भारत के विश्वविद्यालयों में अकादमिक स्वतंत्रता पर गंभीर संकट है

देश के विश्वविद्यालय ख़ासकर केंद्रीय विश्वविद्यालय एक प्रकार से केंद्र सरकार के ‘विस्तारित कार्यालय’ में तब्दील कर दिए गए हैं. कोई भी अकादमिक विभाग बिना प्रशासन की ‘छन्नी’ से गुजरे किसी भी प्रकार का आयोजन नहीं कर सकता.

अगर विश्वविद्यालय सार्वजनिक तौर पर विचारों की अभिव्यक्ति रोके तो वह अपने उद्देश्य से विमुख है

सार्वजनिक हित और सत्ता में हमेशा तनाव रहता है. बल्कि कई बार सत्ता अपने हित को ही सार्वजनिक हित मानने के लिए बाध्य करती है. जनता को इस द्वंद्व के प्रति सजग रखना ज्ञान के क्षेत्र में काम करने वालों का काम है. उनका सार्वजनिक बोलना या लिखना उनके लिए नहीं जनता के हित के लिए ज़रूरी है.

जेएनयू शिक्षक संघ ने शैक्षणिक मानकों, उत्पीड़न, प्रमोशन समेत कई मुद्दों पर चिंता जताई

जेएनयूटीए ने एक नई रिपोर्ट में विश्वविद्यालय को प्रभावित करने वाले कई मुद्दों को उठाया है. शिक्षक इस बिगड़ती स्थिति की वजह प्रशासनिक उदासीनता को मानते हैं.