मोदी मुझसे बड़े अभिनेता, मैं अपने राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार उन्हें देना चाहता हूं: प्रकाश राज

बाद में अभिनेता ने कहा, ‘मैं मूर्ख नहीं हूं कि ख़ुद को मिले राष्ट्रीय पुरस्कार लौटा दूं. यह मुझे मेरे काम की वजह से मिला है और मुझे इस पर गर्व है.’

पर्याप्त रोज़गार पैदा नहीं होने से देश में बढ़ेगी आय असमानता: अध्ययन

वित्तीय सेवा प्रदाता एमबिट कैपिटल के अध्ययन में बताया गया है कि बेरोज़गारी और असमानता के कारण अपराधों में तेज़ी और सामाजिक तनाव में वृद्धि हो सकती है.

हम गांधी के लायक कब होंगे?

गांधी गाय को माता मानते हुए भी उसकी रक्षा के लिए इंसान को मारने से इनकार करते हैं. उनके ही देश में गोरक्षकों ने पीट-पीट कर मारने का आंदोलन चला रखा है.

अपने ही संसदीय क्षेत्र अमेठी का दौरा करने की राहुल को नहीं मिली अनुमति

ज़िला प्रशासन ने कहा, दुर्गा पूजा और मुहर्रम की वजह से अधिकांश पुलिस बल ड्यूटी पर होगा इसलिए शांति कायम करने में असुविधा होगी.

जो विकास की मांग करते हैं, उन्हें उतनी ​कीमत भी चुकानी चाहिए: अरुण जेटली

टैक्स स्लैब कम करने का संकेत देते हुए वित्त मंत्री ने कहा कि शासन की जीवन रेखा राजस्व है और यही भारत को विकासशील से विकसित अर्थव्यवस्था बनाएगा.

म्यांमार के हिंसाग्रस्त रखाइन में स्कूल खुले, लेकिन अब भी इलाका छोड़ भाग रहे हैं रोहिंग्या

म्यांमार की सरकारी मीडिया में घोषणा की गई कि इलाके में स्थिरता लौट आई है. बीते अगस्त महीने से इलाके में हिंसा जारी ​है.

गुड़गांव में फैक्ट्री टैंक से सहकर्मी को बचाने की कोशिश में तीन लोगों की मौत

घटना सेक्टर 37 औद्योगिक इलाके में जेएनजे इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड में हुई. पुलिस ने कंपनी के अधिकारियों के ख़िलाफ़ दर्ज की प्राथमिकी.

बिगड़ती अर्थव्यवस्था के लिए जेटली से ज़्यादा मोदी ज़िम्मेदार हैं

डूबती अर्थव्यवस्था को लेकर कई भाजपा नेता लगातार वित्त मंत्री पर हमला कर रहे हैं, लेकिन जिन आर्थिक फैसलों से यह स्थिति आई है, उन्हें लेने में प्रधानमंत्री की भूमिका पर एक चुप्पी छाई हुई है.

जितने मुंह, उतनी व्याख्याओं के लिए तैयार है हिंदू धर्म

हिंदू धर्म आज तक अगर प्राणवान रहा है तो राजाओं, अदालतों और पुलिस या लठैतों के बल पर नहीं. उसकी प्राणवत्ता परस्पर विरोधी स्वरों को सुनने और बोलने देने की उसकी तत्परता में रही है. उसे किसी मध्यस्थ की आवश्यकता नहीं.

हृषिकेश मुखर्जी: जिसने सिनेमा के साथ दर्शकों की भी नब्ज़ पढ़ ली थी

हृषिकेश सिनेमा के रास्ते पर आम परिवारों की कहानी की उंगली थामे निकले थे. ये समझाने कि हंसी या आंसुओं को अमीर-गरीब के खांचे में नहीं बांटा जा सकता.