जेएनयू शिक्षक संघ ने शैक्षणिक मानकों, उत्पीड़न, प्रमोशन समेत कई मुद्दों पर चिंता जताई

जेएनयूटीए ने एक नई रिपोर्ट में विश्वविद्यालय को प्रभावित करने वाले कई मुद्दों को उठाया है. शिक्षक इस बिगड़ती स्थिति की वजह प्रशासनिक उदासीनता को मानते हैं.

जेएनयूटीए के कार्यालय में रखे प्लेकार्ड. (फोटो: स्पेशल अरेंजमेंट)

जेएनयूटीए ने एक नई रिपोर्ट में विश्वविद्यालय को प्रभावित करने वाले कई मुद्दों को उठाया है. शिक्षक इस बिगड़ती स्थिति की वजह प्रशासनिक उदासीनता को मानते हैं.

जेएनयूटीए के कार्यालय में रखे प्लेकार्ड. (फोटो: स्पेशल अरेंजमेंट)

नई दिल्ली: जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय शिक्षक संघ (जेएनयूटीए) ने शुक्रवार (22 सितंबर) को शैक्षणिक मानकों, नियमों के उल्लंघन, प्रवेश मुद्दों और कम विविधता सहित विश्वविद्यालय की बिगड़ती स्थिति पर चिंता जताई.

संगठन ने ‘जेएनयू: द स्टेट ऑफ द यूनिवर्सिटी’ शीर्षक से एक रिपोर्ट जारी की, जिसमें विश्वविद्यालय को प्रभावित करने वाले महत्वपूर्ण मुद्दों के साथ शासन संबंधी चिंताओं से लेकर शैक्षणिक अनियमितताएं भी शामिल हैं.

एक बयान में जेएनयूटीए ने कहा, “… 2016 से शुरू हुई विश्वविद्यालय की बर्बादी की प्रक्रिया फरवरी 2022 में कुलपति बदलने के बाद भी जारी रही है.’

बयान में आगे कहा गया, “इस बर्बादी में विश्वविद्यालय की संस्थागत और शैक्षणिक प्रकृति में आई गिरावट और सामाजिक समानता के प्रवर्तक के रूप में इसकी भूमिका- जो विश्वविद्यालय की पहचान थे, जिसने एक प्रमुख उच्च शिक्षा संस्थान के रूप में स्थापित होने के लिए महत्वपूर्ण भूमिका अदा की, की गिरावट शामिल हैं.

जेएनयूटीए अध्यक्ष डीके लोबियाल ने द वायर से  कहा,’शांतिश्री पंडित (वर्तमान कुलपति) के 2022 में जेएनयू आने के बाद क्या हुआ? हमने सोचा था कि कुछ बड़ा बदलाव होगा, लेकिन कुछ नहीं हुआ. जिस तरह से नियुक्तियां की जाती हैं, भर्तियां की जाती हैं, उसमें कुछ नहीं बदला. और तो और लोग अपने प्रमोशन के लिए सात से 10 साल से इंतजार कर रहे हैं. प्रमोशन भी बहुत चुनिंदा ढंग से किया जाता है. इसलिए, लोग इंतजार कर रहे हैं और यह भी रिपोर्ट के एक हिस्से में दर्ज किया गया है.’

रिपोर्ट में आरोप लगाया गया है कि शिक्षकों को किसी भी मामले में उत्पीड़न का शिकार होना पड़ता है.

रिपोर्ट कहती है, ‘शैक्षणिक उद्देश्यों के लिए शिक्षकों को मिलने वाली छुट्टी उनके शैक्षणिक बेहतरी और उपलब्धियों के लिए दी गई एक सुविधा है, जो अंततः उच्च शिक्षा संस्थानों को ही फायदा पहुंचाती है. जब तक कोई विशेष जरूरत न हो, तब तक किसी भी फैकल्टी सदस्य की किसी भी छुट्टी को नियमित रूप से दिए जाने की उम्मीद की जाती है, जिसका वो पात्र हों.’

हालांकि, ऐसे अवकाश पर प्रतिबंध लगा दिया गया है.

जेएनयू के प्रोफेसर सुरजीत मजुमदार ने द वायर को बताया कि छुट्टी मांगना उत्पीड़न के समान है.

