क़ानून का राज होने के बाद भी भीड़ का राज क़ायम है. इस भीड़ को धर्म, जाति और परंपरा के नाम पर छूट मिली है. किसी औरत को डायन बताकर मार देती है, जाति तोड़कर शादी करने वालों की हत्या कर देती है. इसी कड़ी में अब यह शामिल हो गया है कि अपराध करने वाला या झगड़े की ज़द में आ जाने वाले मुसलमान को जय श्री राम के नाम पर मार दिया जाएगा.
उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद ज़िले के एक गांव में किसी धार्मिक ढांचे को गिराए जाने की जानकारी मिलने के बाद चंद्रशेखर अपने साथियों के साथ वहां पहुंचे थे.
'बंगाल खिलौना नहीं है,' यह कहा था ममता बनर्जी ने कुछ रोज़ पहले, लेकिन अब उनके आचरण से यही लगता है कि वे बंगाल को अपना खिलौना ही मान बैठी हैं, वरना वे राज्य में डॉक्टरों की हड़ताल चार दिन तक न खिंचने देतीं.
क्या नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार जल्द ही उन्हें हासिल जनादेश की ग़लत व्याख्या करने और उसको अपनी सारी कारस्तानियों पर जनता की मुहर मान लेने की ग़लती करने लगेगी?
नरेंद्र मोदी की जीत का भारत के लिए क्या अर्थ निकलता है? एक हद तक यह उन्हें और भाजपा को दावा करने का मौका देता है कि पिछले पांच सालों में उन्होंने जो कुछ भी किया है, उसके प्रति जनता ने अपना विश्वास जताया है. पर क्या यह सच है?
हम भी भारत की इस कड़ी में आरफ़ा ख़ानम शेरवानी बहराइच लोकसभा क्षेत्र में बच्चों के कुपोषण, ग़रीबी और बेरोज़गारी के मुद्दों पर ग़ैर सरकारी संगठन देहात एनजीओ के कार्यकारी अधिकारी जितेंद्र चतुर्वेदी, वरिष्ठ पत्रकार सलीम सिद्दीक़ी, शिक्षिका डॉ. अनुपमा झा और वरिष्ठ पत्रकार अज़ीम मिर्ज़ा से चर्चा कर रही हैं.
भाजपा की मुसलमानों के ख़िलाफ़ नफ़रत फैलाने की रणनीति के परिणाम भयावह होंगे.
पुस्तक समीक्षा: अपनी किताब ‘बदलता गांव बदलता देहात: नयी सामाजिकता का उदय’ में सत्येंद्र कुमार ग्रामीण भारतीय जीवन को देखने की बनी-बनाई समझ और उससे पैदा हुई बहसों से परे जाकर उसे उसके रोज़मर्रा के जीवन में समझने की कोशिश करते हैं.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हिंदू आतंकवाद से जुड़े बयान पर चर्चा कर रही हैं आरफ़ा ख़ानम शेरवानी.
अयोध्या की ऐतिहासिक हनुमानगढ़ी ने आज़ादी के पहले से ही अपनी व्यवस्था में लोकतंत्र और चुनाव का ऐसा अनूठा और देश का संभवतः पहला प्रयोग कर रखा है, जिसका ज़िक्र तक करना सांप्रदायिक घृणा की राजनीति करने वालों को रास नहीं आता.
राष्ट्रवाद और सैन्य बलों को चुनाव प्रचार में घसीटकर उनका राजनीतिक फायदा उठाने की कोशिश मतदाताओं को आकर्षित करने की गारंटी नहीं है और इसका उलटा असर भी हो सकता है. चुनाव की तैयारी कर रहीं पार्टियों की रणनीति देखते हुए यह साफ़ हो रहा है कि कोई भी अपनी निर्णायक जीत को लेकर आश्वस्त नहीं है.
सड़क से संसद की इस कड़ी में हम अलवर लोकसभा क्षेत्र में पहुंचे हैं. कलाकंद के लिए मशहूर अलवर हालिया सालों में यहां गोरक्षा के नाम पर हुई मॉब लिंचिंग की घटनाओं के लिए सुर्ख़ियों में रहा.
मीडिया का एक बड़ा तबका, जिसका धर्म सत्ता में बैठे लोगों से सवाल पूछना होना चाहिए, घुटने टेक चुका है और देश के कुछ सबसे शक्तिशाली लोगों ने चुप्पी ओढ़ ली है, लेकिन आम लोग ऐसा नहीं करने वाले हैं. उनकी आवाज़ ऊंचे तख़्तों पर बैठे लोगों को सुनाई नहीं देती, लेकिन जब वक़्त आता है वे अपना फ़ैसला सुनाते हैं.
सड़क से संसद की इस कड़ी में कहानी नूह गांव के मेव मुसलमानों की. नीति आयोग द्वारा जारी देश के सबसे पिछड़े 101 ज़िलों की सूची में यह हिस्सा भी आता है. यहां के रहवासी ग़रीबी, शिक्षा और बुनियादी सुविधाओं की कमी के साथ सांप्रदायिकता से भी लड़ रहे हैं. वर्तमान सत्ता से नाराज़ ये लोग उम्मीद करते हैं कि इस बार क्षेत्र से आम चुनाव में खड़े हो रहे उम्मीदवार उनके मुद्दों को गंभीरता से उठाएंगे.
पुस्तक अंश: 1950 में नेहरू ने लिखा, 'यूपी कांग्रेस कमेटी की आवाज़ उस कांग्रेस की आवाज़ नहीं है, जिसे मैं जानता हूं, बल्कि यह उस तरह की आवाज़ है जिसका मैं पूरी ज़िंदगी विरोध करता रहा हूं. कुछ कांग्रेसी नेता लगातार ऐसे आपत्तिजनक भाषण दे रहे हैं, जैसे हिंदू महासभा के लोग देते हैं.'