गुजरात: प्रतिबंध के बावजूद मैला ढोने वाले कर्मचारियों की मौत का सिलसिला जारी

एक रिपोर्ट बताती है कि गुजरात के विभिन्न हिस्सों में बीते एक महीने के भीतर ही सीवर की सफाई के दौरान कम से कम आठ कर्मचारियों की मौत हो गई है. ऐसा तब हो रहा है जब इस प्रथा को पूरे देश में अवैध घोषित कर दिया गया है.

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(प्रतीकात्मक फोटो: पीटीआई)

एक रिपोर्ट बताती है कि गुजरात के विभिन्न हिस्सों में बीते एक महीने के भीतर ही सीवर की सफाई के दौरान कम से कम आठ कर्मचारियों की मौत हो गई है. ऐसा तब हो रहा है जब इस प्रथा को पूरे देश में अवैध घोषित कर दिया गया है.

(प्रतीकात्मक फोटो: पीटीआई)

अहमदाबाद: 22 मार्च से 26 अप्रैल 2023 तक गुजरात के विभिन्न हिस्सों में सीवर की सफाई के दौरान कम से कम आठ लोगों की मौत हो गई है. मैला ढोने वालों की लगातार हो रही इन मौतों ने चिंता बढ़ा दी है, क्योंकि ऐसा तब हो रहा है जब इस प्रथा को पूरे देश में अवैध घोषित कर दिया गया है.

द हिंदू की एक रिपोर्ट के मुताबिक, राजकोट में 22 मार्च को दो लोगों की मौत हुई. 3 अप्रैल को दाहेज में 3 लोग मारे गए. इसके बाद 23 अप्रैल को ढोलका में भी दो लोगों की मौत हो गई और 26 अप्रैल को उत्तरी गुजरात के थराद में एक और मौत हो गई.

सभी घटनाएं तब हुईं जब कर्मचारी बिना सुरक्षा उपकरणों के सीवर साफ करने के लिए उनमें उतरे और दम घुटने या जहरीली गैस के कारण उनकी मौत हो गई.

इन मौतों के बाद पुलिस ने आकस्मिक मौतों के मामले दर्ज किए, जबकि दाहेज की घटना में निजी ठेकेदार के खिलाफ मामला दर्ज किया गया.

मरने वाले सभी श्रमिकों को निजी ठेकेदारों द्वारा काम पर रखा गया था. इन ठेकेदारों को नागरिक निकायों या सरकारी एजेंसियों द्वारा भूमिगत सीवर लाइनों के रखरखाव से संबंधित कार्यों को आउटसोर्स करने के लिए नियुक्त किया गया था.

राज्य सरकार द्वारा हाल ही में विधानसभा में साझा किए गए आंकड़ों के अनुसार गुजरात में पिछले दो वर्षों में सीवर लाइनों की सफाई के दौरान 11 लोगों की मौत हो गई थी, यह संख्या हाल ही में हुईं इन आठ मौतों से पहले की है.

सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्री भानुबेन बाबरिया ने इस साल मार्च में विधानसभा को बताया था कि 1 फरवरी 2021 से 31 जनवरी 2022 के बीच सीवर की सफाई के दौरान सात सफाई कर्मचारियों की जान चली गई, जबकि 1 फरवरी 2022 से 31 जनवरी 2023 के बीच चार सफाई कर्मचारियों की जान गई.

हालांकि, मैला ढोने वालों के अधिकारों के लिए काम करने वाले सामाजिक कार्यकर्ता और दलित संगठनों के समुदाय के नेता राज्य सरकार के आंकड़ों पर सवाल उठाते हैं और दावा करते हैं कि वास्तविक संख्या काफी अधिक है.

गुजरात कांग्रेस अनुसूचित जाति विभाग के अध्यक्ष हितेंद्र पिथाड़िया ने द हिंदू से कहा, ‘गुजरात में भूमिगत सीवर लाइनों या मैनहोल की सफाई करते हुए 150 से अधिक श्रमिकों की मौत हुई है और सभी दलित या आदिवासी हैं या हाल के राजकोट मामले में अल्पसंख्यक समुदाय का एक व्यक्ति है.’

मौतों में वृद्धि के बाद गुजरात कांग्रेस के नेता हिरेन बैंकर ने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) को एक पत्र लिखकर गुजरात में सफाई कर्मचारियों की मौतों की जांच राष्ट्रीय अधिकार निकाय द्वारा कराए जाने की मांग की है.

सरकारी नियमानुसार अगर सेप्टिक टैंक या सीवर या मैनहोल की सफाई के दौरान कोई कर्मचारी मृत पाया जाता है तो मृतक के परिवार को 10 लाख रुपये का मुआवजा दिया जाना चाहिए.

हालांकि, पिथाड़िया के अनुसार आकस्मिक मृत्यु के मामले में मुआवजे का भुगतान नहीं किया जाता है और राज्य एजेंसियां या नागरिक निकाय जिम्मेदारी से भी बच जाते हैं.

एक स्थानीय एनजीओ मानव गरिमा के प्रमुख कार्यकर्ता पुरुषोत्तम वाघेला ने हाल ही में मैला ढोने वालों की बढ़ती मौतों के मुद्दे पर मुख्यमंत्री को पत्र लिखा था.

उन्होंने पत्र में कहा, ‘पिछले दो महीनों में गुजरात में 11 मौतें हुई हैं. 1993 से राज्य में मैला ढोने में लगे 300 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है.’ साथ ही, उन्होंने कानून को सख्ती से लागू करने और अधिकारियों या निजी ठेकेदारों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की मांग की.

उन्होंने कहा कि गुजरात सरकार ने 2019 में सर्कुलर जारी किया था कि भूमिगत नालियों, सेप्टिक टैंक या सीवर लाइन की सफाई के दौरान किसी सफाई कर्मचारी की मौत होने पर संबंधित अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की जानी चाहिए, लेकिन तब से 95 मौतें हो गईं हैं, लेकिन किसी के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई.

उन 11 व्यक्तियों को मुआवजा देने के सवाल पर, जिनकी मृत्यु सरकारी रिकॉर्ड के अनुसार हुई, सरकार ने स्वीकारा कि अब तक छह परिवारों को मुआवजा दिया जाना बाकी है.

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