उन्होंने कहा. ‘अवकाश देने की प्रक्रिया, प्रमोशन की प्रक्रिया, या ऐसा कोई भी मामला जो शिक्षकों को उठाना होता है, उन्हें हर तरह के उत्पीड़न का शिकार होना पड़ता है. कोई नहीं जानता कि फाइल कहां है, आवेदन कहां जा रहा है. लोगों को प्रशासनिक कार्यालयों में इधर-उधर दौड़ना पड़ता है और उस प्रक्रिया में लंबा समय ज़ाया करना पड़ता है. प्रशासन ने इस तरह की असंवेदनशीलता पैदा कर दी है, जहां कोई जवाबदेही नहीं है,’

शिक्षकों के अनुसार, ऐसी भयावह स्थिति का कारण नौकरशाही और प्रशासनिक उदासीनता है.

रिपोर्ट कहती है कि वैधानिक समर्थन के बिना ‘अवकाश समिति’ की शुरूआत ने शैक्षणिक अवकाश प्रक्रियाओं में बाधा डाली है, जिसके परिणामस्वरूप अनुचित मांगें और देरी सामने आई है. रिपोर्ट में कहा गया है कि इसके अतिरिक्त, 48 शिक्षकों को आरोप पत्र जारी किया गया था, जिसमें आरोप लगाया गया था कि उन्होंने ‘अवैध’ विरोध प्रदर्शन में भाग लिया था.

इसमें कहा गया है कि अदालत के हस्तक्षेप होने तक उनके पेंशन लाभ रोक दिए गए थे. इसके अलावा, सेवानिवृत्त शिक्षकों को एमेरिटस प्रोफेसर के रूप में मानद नियुक्तियों के जरिये योगदान के लिए मान्यता देने से वंचित कर दिया जाता है.

हाल के वर्षों में जेएनयू प्रशासन में बड़े पैमाने पर बदलाव देखे गए हैं. रिपोर्ट के मुताबिक, इन बदलावों के दूरगामी परिणाम होंगे.

सबसे महत्वपूर्ण चिंताओं में से एक चेयरपर्सन और डीन की नियुक्ति के लिए वरिष्ठता-आधारित रोटेशन प्रणाली को दरकिनार कर देना है – एक ऐसी प्रथा जिसने शैक्षणिक और कार्यकारी परिषदों जैसे प्रमुख वैधानिक निकायों संबंधी निर्णय लेने की व्यवस्था और फैकल्टी के प्रतिनिधित्व को खत्म कर दिया है.

रिपोर्ट में कहा गया है कि यह प्रथा अदालती आदेशों और नियमों की अवहेलना करते हुए अब भी जारी है.

इसके अलावा, कोविड-19 महामारी के दौरान ऑनलाइन बैठकों ने पारदर्शिता और सार्थक चर्चाओं पर सवाल खड़े कर दिए हैं, क्योंकि एजेंडा-संचालित कामों को फ़ौरन मंजूरी दे दी जाती है, और अक्सर महत्वपूर्ण मामलों को छोड़ दिया जाता है.

रिपोर्ट के मुताबिक, बैठकें अक्सर नियामक मानकों को पूरा करने में विफल रहती हैं, क्योंकि कई आपातकालीन बैठकें औपचारिकता के लिए होती हैं. रिपोर्ट में आरोप लगाया गया है कि ये समस्याएं विश्वविद्यालय में संस्थागत स्वायत्तता और शासन बनाए रखने में आ रही मुश्किलों को उजागर करती हैं.

पिछले प्रशासन के दौरान भी विश्वविद्यालय में फैकल्टी के प्रमोशन को लेकर सवाल और विवाद उठते रहे हैं.

रिपोर्ट में उल्लेख किया गया है कि फरवरी 2022 में वीसी बदलने के बाद जेएनयूटीए के एक अध्ययन से पता चला था कि 276 फैकल्टी सदस्य, मुख्य रूप से सहायक और एसोसिएट प्रोफेसर, पदोन्नति के पात्र थे. उनमें से 76.4% लोग चार साल से अधिक समय से प्रमोशन के इंतज़ार में थे. इसके अलावा, 62% उस स्तर पर थे जहां उनकी अगली पदोन्नति भी ड्यू थी.

रिपोर्ट आगे कहती है कि पदोन्नति प्रक्रियाएं फिर से शुरू हो गई हैं, लेकिन बहुत धीमे काम हो रहा है. रिपोर्ट में कहा गया है कि चार नियमित बैठकों में कार्यकारी परिषद ने प्रमोशन के 91 मामलों पर विचार किया, जहां एक को अस्वीकार कर दिया गया. हालांकि लंबित मामलों की तुलना में जिन मामलों को प्रोसेस किया गया है, उनकी संख्या काफी कम है.

जेएनयूटीए की पूरी रिपोर्ट को नीचे दिए गए लिंक पर पढ़ सकते हैं.

JNU State of the University… by Taniya Roy

 (इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)

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