प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सदन में घोषणा करने के बाद गृहमंत्री अमित शाह ने बताया कि ट्रस्ट में 15 न्यासी होंगे, जिनमें से एक हमेशा दलित होगा. वहीं, उत्तर प्रदेश सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड को अयोध्या से 22 किलोमीटर दूर रौनाही में ज़मीन देने के प्रस्ताव को मंज़ूरी दी है.
केंद्रीय गृह मंत्रालय के आदेश के मुताबिक, अतिरिक्त सचिव ज्ञानेश कुमार के नेतृत्व में अयोध्या और इससे जुड़े अदालती फैसलों से संबंधित मामलों पर गौर करने के लिए विशेष डेस्क बनाई गई है. ज्ञानेश कुमार गृह मंत्रालय में जम्मू कश्मीर और लद्दाख मामलों के विभाग के भी प्रमुख हैं.
19 दिसंबर 1927 को स्वतंत्रता संग्राम सेनानी अशफ़ाक़उल्ला ख़ां को फ़ैज़ाबाद जेल में फांसी दी गई थी. अयोध्या में उनके शहादत स्थल पर हर साल आयोजित होने वाले सभी श्रद्धांजलि कार्यक्रमों व समारोहों पर नागरिकता संशोधन क़ानून को लेकर प्रदर्शन की आशंका के चलते रोक लगा दी गई है.
मामला दक्षिण कन्नड़ ज़िले का है, जहां आरएसएस नेता द्वारा संचालित एक स्कूल के वार्षिक कार्यक्रम में बच्चों ने बाबरी विध्वंस का नाट्य रूपांतरण प्रस्तुत किया था. पुदुचेरी की उपराज्यपाल किरन बेदी भी इस कार्यक्रम का हिस्सा थीं, जिसके लिए माकपा ने उनके इस्तीफ़े की मांग की है.
कोर्ट ने कहा कि इन याचिकाओं में कोई मेरिट नहीं है. कई मुस्लिम पक्ष, 40 कार्यकर्ता, हिंदू महासभा और निर्मोही अखाड़ा ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को चुनौती दी थी.
अखिल भारत हिंदू महासभा की ओर से दायर याचिका में कहा गया है कि विवादित ढांचे पर मुसलमानों का कोई अधिकार या मालिकाना हक़ नहीं है और इसलिए उन्हें पांच एकड़ ज़मीन आवंटित नहीं की जा सकती तथा किसी भी पक्षकार ने इस तरह की कोई ज़मीन मुसलमानों को आवंटित करने के लिए कोई अनुरोध या कोई दलील नहीं दी थी.
वीडियो: 6 दिसंबर 2019 को बाबरी मस्जिद विध्वंस के 27 साल पूरे हो गए. हम भी भारत की इस कड़ी में द वायर की सीनियर एडिटर आरफ़ा ख़ानम शेरवानी की इस बारे में सामजिक कार्यकर्ता हर्ष मंदर और वरिष्ठ पत्रकार कुर्बान अली से बातचीत कर रही हैं.
इससे पहले मूल वादकारियों में शामिल एम. सिद्दीक के वारिस और उत्तर प्रदेश जमीयत उलमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना सैयद अशहद रशीदी ने बीते दो दिसंबर को पुनर्विचार याचिका दायर की थी.
6 दिसंबर 1992 को सिर्फ एक मस्जिद नहीं गिरायी गई थी, उस दिन संविधान की बुनियाद पर खड़ी लोकतंत्र की इमारत पर भी चोट की गई थी. अतीत में जो कुछ हुआ उसे फिर से उलट-पलट कर देखने का मौका साहित्य देता है. हिंदी साहित्य में यह घटना भी कई रूपों में दर्ज है.
सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता और अयोध्या विवाद में मुस्लिम पक्ष के वकील राजीव धवन ने मंगलवार को सोशल मीडिया पर लिखा था कि उन्हें जमीयत प्रमुख मौलाना अरशद मदनी के इशारे पर उनके वकील एजाज़ मकबूल द्वारा इस मामले से हटा दिया गया है.
सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव धवन ने सोशल मीडिया पर लिखा कि उन्हें जमीयत प्रमुख मौलाना अरशद मदनी के इशारे पर उनके वकील एजाज़ मकबूल द्वारा इस मामले से हटा दिया गया. उन्हें ऐसा करने का अधिकार है, लेकिन इसके लिए बताई जा रही वजह दुर्भावना से भरी और झूठी है. अब वे इस मामले में दायर पुनर्विचार याचिका से किसी तरह से नहीं जुड़े हैं.
उत्तर प्रदेश जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना सैयद अशहद रशीदी की ओर से दायर याचिका में कहा गया है कि यद्यपि अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने बाबरी मस्जिद के गुंबदों को नुकसान पहुंचाने और उसे गिराने का संज्ञान लिया, फिर भी विवादित स्थल को उसी पक्ष को सौंप दिया, जिसने अनेक ग़ैरक़ानूनी कृत्यों के आधार पर अपना दावा किया था.
राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद मामले में प्रमुख मुस्लिम पक्षकार रहे उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष ने कहा कि बोर्ड के आठ में से सात सदस्यों ने हिस्सा लिया. उनमें से एक सदस्य को छोड़कर बाकी छह सदस्यों ने अयोध्या मामले में उच्चतम न्यायालय के फैसले को चुनौती न देने के प्रस्ताव का समर्थन किया.
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने कहा कि अयोध्या जमीन विवाद मामले में जो फैसला आया उसने न्याय नहीं किया.
सुप्रीम कोर्ट भी विवादित भूमि रामलला को देते हुए यह नहीं सोचा कि उसका फ़ैसला न सिर्फ छह दिसंबर, 1992 के ध्वंस बल्कि 22-23 दिसंबर, 1949 की रात मस्जिद में मूर्तियां रखने वालों की भी जीत होगी. ऐसे में अदालत का इन दोनों कृत्यों को ग़ैर-क़ानूनी मानने का क्या हासिल है?