पतियों द्वारा एक़तरफा तरीके से छोड़ी गई हर औरत की ज़िंदगी दयनीय है. पिछली जनगणना के अनुसार भारत में कुल 23 लाख परित्यक्त औरतें हैं, जो तलाक़शुदा औरतों की संख्या के दोगुने से ज़्यादा है.
विपक्षी दलों ने विधेयक के कई प्रावधानों पर आपत्ति जताई और उन्हें असंवैधानिक बताया और दावा किया कि इसका वास्तविक उद्देश्य मुस्लिम महिलाओं का सशक्तिकरण नहीं करना है बल्कि मुस्लिम पुरुषों को दंडित करना है.
भाजपा के अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ के अनुसार दो 'तीन तलाक प्रमुख' की नियुक्ति हो चुकी है. जो महिलाएं शरीयत और कानून की ठोस जानकारी रखती हैं और तीन तलाक से पीड़ित औरतों के जीवन में सामाजिक बदलाव ला सकती हैं, उन्हें इस काम के लिए चुना जाएगा.
केंद्र की सत्तारूढ़ मोदी सरकार तीन तलाक़ बिल को हाल ही ख़त्म हुए मानसून सत्र में संसद से पारित कराने में असफल रही थी.
उत्तर प्रदेश के बरेली शहर का मामला. मई में मुक़दमा दर्ज करने के बाद ससुराल पक्ष के छह आरोपियों को गिरफ़्तार नहीं किया जा सका. बड़ी बहन ने आरोप लगाया कि केस दर्ज करने के बाद भी पुलिस ने बयान दर्ज नहीं किया.
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को हलाला और बहु विवाह के मामले में जल्द जवाब दाख़िल करने का निर्देश दिया है. मामले में याचिकाकर्ताओं में से एक समीना बेगम की ओर से पेश अधिवक्ता शेखर और अश्विनी उपाध्याय ने कहा कि उनकी मुवक्किल को धमकी दी जा रही है.
आज जैसे तीन तलाक़ में बदलाव की मांग को कट्टरपंथी धड़ा इस्लाम में दख़ल बताता है, कुछ वैसा ही आज़ादी के बाद हिंदू रूढ़ियों में बदलाव किए जाने पर अतिवादियों ने उसे हिंदू धर्म पर हमला बताया था.
विपक्ष ने कहा, तलाक़ एक दीवानी मामला, यह फौज़दारी अपराध नहीं हो सकता. इसे आपराधिक जुर्म बनाने का उद्देश्य महिलाओं का संरक्षण नहीं, मुस्लिमों को प्रताड़ित करना और राजनीतिक लाभ लेना है.
शीतकालीन सत्र की 13 बैठकों के दौरान 41 घंटे से अधिक समय तक उच्च सदन की कार्यवाही चली तो हंगामे के कारण कामकाज के 34 घंटों का नुकसान हुआ.
भारतीय मुस्लिम महिला आंदोलन की सहसंस्थापक ज़किया सोमन कहती हैं कि जो तीन तलाक़ क़ानून का विरोध कर रहे हैं, शायद वे पीड़ित महिलाओं की हालत से वाकिफ़ नहीं हैं.
जन गण मन की बात की 172वीं कड़ी में विनोद दुआ तीन तलाक़ विधेयक के लोकसभा में मंज़ूरी मिलने पर चर्चा कर रहे हैं.
मुस्लिम महिला विवाह अधिकार संरक्षण विधेयक में तीन तलाक़ को दंडनीय अपराध की श्रेणी में रखते हुए तीन वर्ष तक कारावास और जुर्माने का प्रावधान किया गया है.
कुछ लोकसभा सदस्यों ने विधेयक पर आपत्ति जताई लेकिन उन्हें ख़ारिज करते हुए सरकार ने कहा कि यह विधेयक संविधान के बुनियादी ढांचे के तहत है.
बोर्ड ने कहा कि यह बेहद आपत्तिजनक बात है कि केंद्र सरकार ने इस विधेयक का मसौदा तैयार करने से पहले किसी भी मुस्लिम संस्था या किसी भी मुस्लिम विद्वान से कोई राय-मशविरा नहीं किया.
मुस्लिम महिला कार्यकर्ताओं ने कहा, प्रस्तावित क़ानून में तीन तलाक़ के साथ निकाह, हलाला और बहुविवाह भी शामिल हो. सभी दल मिलकर मुस्लिम महिलाओं के मुद्दों का समाधान करें.