वीडियो: हमारा संविधान की इस कड़ी में लोकतंत्र के ढांचे के सबसे महत्वपूर्ण मील के पत्थर- समानता के अधिकार और इससे जुड़ी बारीकियों के बारे में बता रही हैं सुप्रीम कोर्ट की अधिवक्ता अवनि बंसल.
वीडियो: भारत के संविधान का अनुच्छेद 13 कहता है कि कोई भी क़ानून, अध्यादेश, आदेश, नियम, प्रथा- जो संविधान के लागू होने से पहले से अस्तित्व में है या बाद में बनाया गया हो- यदि वह भाग तीन में दिए गए मौलिक अधिकारों से किसी भी प्रकार से विरोधाभास दर्शाता है या उनका हनन करता है तो ऐसे क़ानून को अमान्य माना जाएगा.
मिज़ोरम की सरछिप सीट से निर्दलीय चुनाव लड़ने वाले पूर्व आईपीएस अधिकारी लालदुहोमा पर आरोप था कि उन्होंने निर्दलीय चुनाव लड़ा था, जबकि वह ज़ोराम पीपुल्स मूवमेंट नाम के राजनीतिक दल के शीर्ष नेता थे. वह राज्य के पहले ऐसे विधायक बन गए हैं जिन्हें अयोग्य क़रार दिया गया है.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह गौर करना दिलचस्प है कि राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतों से जुड़े भाग चार में संविधान के अनुच्छेद 44 में निर्माताओं ने उम्मीद की थी कि राज्य पूरे भारत में समान नागरिक संहिता के लिए प्रयास करेगा. लेकिन आज तक इस संबंध में कोई कार्रवाई नहीं की गई है.
राजस्थान हाईकोर्ट ने भारत के संविधान में निहित समानता के अधिकार का सम्मान करने के लिए ये फैसला लिया है.
संविधान विशेषज्ञ सुभाष कश्यप ने कहा कि कर्नाटक में जो हो रहा है वह भारतीय राजनीति और भारतीय लोकतंत्र का अब तक का सबसे बदनुमा चेहरा है. इसकी जितनी भर्त्सना की जाए वह कम है. इसके लिए सभी दल दोषी हैं.
द शिलॉन्ग टाइम्स की संपादक पैट्रिसिया मुखिम और प्रकाशक शोभा चौधरी पर दो-दो लाख रुपये का जुर्माना लगाया गया है. एक सप्ताह के भीतर जुर्माने की राशि अदा नहीं करने पर छह महीने की जेल का प्रावधान है.
रोजगार नहीं है. उत्पादन घट गया है. किसान को न्यूनतम समर्थन मूल्य भी नसीब नहीं हो रहा है. हेल्थ सर्विस चौपट हो चली है. शिक्षा-व्यवस्था डांवाडोल है. मुस्लिम ख़ामोश हो गया है. दलित चुपचाप है लेकिन आवाज़ नहीं उठनी चाहिए क्योंकि देश में क़ानून अपना काम कर रहा है.
झारखंड में ईसाई संगठन और चर्च राज्य सरकार के रवैये पर लगातार सवाल खड़े कर रहे हैं. जबकि कुछ घटनाओं को केंद्र में रखकर भाजपा तथा आरएसएस-विहिप भी मिशनरी संस्थाओं पर निशाना साधने का कोई मौका नहीं छोड़ रही है.
पत्थलगड़ी आंदोलन के रूप में जनता द्वारा अपने संवैधानिक अधिकारों के प्रभावी इस्तेमाल ने कई ऐसे सवाल उठाए हैं, जिनका जवाब देना सरकारों के लिए मुश्किल हो गया है.
कुछेक अपवाद छोड़ दिए जाएं तो संविधान लागू होने के बाद से आज तक किसी भी राज्य के राज्यपाल ने पांचवीं अनुसूची के तहत मिले अपने अधिकारों और दायित्वों का निर्वहन आदिवासियों के पक्ष में करने में कोई रुचि नहीं दिखाई है.
देश की कई जेलों में निर्धारित संख्या से छह गुना अधिक क़ैदी रखे जाने पर शीर्ष अदालत ने कहा कि अगर उन्हें सही से नहीं रख सकते हैं तो उन्हें रिहा कर देना चाहिए.
ग्राउंड रिपोर्ट: झारखंड के कई आदिवासी इलाकों में इन दिनों पत्थलगड़ी की मुहिम छिड़ी है. ग्रामसभाओं में आदिवासी गोलबंद हो रहे हैं और पत्थलगड़ी के माध्यम से स्वशासन की मांग कर रहे हैं.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर निशाना साधते हुए कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने कहा कि हमें सही को सही और ग़लत का ग़लत कहने की ज़रूरत है.
दिल्ली के संसद मार्ग पर मंगलवार को हुई युवा हुंकार रैली में वडगाम से विधायक जिग्नेश मेवाणी ने प्रधानमंत्री मोदी से पूछा कि वे संविधान और मनुस्मृति में से किसे चुनेंगे.