दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर राजेश सिंह अपने 15 महीनों के कार्यकाल के दौरान लगातार विवादों में रहे हैं. फैकल्टी सदस्य और विद्यार्थी उन पर अनियमितता, मनमाने निर्णयों और शिक्षकों के साथ बदसलूकी के आरोप लगाते हुए उन्हें हटाने की मांग कर रहे हैं.
चंपावत ज़िले के एक सरकारी स्कूल की दलित रसोइए द्वारा बनाए मध्याह्न भोजन को कथित उच्च जाति के छात्रों के खाने से इनकार के बाद उन्हें काम से हटा दिया गया था. मुख्य शिक्षा अधिकारी ने बताया कि उन्हें नियुक्ति में सही प्रक्रिया का पालन न होने के चलते हटाया गया था. अब उचित प्रक्रिया के बाद उन्हें बहाल कर दिया गया है.
आईआईटी खड़गपुर के सेंटर ऑफ एक्सीलेंस फॉर इंडियन नॉलेज सिस्टम द्वारा हाल ही में जारी साल 2022 के एक कैलेंडर में आर्यों के हमले की थ्योरी को ख़ारिज करते हुए कहा गया है कि उपनिवेशवादियों ने वैदिक संस्कृति को 2,000 ईसा पूर्व की बात बताया है, जो ग़लत है. इसे लेकर जानकारों ने कई सवाल उठाए हैं.
चंपावत ज़िले के सुखीढांग के एक सरकारी स्कूल की दलित रसोइए द्वारा बनाए गए मध्याह्न भोजन को कथित उच्च जाति के छात्रों द्वारा खाने से इनकार के बाद महिला को काम से हटा दिया गया था. शिक्षा विभाग के अधिकारियों ने महिला को हटाने की वजह नियुक्ति में प्रक्रियागत चूक को बताया था.
घटना चंपावत ज़िले के सुखीढांग के एक सरकारी स्कूल की है, जहां 66 छात्रों में से 40 ने इस महीने की शुरुआत में नियुक्त एक दलित महिला द्वारा तैयार खाना खाने से मना कर दिया था. काम से हटाए जाने के बाद महिला ने उत्पीड़न की शिकायत दर्ज कराते हुए आपत्ति जताने वाले छात्रों के माता-पिता के ख़िलाफ़ कार्रवाई की मांग की है.
इससे पहले डीयू के कुलपति योगेश सिंह द्वारा गठित एक समिति ने सिफ़ारिश की थी कि एडमिशन प्रक्रिया में पर्याप्त निष्पक्षता सुनिश्चित करने के लिए सामान्य प्रवेश परीक्षा आयोजित करनी चाहिए. केरल बोर्ड के छात्रों को शत-प्रतिशत अंक मिलने के कारण बड़ी संख्या में विश्वविद्यालय में उनके दाख़िले की तादाद बढ़ गई है.
इंटरनेशनल फेडरेशन ऑफ जर्नलिस्ट्स और नेटवर्क ऑफ वूमेन इन मीडिया इन इंडिया द्वारा प्रकाशित एक रिपोर्ट उन महिला पत्रकारों पर केंद्रित है, जो अभी भी अफ़ग़ानिस्तान में रह रही हैं और जो बाहर हैं, जिनकी आजीविका को तालिबान के आने के चलते भारी झटका लगा है.
पूर्ववर्ती भाजपा सरकार द्वारा 20 साल में पहली बार स्कूल की ड्रेस में बदलाव किया गया था. 2017 में भाजपा ने सरकारी स्कूलों के यूनिफॉर्म का रंग बदला था और कांग्रेस ने उस समय इस पर भगवा होने का आरोप लगाया था. नया यूनिफॉर्म ‘सर्फ ब्लू’ और ‘डार्क ग्रे’ रंग का होगा.
वीडियो: नरेंद्र मोदी सरकार ने डिजिटल इंडिया की शुरुआत की थी, लेकिन कोरोना वायरस के दौरान उत्तर प्रदेश के उन्नाव ज़िले के अजगैन गांव के एक स्कूल में ऑनलाइन शिक्षा की सुविधा का लाभ बच्चे नहीं उठा सके. यह स्कूल राज्य की राजधानी लखनऊ से महज 47 किमी. दूर है, जहां किसी भी बच्चे के पास मोबाइल फोन और इंटरनेट नहीं है. इतना ही नहीं मिड-डे मील बनाने वाली महिला को पिछले साल जून से वेतन नहीं मिला है.
अफ़ग़ानिस्तान में तालिबानी प्रशासन के सदाचार प्रचार एवं अवगुण रोकथाम संबंधी मंत्रालय द्वारा जारी नए धार्मिक दिशानिर्देशों के मुताबिक़, अफ़ग़ान चैनलों को महिलाओं के अभिनय वाले ड्रामा और सोप ओपेरा का प्रसारण न करने का निर्देश दिया गया है. साथ ही शरिया क़ानून के ख़िलाफ़ मानी जाने वाली फिल्मों पर भी प्रतिबंध लगाने को कहा गया है.
यह नियमावली इसकी सामग्री को लेकर विवादों में थी, जिसके बाद राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने एनसीईआरटी को दस्तावेज़ में ‘विसंगतियों’ को ठीक करने के लिए कहा था. जानकारों का कहना है कि इस नियमावली में कुछ भी ग़लत नहीं है, यह स्कूलों में ट्रांसजेंडर्स के लिए समावेशी माहौल बनाने की बात करता है.
सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश जस्टिस यूयू ललित ने गुजरात के भुज में एक कानूनी सेवा शिविर और जागरूकता कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि हमारी शिक्षा समावेशी नहीं है. कुछ गांवों और बड़े शहरों में जो शिक्षा प्रदान की जाती है, उनकी गुणवत्ता में कोई अंतर नहीं है. हमें इन सब पर विचार करना चाहिए. जब तक हम इसे हासिल नहीं कर लेते, सतत विकास मानकों के अनुसार शिक्षा के मामले में हम कमज़ोर रहेंगे.
पश्चिम बंगाल के प्राथमिक स्कूलों के अध्यापकों के एक समूह 'शिक्षा आलोचना' द्वारा महामारी के दौरान पढ़ाई को लेकर जारी की गई रिपोर्ट बताती है कि स्कूल परिसर के बाहर अपना काम जारी रखना कितना चुनौतीपूर्ण था लेकिन अध्यापकों ने उसे किया. यह रिपोर्ट पढ़ी जानी चाहिए, अध्यापकों की वकालत के लिए नहीं, यह समझने के लिए कि प्राथमिक शिक्षा कितना जटिल मसला है और उसके कितने पक्ष हैं.
बीते कुछ सालों में राजस्थान सरकार द्वारा आयोजित लगभग हर बड़ी परीक्षा किसी न किसी विवाद में फंसी है, जिससे राज्य के युवाओं को सरकारी नौकरियां पाने के लिए अंतहीन इंतज़ार करना पड़ रहा है.
वर्तमान में जिस तरह से धार्मिक शिक्षा के लिए रास्ता सुगम किया जा रहा है, ऐसे में यह भी याद रखना चाहिए कि जैसे-जैसे यह शिक्षा आम होती जाएगी, वह वैज्ञानिक चिंतन के विकास को बाधित करेगी. नागरिकों को यह बताना ज़रूरी है कि धार्मिक चेतना और वैज्ञानिक चेतना समानांतर धाराएं हैं और आपस में नहीं मिलतीं.