मंत्रियों-राष्ट्रपति के बीच विशेषाधिकार संचार पर अदालतें नहीं कर सकेंगी पूछताछ: नया क़ानून

1872 के भारतीय साक्ष्य अधिनियम की जगह लेने वाले भारतीय साक्ष्य (बीएस) विधेयक में कहा गया है कि मंत्रियों और भारत के राष्ट्रपति के बीच किसी भी विशेषाधिकार संचार को किसी भी न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत करने की आवश्यकता नहीं होगी. हालांकि यह संविधान के अनुच्छेद 74 (2) में भी कहा गया है, लेकिन केंद्र इसे साक्ष्य पुस्तिका का हिस्सा बनाकर क़ानूनी समर्थन देना चाहता है.

भारतीय संसद. (फोटो साभार: ट्विटर/@g20org)

1872 के भारतीय साक्ष्य अधिनियम की जगह लेने वाले भारतीय साक्ष्य (बीएस) विधेयक में कहा गया है कि मंत्रियों और भारत के राष्ट्रपति के बीच किसी भी विशेषाधिकार संचार को किसी भी न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत करने की आवश्यकता नहीं होगी. हालांकि यह संविधान के अनुच्छेद 74 (2) में भी कहा गया है, लेकिन केंद्र इसे साक्ष्य पुस्तिका का हिस्सा बनाकर क़ानूनी समर्थन देना चाहता है.

(फोटो साभार: ट्विटर)

नई दिल्ली: प्रस्तावित भारतीय साक्ष्य (बीएस) विधेयक, जो 1872 के भारतीय साक्ष्य अधिनियम की जगह लेने वाला है, ‘अदालतों को मंत्रियों और भारत के राष्ट्रपति के बीच किसी भी विशेषाधिकार प्राप्त संचार की जांच करने से रोकता है.’

द हिंदू की रिपोर्ट कहती है, ‘हालांकि यह संविधान के अनुच्छेद 74 (2) में कहा गया है, लेकिन केंद्र सरकार इसे साक्ष्य पुस्तिका का हिस्सा बनाकर कानूनी समर्थन देना चाहती है.’ रिपोर्ट कहती है कि सरकार ने स्पष्ट रूप से परिभाषित नहीं किया है कि ‘विशेषाधिकार प्राप्त संचार’ क्या है और इस प्रावधान को व्याख्या के लिए खुला छोड़ दिया गया है.

विधेयक धारा 165 में एक प्रावधान जोड़ता है, जो अदालत के आदेश पर ‘दस्तावेजों के प्रस्तुतिकरण’ से संबंधित है.

विधेयक में कहा गया है, ‘किसी दस्तावेज को पेश करने के लिए बुलाया गया गवाह, यदि वह उसके कब्जे या आधिपत्य में है, उसे अदालत में लाएगा, भले ही इसके प्रस्तुतिकरण या इसकी स्वीकार्यता पर कोई आपत्ति हो. बशर्ते किसी भी न्यायालय को मंत्रियों और भारत के राष्ट्रपति के बीच किसी भी विशेषाधिकार संचार को उसके समक्ष प्रस्तुत करने की आवश्यकता नहीं होगी.’

विधेयक, दो अन्य आपराधिक संहिताओं – भारतीय न्याय संहिता विधेयक 2023 और भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता विधेयक 2023 – के साथ क्रमश: भारतीय दंड संहिता 1860 और आपराधिक प्रक्रिया संहिता 1898 की जगह लेगा. इन्हें 4 दिसंबर से शुरू होने वाले संसद के शीतकालीन सत्र में पेश किए जाने की उम्मीद है.

विधेयक 11 अगस्त को संसद में पेश किए गए थे और जांच के लिए गृह मामलों की संसदीय स्थायी समिति को भेजे गए थे. नवंबर में समिति द्वारा अंतिम रूप दी गई रिपोर्ट के अनुसार, विधेयक में भारतीय साक्ष्य अधिनियम 1872 की चार धाराओं को हटा दिया गया है, जिनमें औपनिवेशिक संदर्भ और अन्य पुरानी प्रक्रियाएं शामिल हैं.

केंद्रीय गृह सचिव ने भारतीय साक्ष्य अधिनियम के संबंध में विधेयक में पेश किए गए प्रमुख बदलावों पर प्रकाश डाला, जिसमें ब्रिटिश संदर्भों को हटाना भी शामिल है.

‘वकील’, ‘प्लीडर’ और ‘बैरिस्टर’ शब्दों को ‘एडवोकेट’ शब्द से बदल दिया गया है और जूरी की प्रश्न पूछने आदि की शक्ति से संबंधित धारा 166 को हटा दिया गया है, क्योंकि भारत में जूरी प्रणाली पहले ही समाप्त कर दी गई है.

ब्रिटिश काल के और भी शब्द हटाए गए हैं, जिनमें पार्लियामेंट ऑफ द यूनाइटेड किंगडम, प्रोविंशियल एक्ट, लंजन गजट, लाहौर, कॉमनवेल्थ आदि जैसे अनेक शब्द शामिल हैं.

प्रस्तावित विधेयक में ‘दस्तावेजों’ की परिभाषा का विस्तार ईमेल पर इलेक्ट्रॉनिक या डिजिटल रिकॉर्ड, सर्वर लॉग, कंप्यूटर, लैपटॉप या स्मार्टफोन पर दस्तावेज, संदेश, वेबसाइट और डिजिटल उपकरणों पर संग्रहीत स्थान संबंधी साक्ष्य और वॉयस मेल संदेशों को शामिल करने के लिए किया गया है.

‘सबूत’ की परिभाषा को इलेक्ट्रॉनिक रूप से दी गई किसी भी जानकारी को शामिल करने के लिए विस्तारित किया गया है, जो इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों के जरिये गवाहों, अभियुक्तों, विशेषज्ञों और पीड़ितों की उपस्थिति निर्धारित करेगा.

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