उत्तर प्रदेश में चुनाव पूर्व सपा और कांग्रेस में गठबंधन हुआ, जिसका नुकसान दोनों को हुआ. दरअसल, यह गठबंधन ही ग़लत था.
भले ही जनता ने मोदी को विधानसभा में प्रचंड बहुमत दे दिया है लेकिन लोकसभा की तरह उसे यहां भी निराश होना पड़ेगा. वजह साफ है कि न तो मोदी के पास कोई बड़ी दृष्टि है और न ही उनके पास स्थितियों को समझने का धैर्य.
अगर भाजपा जातियों के अंतर्विरोधों और संसाधनों में हिस्सेदारी की मार-काट को काबू में रख सकी तो जब तक मोदी का नाम चलेगा, ये वोट बैंक भी चलेगा.
कुछ विश्लेषकों का मानना था कि बसपा इस चुनाव में डार्क हॉर्स साबित होगी. पार्टी का आधार वोट बैंक दलित और मुस्लिम मतदाता मिलकर उसे भारी जीत दिलाएंगे.
मायावती ने आरोप लगाया, 'वोटिंग मशीन ने बीजेपी के सिवाय किसी दूसरी पार्टी के वोट को स्वीकार नहीं किया है. या फिर अन्य पार्टियों के वोट भी बीजेपी के खाते में चले गए हैं.'
यह ऐसा सवाल है जिसका जवाब हर कोई जानना चाह रहा है. अब तक यह सवाल आपसे इतनी बार पूछा जा चुका होगा कि आपको जवाब रट गया होगा. फिलहाल अगले कुछ घंटे आप इन समीकरणों पर भी विचार कीजिए.
ग्राउंड रिपोर्ट: मीडिया द्वारा बनारस की मूल समस्याओं से ध्यान हटाकर उसे लंका से काशी विश्वनाथ और बीएचयू पर केंद्रित कर दिया गया. इसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पक्ष या विपक्ष में कर दिया गया. यह न तो जनतंत्र के लिए ठीक बात है और न ही पत्रकारिता के लिए.
एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) की रिपोर्ट के मुताबिक यूपी में फिर से चुनाव लड़ रहे विभिन्न दलों के 311 विधायकों की औसत संपत्ति वर्ष 2012 में 3.49 करोड़ रुपये थी जो इस साल बढ़कर 6.33 करोड़ रुपये हो गई है.
ग्राउंड रिपोर्ट: होली के पहले बनारस में चुनाव का रंग चढ़ा हुआ है और यहां का माहौल देखकर लगता है कि इस बार की होली कुछ ज़्यादा ही लाजवाब होने वाली है.
पूर्वांचल में इन दिनों मतदान हो रहा है, लेकिन विकास का मुद्दा वहां से पूरी तरह गायब है.
इस चरण में भाजपा के हिंदुत्ववादी नेता सांसद महंत आदित्यनाथ के संसदीय क्षेत्र गोरखपुर और माफिया-राजनेता मुख्तार अंसारी के क्षेत्र मऊ तथा केंद्रीय मंत्री कलराज मिश्र के संसदीय क्षेत्र देवरिया में चुनाव पर खास नजर रहेगी.
उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव पर बसपा नेता सुधींद्र भदौरिया के साथ द वायर के अमित सिंह की बातचीत.
राज्य में चार चरण के मतदान के बाद नरेंद्र मोदी और अमित शाह ने सांप्रदायिकता का नारा बुलंद करने में कोई कसर नहीं छोड़ी, पर यह तो वक़्त ही बताएगा कि उनकी विभिन्न जातियों के हिंदुओं को साथ लाने की ये कोशिश कामयाब होगी या नहीं.
घुमंतू समुदाय गांव के सार्वजनिक और सांस्कृतिक जीवन में घुले-मिले हैं. वे विकसित हो रहे जनतंत्र में अपना स्पष्ट हिस्सा मांग रहे हैं.
2014 में लोकसभा चुनाव के दौरान अति-उत्साही काशी की जनता, तीन साल बाद विधानसभा चुनाव में ऊर्जाविहीन लग रही है.