खोखली भावनाओं की भ्रष्ट श्रद्धांजलि है ‘चंपारण सत्याग्रह’ का शताब्दी समारोह

आज़ादी के बाद किसान अपनी समस्याओं के निदान के लिए गांधी के बताए सत्याग्रह के मार्ग पर चल रहे हैं, पर सरकारों के लिए इसका कोई अर्थ नहीं रह गया है.

देश में 93 लाख से ज़्यादा बच्चे गंभीर कुपोषण के शिकार

स्वास्थ्य राज्य मंत्री फग्गन सिंह कुलस्ते ने एक सवाल के जवाब में राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे पर आधारित आंकड़ों की जानकारी राज्यसभा में दी.

चंद्रशेखर की हत्या करने वाली बंदूक ‘धर्मनिरपेक्ष’ थी

चंद्रशेखर ने कहा था, ‘हां, मेरी व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा है- भगत सिंह की तरह जीवन, चे ग्वेरा की तरह मौत.’ उनके दोस्त कहते हैं कि चंदू ने अपना वायदा पूरा किया.

यूपी के बाद सबसे ज़्यादा हथियार लाइसेंस जम्मू कश्मीर में जारी हुए

जम्मू कश्मीर में पिछले 15 वर्षों के दौरान तकरीबन तीन लाख 70 हजार हथियारों के लाइसेंस बांटे गए. जनसंख्या घनत्व के लिहाज़ से ये आंकड़ा देश में सबसे ज़्यादा है.

बिहार में एक अहिंसक आंदोलन हिंसक होने की राह पर है

बिहार में बागमती परियोजना को लेकर चल रहे ​अहिंसक आंदोलन को लेकर राजनेता-नौकरशाह और ठेकेदार की तिकड़ी इस फिराक में है कि आंदोलन हिंसक हो जाए, ताकि पुलिस बल का इस्तेमाल कर विरोध को दबा दिया जाए.

क्यों बिहार में आईएएस अधिकारियों ने ​नीतीश सरकार के ख़िलाफ़ मोर्चा खोला हुआ है?

बिहार कर्मचारी चयन आयोग से जुड़े पेपर लीक मामले में आयोग के अध्यक्ष रहे सुधीर कुमार की गिरफ्तारी और निलंबन के बाद उनके समर्थन में राजभवन पर प्रदर्शन करने वाले 28 जिलाधिकारियों को सरकार ने कारण बताओ नोटिस जारी किया है.

कोसी नदी पर 60 साल से नहीं बना पुल, एक पखवाड़े से अनशन जारी

बिहार के सहरसा ज़िले में एक अनशन पिछले एक पखवाड़े से जारी है. एक पुल के निर्माण के लिए ये अनशन हो रहा है. अनशनकारियों की हालत अब बेहद नाज़ुक है.

विकास योजनाओं में अदूरदर्शिता का विनाशकारी मॉडल है फरक्का बैराज

विशेषज्ञों का मानना है कि फरक्का बैराज परियोजना से जितना फायदा हुआ उससे कई गुना ज़्यादा नुकसान हो चुका है. इसका कोई समाधान न निकाला गया तो व्यापक तबाही के लिए तैयार रहना होगा.

स्वतंत्र और निष्पक्ष सुनवाई के लिए तिहाड़ जेल भेजे जाएंगे शहाबुद्दीन

सीवान के चंद्रकेश्वर प्रसाद उर्फ चंदा बाबू और पत्रकार राजदेव रंजन की पत्नी आशा रंजन की याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने यह निर्देश दिया है.

भोजपुरी फिल्म फेस्टिवल : अपने ही जाल में उलझा भोजपुरी सिनेमा

बदलते दौर के भौतिक चमक-दमक को तो भोजपुरी सिनेमा खूब दिखाता है, पर सामाजिक -सांस्कृतिक मूल्यों की जड़ता से नहीं भिड़ता. वह एक बड़े विभ्रम का शिकार है.

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