क़ानून के छात्रों को मनुस्मृति पढ़ाने की तैयारी में दिल्ली विश्वविद्यालय, विरोध में वीसी को लिखा गया पत्र

दिल्ली विश्वविद्यालय का विधि संकाय अपने स्नातक कार्यक्रम में उस संस्कृत ग्रंथ 'मनुस्मृति' को शामिल करने की योजना बना रहा है, जिसे जलाकर भारत के पहले क़ानून मंत्री डॉ. बीआर अंबेडकर ने समाज में मौजूद जाति व्यवस्था का विरोध किया था.

क्या जातिवाद से लड़े बिना हिंदुत्ववादी एजेंडा के ख़िलाफ़ कोई संघर्ष संभव है?

सवर्णों ने इस विमर्श को केंद्र में ला दिया है कि ओबीसी और दलित हिंदुत्व के रथी हो गए हैं. यह विमर्श इस तथ्य को कमज़ोर करना चाहता है कि ऊंची जातियां हिंदुत्व का केंद्र हैं, उसे विचार और ताक़त देती हैं. आज भाजपा यदि अपने विस्तार के अंतिम बिंदु पर दिखाई देती है तो उसकी वजह यह है कि वह गैर-ब्राह्मण समूहों में अपेक्षित पकड़ नहीं बना पाई है.  

देश में मनुस्मृति के प्रति मोह छूटता क्यों नहीं दिख रहा है?

बीएचयू के धर्मशास्त्र मीमांसा विभाग ने ‘भारतीय समाज में मनुस्मृति की प्रयोज्यता’ पर शोध का प्रस्ताव दिया है. 21वीं सदी की तीसरी दहाई में जब दुनियाभर में शोषित उत्पीड़ितों में एक नई रैडिकल चेतना का संचार हुआ है, 'ब्लैक लाइव्ज़ मैटर' जैसे आंदोलनों ने विकसित मुल्कों के सामाजिक ताने-बाने में नई सरगर्मी पैदा की है, तब अतीत के स्याह दौर की याद दिलाती इस किताब की प्रयोज्यता की बात करना दुनिया में भारत की क्या छवि बनाएगा?

एमपी के सरकारी स्कूलों में हिंदू ग्रंथ पढ़ाए जाएंगे, इनका अपमान सहन नहीं किया जाएगा: सीएम

कुछ राजनीतिक नेताओं द्वारा रामायण पर आधारित हिंदू धार्मिक पुस्तक रामचरितमानस पर दिए गए विवादास्पद बयानों की पृष्ठभूमि में मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की यह चेतावनी आई है. उन्होंने कहा कि रामायण ग्रंथ देने वाले तुलसीदास जी को मैं प्रणाम करता हूं. ऐसे लोग जो हमारे इन महापुरुषों का अपमान करते हैं, वह सहन नहीं किए जाएंगे.

सपा नेता स्वामी प्रसाद मौर्य ने की रामचरितमानस के कुछ हिस्सों पर पाबंदी लगाने की मांग

सपा के वरिष्ठ नेता और उत्तर प्रदेश के पूर्व कैबिनेट मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य ने कहा कि धर्म का वास्तविक अर्थ मानवता के कल्याण और उसकी मज़बूती से है. अगर रामचरितमानस की किन्हीं पंक्तियों के कारण समाज के एक वर्ग का ‘जाति’, ‘वर्ण’ और ‘वर्ग’ के आधार पर अपमान होता हो तो यह निश्चित रूप से ‘धर्म’ नहीं, बल्कि ‘अधर्म’ है. 

दिल्ली हाईकोर्ट ने किया समान नागरिक संहिता का समर्थन, कहा- आधुनिक समाज एक जैसा हो रहा है

एक तलाक़ के मामले की सुनवाई के दौरान दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि विभिन्न समुदायों, जातियों या धर्मों से जुड़े विवाह करने वाले युवाओं को विभिन्न पर्सनल लॉ, विशेषकर विवाह और तलाक़ के संबंध में टकराव के कारण उत्पन्न होने वाले मुद्दों से जूझने के लिए मजबूर नहीं किया जाना चाहिए.