली का निज़ामुद्दीन मरकज़ कोरोना हॉटस्पॉट बनकर उभरा था. तबलीग़ी जमात के एक कार्यक्रम में शिरकत करने वाले कई लोगों के कोरोना वायरस से संक्रमित पाए जाने के बाद 31 मार्च, 2020 से ही यह बंद है.
अमेरिकी सरकार के थिंक टैंक फ्रीडम हाउस की रिपोर्ट में कहा गया है कि राजनीतिक अधिकारों और नागरिक स्वतंत्रता में गिरावट 2019 में नरेंद्र मोदी के दोबारा चुने जाने के बाद ही तेज़ हो गई थी और न्यायिक स्वतंत्रता भी दबाव में आ गई थी.
दिल्ली की एक अदालत ने देश में कोविड-19 महामारी के मद्देनज़र जारी सरकारी दिशानिर्देशों का कथित तौर पर पालन नहीं करते हुए तबलीग़ी जमात के कार्यक्रम में शिरकत करने के लिए आरोपों का सामना कर रहे 36 विदेशी नागरिकों को पिछले साल दिसंबर में बरी कर दिया था.
उच्चतम न्यायालय ने उन टीवी कार्यक्रमों पर लगाम लगाने में असफल रहने पर केंद्र सरकार को फटकार लगाई हैए जिनके असर भड़काने वाले होते हैं. शीर्ष अदालत ने कहा कि ऐसी ख़बरों पर नियंत्रण उसी प्रकार से ज़रूरी हैं, जैसे क़ानून और व्यवस्था बनाए रखने के लिए उठाए गए ऐहतियाती उपाय.
सुप्रीम कोर्ट ने कोरोना वायरस के मद्देनज़र कृषि क़ानूनों के विरोध में बड़ी संख्या में दिल्ली की सीमाओं पर प्रदर्शन कर रहे किसानों को लेकर चिंता जताते हुए केंद्र सरकार से पूछा है कि क्या प्रदर्शनकारियों को कोविड-19 से बचाने के लिए एहतियाती कदम उठाए गए हैं.
दिल्ली पुलिस ने तबलीग़ी जमात के सदस्यों के ख़िलाफ़ वीज़ा शर्तों के उल्लंघन, धार्मिक प्रचार गतिविधियों में शामिल होने समेत कई आरोपों को लेकर चार्जशीट दायर की थी. हालांकि कोर्ट ने ठोस सबूत नहीं मिलने पर सभी को बरी कर दिया.
उत्तर प्रदेश के मऊ निवासी युवक पर मार्च महीने में तबलीग़ी जमात के कार्यक्रम में शामिल होने की जानकारी जान-बूझकर स्थानीय प्रशासन को नहीं देने और दिल्ली से घर लौटने पर स्वेच्छा से क्वारंटीन नहीं होने का आरोप था.
पुलिस ने पुनरीक्षण याचिकाएं दायर कर अनुरोध किया था कि जिन अपराधों में 36 विदेशी नागरिकों को आरोपमुक्त किया गया था, उनमें आरोप तय किए जाएं. वहीं, सुप्रीम कोर्ट ने तबलीग़ी जमात के नौ विदेशी सदस्यों के भारत की यात्रा करने पर 10 साल के प्रतिबंध के कर्नाटक उच्च न्यायालय के फैसले को अमान्य कर दिया है.
जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने एक याचिका में केंद्र सरकार पर आरोप लगाया था कि उसने देश में कोरोना वायरस की शुरुआत में अल्पसंख्यकों को निशाना बनाने के लिए फैलाई फेक न्यूज़ रोकने के लिए ज़्यादा कुछ नहीं किया. इसके जवाब में केंद्र ने हलफनामा दाखिल कर कहा था कि अधिकांश प्रमुख राष्ट्रीय समाचार पत्रों ने ‘मोटे तौर पर तथ्यात्मक रिपोर्ट ’ प्रकाशित की थीं और मीडिया के सिर्फ एक छोटे-से वर्ग ने ही ऐसा किया था.
सुप्रीम कोर्ट ने उन याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान यह टिप्पणी की, जिसमें आरोप लगाया गया है कि कोरोना महामारी की शुरुआत के समय तबलीग़ी जमात के आयोजन को लेकर मीडिया का एक वर्ग मुस्लिमों के ख़िलाफ़ सांप्रदायिक वैमनस्य फैला रहा था. मीडिया का बचाव करते हुए केंद्र की ओर से कहा गया है कि याचिकाकर्ता बोलने और अभिव्यक्ति की आज़ादी को कुचलना चाहते हैं.