उत्तर प्रदेश के मुज़फ़्फ़रनगर का मामला. मुस्लिम युवक के ख़िलाफ़ पहले से शादीशुदा महिला से शादी करने को लेकर धर्मांतरण विरोधी क़ानून के तहत मामला दर्ज किया गया था. इलाहाबाद हाईकोर्ट का कहा कि महिला वयस्क हैं और वह अपना भला-बुरा अच्छी तरह समझती हैं.
उत्तर प्रदेश पुलिस द्वारा रासुका के तहत गिरफ़्तार किए गए डॉ. कफ़ील ख़ान की हिरासत रद्द कर उन्हें तत्काल रिहा किए जाने के इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश को राज्य सरकार ने शीर्ष अदालत में चुनौती दी थी, जिसे सीजेआई एसए बोबड़े की अगुवाई वाली पीठ द्वारा ख़ारिज कर दिया गया.
एक मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिया गया यह निर्णय इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि हाल के महीनों में विपक्ष शासित आठ राज्य सरकारों द्वारा उनके राज्य में मामलों की जांच के लिए सीबीआई को दी गई ‘आम सहमति’ वापस ली गई है.
उत्तर प्रदेश के अधिकारियों को फटकार लगाते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि लगता है कि अधिकारी पहली बार में आदेश का अनुपालन नहीं करने के आदी हो रहे हैं. यह बहुत खेदपूर्ण स्थिति है.
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने याचिका ख़ारिज करते हुए कहा कि इस महामारी के बीच जब कोर्ट सीमित स्टाफ के साथ काम कर रही है तो इस तरह की याचिका दायर कर कोर्ट का बहुमूल्य समय नष्ट किया जा रहा है.
300 साल पुराना जन्मस्थान मंदिर 1980 के दशक में शुरू हुए रामजन्मभूमि आंदोलन के पहले राम के जन्म से जुड़ा था और एक मुस्लिम ज़मींदार द्वारा दान दी गई ज़मीन पर बनाया गया था. यह राम की सह-अस्तित्व वाली उस अयोध्या का प्रतीक था, जिसका नामो-निशान अब नज़र नहीं आता.
वीडियो: उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में पिछले साल दिसंबर में कथित भड़काऊ भाषण देने के मामले में 29 जनवरी को डॉ. कफ़ील ख़ान को गिरफ़्तार किया गया था. बीते एक सितंबर को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उन पर लगाए राष्ट्रीय सुरक्षा क़ानून को रद्द कर उन्हें रिहा करने का आदेश दिया था. रिहा होने के बाद डॉ. कफ़ील से आरफ़ा ख़ानम शेरवानी की बातचीत.
एएमयू में सीएए के ख़िलाफ़ कथित 'भड़काऊ भाषण' देने के आरोप में जनवरी से मथुरा जेल में बंद डॉ. कफ़ील ख़ान को हाईकोर्ट के आदेश के बाद मंगलवार देर रात रिहा कर दिया गया. उनका कहना है कि उन्हें इतने दिन जेल में इसलिए रखा गया क्योंकि वे प्रदेश की स्वास्थ्य व्यवस्थाओं की कमियों को उजागर करते रहते हैं.
उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में पिछले साल दिसंबर में कथित तौर पर भड़काऊ भाषण देने के मामले में 29 जनवरी को डॉ. कफ़ील ख़ान को गिरफ़्तार किया गया था. 10 फरवरी को इलाहाबाद हाईकोर्ट से ज़मानत मिलने के बाद रिहा करने के बजाय उन पर रासुका लगा दिया गया था.
सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने कहा कि इस तरह के आदेश से अव्यवस्था फैलेगी और एक समुदाय विशेष को कोरोना वायरस फैलाने के लिए निशाना बनाया जाने लगेगा. हम ऐसा नहीं चाहते.
बीते जून में न्यूज़ वेबसाइट ‘स्क्रोल’ की कार्यकारी संपादक सुप्रिया शर्मा के ख़िलाफ़ यूपी पुलिस ने एससी/एसटी (अत्याचार निवारण) क़ानून और आईपीसी की विभिन्न धाराओं के तहत केस दर्ज़ किया था. इलाहबाद हाईकोर्ट ने उन्हें गिरफ़्तारी से संरक्षण देते हुए एफआईआर रद्द करने की उनकी याचिका को नामंज़ूर कर दिया है.
गोरखपुर की ज़िला अदालत ने एक गैंगरेप मामले में योगी आदित्यनाथ के भड़काऊ भाषण पर याचिका डालने वाले कार्यकर्ता परवेज परवाज़ को आजीवन कारावास की सजा सुनाई है. उनके साथियों का कहना है कि भाजपा नेताओं के ख़िलाफ़ याचिका डालने के चलते उन्हें फ़र्ज़ी मामले में फंसाया जा रहा है.
वीडियो: डॉ. कफ़ील ख़ान बीते दिसंबर में एएमयू में हुए एंटी-सीएए प्रदर्शन में कथित भड़काऊ टिप्पणी करने के लिए गिरफ़्तार किया गया था. फरवरी में उन्हें ज़मानत मिली लेकिन जेल से बाहर आने के कुछ घंटे बाद उन पर एनएसए लगा दिया गया. इस बारे में द वायर की सीनियर एडिटर आरफ़ा ख़ानम़ शेरवानी का नज़रिया.
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में उत्तर प्रदेश सरकार से 16 जुलाई तक जवाब दायर करने को कहा है. कोर्ट ने कहा कि जिस तरह उन्होंने तेलंगाना एनकाउंटर मामले में जांच कमेटी बनाई, वैसा ही कुछ इस मामले में भी कर सकते हैं.
इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने कहा कि यूपी सरकार ने विकास दुबे के कथित एनकाउंटर की जांच के लिए एसआईटी और न्यायिक आयोग का गठन पहले ही कर दिया है, इसलिए मौजूदा रिट याचिका ख़ारिज की जाती है.