भारत की आपराधिक न्याय प्रणाली को बदलने के लिए लाए गए तीन विधेयक मूल रूप से पुराने क़ानूनों के प्रावधानों की ही प्रति है पर इन नए क़ानूनों में कुछ विशेष बदलाव है जो इन्हें ब्रिटिश क़ानूनों से भी ज़्यादा ख़तरनाक बनाते हैं.
1872 के भारतीय साक्ष्य अधिनियम की जगह लेने वाले भारतीय साक्ष्य (बीएस) विधेयक में कहा गया है कि मंत्रियों और भारत के राष्ट्रपति के बीच किसी भी विशेषाधिकार संचार को किसी भी न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत करने की आवश्यकता नहीं होगी. हालांकि यह संविधान के अनुच्छेद 74 (2) में भी कहा गया है, लेकिन केंद्र इसे साक्ष्य पुस्तिका का हिस्सा बनाकर क़ानूनी समर्थन देना चाहता है.