एक रिपोर्ट बताती है कि गुजरात के विभिन्न हिस्सों में बीते एक महीने के भीतर ही सीवर की सफाई के दौरान कम से कम आठ कर्मचारियों की मौत हो गई है. ऐसा तब हो रहा है जब इस प्रथा को पूरे देश में अवैध घोषित कर दिया गया है.
वीडियो: भोपाल गैस त्रासदी के बाद के वर्षों में पीड़ितों की संख्या में बढ़ोतरी और गैस के गंभीर दुष्प्रभाव देखे जाने के बाद साल 2010 में तत्कालीन केंद्र सरकार ने अतिरिक्त मुआवज़े के लिए सुप्रीम कोर्ट का रुख़ किया था. बीते दिनों शीर्ष अदालत ने इस मांग को ठुकरा दिया. इस केस में भोपाल के गैस पीड़ित संगठन भी पक्षकार थे, उनके प्रतिनिधियों से इस निर्णय को लेकर बातचीत.
सामाजिक न्याय और अधिकारिता पर संसदीय स्थायी समिति के समक्ष केंद्र सरकार ने बताया है कि मैनुअल स्कैवेंजिंग अधिनियम के तहत अब तक 616 मामलों में एफआईआर दर्ज की गई है, जिनमें से अब तक केवल एक मामले में दोषसिद्धि हुई है.
मोरबी पुल हादसे के मामले में गुजरात हाईकोर्ट ने पुल के रखरखाव की ज़िम्मेदार ओरेवा कंपनी द्वारा प्रस्तावित मुआवज़े को अपर्याप्त बताते हुए निर्देश दिया कि वह प्रत्येक मृतक के निकट संबंधी को 10 लाख रुपये और दुर्घटना में घायल हुए 56 लोगों में से प्रत्येक को अंतरिम मुआवज़े के रूप में 2 लाख रुपये का भुगतान करे.
केंद्र सरकार ने अदालत को बताया कि दुर्घटना करने वाले वाहन का बीमा नहीं होने की स्थिति में भी सड़क हादसों के पीड़ितों को मुआवज़ा देने के लिए अब एक योजना है. केंद्र ने अदालत से इस बदलाव को पूरे देश में लागू करने के लिए छह महीने का समय देने का आग्रह किया. अदालत ने क़ानूनी प्रावधानों को छह महीने में लागू करने का निर्देश दिया है.
हिरासत में मौत के एक मामले की सुनवाई करते हुए बॉम्बे हाईकोर्ट की पीठ ने कहा कि पुलिस के पास लोगों की गतिविधियों और अपराध को नियंत्रित करने की शक्ति है, लेकिन यह अबाध नहीं है. उक्त शक्ति के प्रयोग की आड़ में पुलिसकर्मी किसी नागरिक के साथ अमानवीय तरीके से अत्याचार या व्यवहार नहीं कर सकते हैं.
बिहार के बक्सर ज़िले में थर्मल पावर प्लांट लगाने के लिए अधिग्रहित भूमि के एवज में मुआवजे़ की मांग को लेकर पिछले दो महीनों से किसान प्रदर्शन कर रहे हैं. पुलिसकर्मियों ने मंगलवार देर रात कथित तौर पर किसानों के घरों में घुसकर उनकी पिटाई की, जिसके बाद आक्रोशित लोगों ने संयंत्र में तोड़फोड़ और आगज़नी की है. झड़प में कई पुलिसकर्मी घायल हुए हैं.
2-3 दिसंबर 1984 की दरमियानी रात भोपाल में अमेरिकी कंपनी यूनियन कार्बाइड के कारखाने से ज़हरीली गैस रिसने के चलते हज़ारों लोगों की मौत हो गई थी. केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर कर यूनियन कार्बाइड की उत्तराधिकारी कंपनियों से अतिरिक्त 7,844 करोड़ रुपये मुआवज़े की मांग की थी.
बीते 30 दिसंबर को 10 महिलाओं ने अनिश्चितकालीन निर्जला अनशन शुरू किया था. भोपाल शहर के बाहरी इलाके में स्थित यूनियन कार्बाइड इंडिया लिमिटेड के कीटनाशक संयंत्र से 1984 में दो-तीन दिसंबर की दरम्यानी रात गैस का रिसाव होने से 15,000 से अधिक लोगों की मौत हो गई थी और पांच लाख से अधिक लोग प्रभावित भी हुए.
अनिश्चितकालीन निर्जला अनशन का नेतृत्व कर रहे गैस पीड़ितों के पांच संगठनों की ओर से कहा गया कि सरकार सुप्रीम कोर्ट को बता रही है कि गैस रिसाव में केवल 5,295 लोग मारे गए, जबकि इससे होने वाली बीमारियों से हज़ारों लोग मर रहे हैं और मरने वालों की संख्या 25,000 के क़रीब हो सकती है. उन्होंने सत्तारूढ़ पार्टी पर आरोपी डाव केमिकल से चंदा लेने का भी आरोप लगाया.
भाजपा सांसद रमा देवी की अध्यक्षता वाली सामाजिक न्याय और अधिकारिता संबंधी संसद की स्थायी समिति ने लोकसभा में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करते हुए मुआवज़े के भुगतान में देरी पर नाराज़गी व्यक्त की और कहा कि नीतिगत फैसलों को लागू करने का दायित्व केंद्र सरकार का है.
जोधपुर जिले के शेरगढ़ संभाग के भुंगड़ा में बीते आठ दिसंबर को सिलेंडर फटने के बाद आग लग गई थी, जिसमें करीब 50 लोग घायल हो गए थे. इनमें से कम से कम 35 लोगों की रविवार तक मौत हो गई थी.
कोविड टीकाकरण के कथित प्रतिकूल प्रभावों से दो लड़कियों की मौत के मामले में उनके माता-पिता ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है. इस संबंध में केंद्र सरकार ने अदालत में पेश हलफ़नामे में कहा है कि टीकों के इस्तेमाल से मौत के मामलों के लिए सरकार को मुआवज़े के लिए जवाबदेह ठहराना क़ानूनन सही नहीं है.
दिल्ली हाईकोर्ट ने बीते अक्टूबर में डीडीए को मुंडका इलाके में सीवर सफाई के दौरान जान गंवाने वाले दो लोगों के परिवार को 10-10 लाख रुपये मुआवज़ा देने को कहा था. ऐसा न किए जाने पर कोर्ट ने नाराज़गी जताते हुए कहा कि हम ऐसे लोगों से यह बर्ताव कर रहे हैं जो हमारे लिए काम कर रहे हैं ताकि हमारी ज़िंदगी आसान हो.
एनजीटी ने कहा कि दिल्ली के तीन लैंडफिल स्थल ग़ाज़ीपुर, भलस्वा और ओखला में क़रीब 80 फीसदी कचरा पुराना है और इसका अब तक निपटान नहीं किया गया है. नागरिकों के अधिकारों का गंभीर उल्लंघन हुआ है और संबंधित अधिकारी पर्यावरण और लोगों के स्वास्थ्य की रक्षा के लिए उपाय करने में नाकाम रहे हैं.