‘द वायर’ में प्रकाशित रोहिणी सिंह की रिपोर्ट पर जय अमित शाह का जवाब.
विशेष रिपोर्ट: नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री और अमित शाह के भाजपा अध्यक्ष बनने के बाद अमित शाह के बेटे जय शाह के व्यवसाय में अप्रत्याशित बढ़ोत्तरी दर्ज की गई.
क्या अंग्रेज़ी अख़बारों में छपी ख़बरों का हिंदी में अनुवाद करने पर भी मानहानि हो जाती है? अनुवाद की ख़बरों या पोस्ट से मानहानि का रेट कैसे तय होता है, शेयर करने वालों या शेयर किए गए पोस्ट पर लाइक करने वालों पर मानहानि का रेट कैसे तय होता है?
विशेष साक्षात्कार: ‘फिक्शन आॅफ फैक्ट फाइंडिंग: मोदी एंड गोधरा’ किताब केे लेखक मनोज मिट्टा से चर्चा कर रहे हैं द वायर के संस्थापक संपादक सिद्धार्थ वरदराजन.
माकपा पोलित ब्यूरो सदस्य प्रकाश करात का आरोप, राजनीतिक मुकाबले में नाकाम भाजपा की पदयात्रा राज्य में दंगे भड़काने की कवायद.
भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने माकपा की कथित हिंसा के विरोध में 15 दिन की पदयात्रा शुरू की, माकपा ने लगाया तनाव फैलाने का आरोप.
2019 के चुनावों से 18 महीने पहले, भारत की राजनीतिक अर्थव्यवस्था पूरी तरह से लड़खड़ाई हुई दिखाई दे रही है, लेकिन नरेंद्र मोदी द्वारा लगातार 2022 तक पूरे किए जाने वाले नामुमकिन वादों की झड़ी लगाने का सिलसिला जारी है.
तृणमूल कांग्रेस के राज्यसभा सदस्य और पूर्व रेल मंत्री मुकुल रॉय को पार्टी विरोधी गतिविधियों के चलते पार्टी से छह साल के लिए निलंबित कर दिया गया.
गुजरात में साल 2002 में हुए दंगा मामले में पूर्व मंत्री कोडनानी की ओर से बतौर गवाह पेश हुए भाजपा अध्यक्ष अमित शाह.
भाजपा गुजरात में जातिगत समीकरण साधने के लिए अन्य पिछड़ा वर्ग और ओबीसी पर ध्यान केंद्रित करेगी.
आज-कल भारत में बेवकूफ़ी का घुटनों-घुटनों कीचड़ है. किसी भी आज़ाद ख़्याल का यहां चलना मुश्किल हो गया है.
साल 2002 के नरोदा गाम दंगा मामले में मुख्य आरोपी माया कोडनानी ने अदालत से अमित शाह को अपने गवाह के तौर पर बुलाने की अपील की थी.
ओडिशा में पार्टी को मज़बूत बनाने में लगे भाजपा अध्यक्ष बोले, 2014 के बाद कई राज्यों में मिले शानदार जनादेश दर्शाते हैं कि लोग देश के विकास से प्रभावित हैं.
कुछ मेडिकल कॉलेजों के एडमिशन पर रोक लगाई गई थी. कॉलेज घूस देकर फैसला बदलवाना चाहते थे. इसमें इंडिया टीवी के पत्रकार हेमंत शर्मा का नाम आया था.
मध्य प्रदेश के मीडिया में सरदार सरोवर बांध के डूब क्षेत्र में आए निसरपुर के विस्थापन का शोर 2004 के हरसूद जैसा नहीं है, जबकि चैनल और अख़बार पहले से कहीं ज़्यादा हैं.