कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: जिन मूल्यों को हमारे संविधान ने हमारी परंपराओं, स्वतंत्रता-संग्राम की दृष्टियों और आधुनिकता आदि से ग्रहण, विन्यस्त और प्रतिपादित किया था वे मूल्य आज धूमिल पड़ रहे हैं. स्वतंत्रता-समता-न्याय-भाईचारे के मूल्य सभी संदेह के घेरे में ढकेले जा रहे हैं.
आज की संवेदनशीलता में प्रेमचंद के साहित्य में वर्णित स्त्रियां निश्चित रूप से परंपरा या पितृसत्ता के हाथों अपने अस्तित्व को मिटाती हुई नज़र आएंगी, पर उनके कथ्य को ऐतिहासिक गतिशीलता में रखकर देखें, तो नज़र आता है कि ये स्त्रियां अपने समय की परिधि, अपनी भूमिका को विस्तृत करती हैं, ऐसे समय में जब ये परिधियां अत्यंत संकरी थीं.
रिज़र्व बैंक कर्मचारी यूनियन की ओर से कहा गया है कि इस तरह के संवेदनशील और महत्वपूर्ण पदों पर नियुक्ति का फैसला मंत्रालय के कुछ अधिकारियों द्वारा नहीं किया जाना चाहिए. न ही वित्त मंत्री को यह काम करना चाहिए.
जिस प्रकार कृषि क्षेत्र में ऋण से बढ़ते तनाव ने किसान आत्महत्या की समस्या पैदा की, स्कूल शिक्षा में परीक्षाओं और मेरिट के दबाव ने स्कूली विद्यार्थियों में आत्महत्याओं को जन्म दिया, तनाव निर्माण की उसी कड़ी में सरकार ने कॉलेज और विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों और शिक्षकों को झोंकने की तैयारी कर ली है.
‘स्वायत्तता’ के आगमन के साथ-साथ अब अकादमिक संस्थान दुकानों में तब्दील कर दिए जाएंगे, जहां बाज़ार की ज़रूरतों के अनुरूप कोर्स गढ़े जाएंगे और उसी के अनुसार उनकी फीस तय होगी.
नेशनल कांफ्रेंस अध्यक्ष फारूक अब्दुल्ला ने कहा, अगर केंद्र सरकार कश्मीरी लोगों का दिल जीतना चाहती है तो राज्य की स्वायत्तता बहाल करनी चाहिए.