भारतीयों के मन में व्याप्त दोहरापन यही है कि वह ऑस्ट्रेलिया में भारतीय छात्रों पर होने वाली ज़्यादतियों से उद्वेलित दिखते हैं, पर अपने यहां के संस्थानों में आए दिन दलित-आदिवासी या अल्पसंख्यक छात्रों के साथ होने वाली ज़्यादतियों को सहजबोध का हिस्सा मानकर चलते हैं.
विदेशी कामगारों की संख्या में कटौती के लिए तैयार विधेयक के मुताबिक कुवैत की कुल आबादी में भारतीयों की संख्या 15 प्रतिशत से अधिक नहीं होनी चाहिए. वहां विदेशी नागरिकों में सबसे अधिक 14.5 लाख की हिस्सेदारी अकेले भारतीयों की है.
कोविड-19 लॉकडाउन और यात्रा प्रतिबंधों की वजह से विदेशों में फंसे भारतीयों को वापस लाने के लिए केंद्र सरकार ने सात मई से ‘वंदे भारत मिशन’ की शुरुआत की है, लेकिन इस मिशन की सूची में श्रीलंका का नाम न होने से वहां करीब दो महीनों से फंसे भारतीयों में नाराज़गी है.
ट्विटर द्वारा लुमेन डेटाबेस को भेजे गए एक नोटिस से संकेत मिलता है कि आईटी मंत्रालय ने कर्नाटक के दक्षिणी बेंगलुरु से भाजपा सांसद तेजस्वी सूर्या द्वारा साल 2015 में किए गए एक ट्वीट सहित 100 से अधिक ट्वीट को भारत में देखे जाने से प्रतिबंधित करने के लिए कहा था.
बीते 20 अप्रैल को संयुक्त अरब अमीरात में भारत के राजदूत पवन वर्मा ने भारतीय प्रवासियों को सोशल मीडिया पर भड़काऊ संदेश डालने वाले व्यवहार के खिलाफ चेताया था.
आधिकारिक सूत्रों ने बुधवार को कहा कि केंद्र सरकार देशभर में 3 मई तक लागू लॉकडाउन समाप्त होने के बाद खाड़ी देशों एवं अन्य क्षेत्रों में फंसे हजारों भारतीयों को वापस लाने के लिए नौसेना के पोतों के बेड़े के अलावा सैन्य एवं वाणिज्यिक विमानों को तैनात करने की वृहद योजना पर काम कर रही है.
वीडियो: भारत में कोरोनावायरस संक्रमण को सांप्रदायिक रंग दिए जाने के बाद खाड़ी के देशों में काम करने वाले भारतीयों द्वारा सोशल मीडिया पर इसी तरह के पोस्ट लिखने पर इन देशों के पत्रकारों, वकीलों और शाही परिवार के लोगों ने विरोध जताया है. इस बारे में आरफ़ा ख़ानम शेरवानी से गल्फ़ न्यूज़ के संपादक बॉबी नक़वी की बातचीत.
सरकारी सूत्रों ने कहा कि विदेशों में फंसे भारतीयों को संयम रखना होगा, क्योंकि सरकार देश में कोरोना वायरस संक्रमण को फैलने से रोकने के व्यापक नीतिगत फैसले के तहत उन्हें वहां से स्वदेश नहीं ला रही है.
अमेरिकी इतिहास से जुड़ा एक पन्ना बताता है कि मीडिया और बुद्धिजीवियों के एक वर्ग द्वारा समर्थित जातिवादी और सांप्रदायिक ज़हर लंबे समय से राजनीति का खाद-पानी है.
अमेरिकी सरकार की ओर से जारी एक रिपोर्ट के अनुसार विभिन्न कानून प्रवर्तन एजेंसियों ने राष्ट्रीय सुरक्षा या जन सुरक्षा के लिए खतरे के रूप में करीब 10 हजार भारतीयों की पहचान की, उनमें से 831 को अमेरिका से बाहर निकाल दिया गया.
सूचना की स्वतंत्रता क़ानून के तहत यूएस सिटिजनशिप एंड इमीग्रेशन सर्विसेज नेशनल रिकॉर्ड्स सेंटर से प्राप्त सूचना के अनुसार साल 2014 से अमेरिका में शरण मांगने वाले कुल भारतीयों में 15,436 पुरुष और 6,935 महिलाएं शामिल हैं.
आरोप है कि इन सभी भारतीयों ने कथित तौर पर पिछले कुछ महीनों में इंटरनेशनल एजेंटों की मदद से ग़ैरक़ानूनी ढंग से मेक्सिको में प्रवेश किया था, ताकि वहां से अमेरिका में प्रवेश कर सकें.
सरकार द्वारा आर्थिक सुधारों की घोषणा के बाद विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों ने सितंबर महीने में 6,557.80 करोड़ रुपये की शुद्ध खरीदारी की थी. हालांकि, इसके बाद अक्टूबर में दोबारा वे अपनी पूंजी निकालने लगे हैं.
मई 2014 में नरेंद्र मोदी सरकार के आने के बाद से अब तक 45 अरब डॉलर से ज़्यादा की राशि विदेश भेजी जा चुकी है. वहीं यूपीए के दूसरे कार्यकाल के दौरान पांच सालों में विदेश भेजी गई कुल राशि 5.45 अरब डॉलर थी.
अरुण जेटली को एनडीए बनाम यूपीए सरकार के झगड़े से निकलकर भूमंडलीय आर्थिक खतरों के काले बादलों पर ध्यान लगाना चाहिए. यह पिछली सरकार के प्रदर्शन से तुलना करके अपनी पीठ थपथपाने का वक्त नहीं है.