उत्तर प्रदेश के फ़तेहपुर ज़िले का मामला. परिजनों के मुताबिक किसान पर बैंक का 70 हजार रुपये क़र्ज़ था और वह आर्थिक तंगी से परेशान थे.
उत्तर प्रदेश के बांदा ज़िले का मामला है. किसान की पत्नी ने पुलिस को बताया कि उनके पति पर बैंक का 38 हज़ार रुपये का क़र्ज़ था और कोई काम न मिलने से परेशान होकर उन्होंने आत्महत्या कर ली.
उत्तर प्रदेश के बांदा ज़िले में कथित रूप से आर्थिक तंगी के चलते दो प्रवासी मज़दूर समेत पांच लोगों ने फ़ांसी लगाकर आत्महत्या की. वहीं हमीरपुर ज़िले में कर्ज़ वापस न कर पाने से परेशान एक किसान के ख़ुदकुशी करने का मामला सामने आया है.
एक मामला अतर्रा थाना इलाके का है, वहीं दूसरी घटना मरका थाना क्षेत्र का है. बताया जा रहा है कि दोनों किसानों पर क़र्ज़ था, जिसकी वजह से वे परेशान थे.
मध्य महाराष्ट्र के मराठवाड़ा में बेमौसम बारिश के चलते सोयाबीन, ज्वार, मक्का और कपास जैसी खरीफ की फसल को भारी नुकसान पहुंचा है.
आरटीआई से मिली जानकारी के अनुसार, 2014-2018 के दौरान राज्य में हर दिन औसतन आठ किसानों ने आत्महत्या की.
राजसमंद जिले के कांकरोली पीपली आचार्यान गांव में एक किसान लेहरुलाल कीर ने कथित रूप से फसल बर्बाद होने पर आत्महत्या कर ली. परिजनों ने बताया कि बैंक से ऋण न मिलने पर मजबूरन साहूकार से कर्ज लेना पड़ा था, इसलिए सरकार की कर्ज माफी से हमें कोई फायदा नहीं.
क़र्ज़माफी को किसानों को दिए गए खैरात के तौर पर न देख कर उस क़र्ज़ के एक छोटे से हिस्से की अदायगी के तौर पर देखा जाना चाहिए, जो हम पर बकाया है.
किसान को मारना सबसे आसान है. बल्कि मैं तो कहता हूं कि किसान को मारना दूसरी क्लास में ही सबको सिखा देना चाहिए. उसे न भी मारो तो वह ख़ुद ही मर जाता है. यह इतना फ़नी है कि हमें इस पर चुटकुले बनाने चाहिए और वॉट्सऐप पर फ़ॉरवर्ड करने चाहिए.
मध्य प्रदेश में किसानों के उग्र प्रदर्शन के बीच मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने उपवास शुरू किया है.
ये लोग नारा लगाते हैं जय जवान जय किसान! ज़्यादातर जवान किसान के ही बच्चे हैं. किसानों पर गोली चलाकर, आप सिर्फ़ सैनिकों के सहारे अपनी देशभक्ति प्रमाणित नहीं कर सकते.
नरेंद्र मोदी चुनाव प्रचार में कहते थे कि देश के संसाधनों पर पहला हक़ ग़रीबों और किसानों का है, लेकिन उनके कार्यकाल में किसान आत्महत्या की दर बढ़ गई.
महाराष्ट्र के सोलापुर ज़िले की घटना, सुसाइड नोट में लिखा, जब तक मुख्यमंत्री उसके घर नहीं आते और उसकी मांगें पूरी नहीं करते, तब तक उसका अंतिम संस्कार नहीं किया जाना चाहिए.'
शायद ही ऐसा कोई दिन बीतता है, जब देश के किसी न किसी कोने से किसानों की आत्महत्या की खबरें न आती हों. हार किसानों की नहीं हुई है. ये हार अर्थशास्त्रियों और नीति-निर्माताओं की है, जिन्होंने किसानों को मझधार में छोड़ दिया है.
तमिलनाडु के कुछ किसान जंतर मंतर पर पिछले 40 दिनों से प्रदर्शन कर रहे थे. उनका कहना है कि यदि हमारी मांगें मानी नहीं गईं तो 25 मई से फिर आंदोलन करेंगे.