किसान आत्महत्या के मामले में महाराष्ट्र लगातार पहले स्थान पर बना हुआ है. साल 2016 में इस राज्य में सर्वाधिक 3,661 किसानों ने आत्महत्या की. इससे पहले 2014 में यहां 4,004 और 2015 में 4,291 किसानों ने आत्महत्या की थी.
महाराष्ट्र जैसे प्याज़ उत्पादक राज्यों में भारी बारिश के बाद इसकी आपूर्ति पर असर पड़ा है. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक प्याज़ की कीमतों में पिछले साल की तुलना में क़रीब तीन गुना वृद्धि हुई है. नवंबर 2018 में खुदरा बाज़ार में प्याज़ का भाव 30-35 रुपये किलो था.
मध्य महाराष्ट्र के मराठवाड़ा में बेमौसम बारिश के चलते सोयाबीन, ज्वार, मक्का और कपास जैसी खरीफ की फसल को भारी नुकसान पहुंचा है.
उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार दिल्ली में पिछले सप्ताह प्याज की खुदरा कीमत 57 रुपये किलो रही. वहीं मुंबई में यह 56 रुपये, कोलकाता में 48 रुपये और चेन्नई में 34 रुपये किलो थी. गुरुग्राम और जम्मू में प्याज 60 रुपये किलो पर पहुंच गया है.
किसानों की मांगों को लेकर भारतीय किसान संगठन के 11 प्रतिनिधियों को कृषि मंत्रालय ले जाया गया है. प्रदर्शनकारियों का कहना है कि अगर उनकी मांगें पूरी हो जाती हैं तो वे लौट जाएंगे, नहीं तो वे दिल्ली की ओर मार्च करेंगे.
वीडियो: हरियाणा में आगामी विधानसभा चुनाव को लेकर द वायर के डिप्टी एडिटर गौरव विवेक भटनागर की प्रदेश भाजपा अध्यक्ष सुभाष बराला से बातचीत.
वीडियो: हरियाणा के 22 जिलों में से 13 जिलों में नौ दिन का जन-सरोकार अभियान पूरा करके लौटे स्वराज अभियान के राष्ट्रीय अध्यक्ष योगेंद्र यादव से राज्य की पहली भाजपा सरकार, किसानों और महिलाओं की स्थिति, बेरोज़गारी समेत विभिन्न मुद्दों पर द वायर के डिप्टी एडिटर गौरव विवेक भटनागर की बातचीत.
एक ओर कमलनाथ सरकार विधानसभा चुनावों से पहले जारी किए अपने ‘वचन-पत्र’ को ही सरकार चलाने का रोडमैप और वचनों के पूरे होने के दावे कर रही है, तो दूसरी ओर उन वचनों से सरोकार रखने वाले वर्ग अब सरकार के ख़िलाफ़ मोर्चा खोलने लगे हैं.
राजस्थान सरकार द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार प्रदेश के 33 ज़िलों को भूजल के हिसाब से कुल 295 ब्लॉक में बांटा गया है, जिनमें से 184 ब्लॉक अतिदोहित श्रेणी में आ गए हैं. इसका मतलब है कि आधे से ज़्यादा राज्य में ज़मीनी पानी कभी भी समाप्त हो सकता है.
मंत्रिमंडल की आर्थिक मामलों की समिति की बैठक में विपणन वर्ष 2019-20 के लिए गन्ने का उचित एवं लाभकारी मूल्य को यथावत रखने का फैसला किया गया. यह वह भाव है जो मिल मालिक किसानों को देते हैं.
साल 2019-20 का कृषि बजट करीब एक लाख 30 हज़ार करोड़ रुपये है, जो कुल बजट का केवल 4.6 फीसदी है. इसमें से 75,000 करोड़ रुपये पीएम-किसान योजना के लिए आवंटित किए गए हैं. इस तरह अन्य कृषि योजनाओं के लिए सिर्फ 55,000 करोड़ रुपये ही बचते हैं.
मीडिया बोल की इस कड़ी में बजट पर वरिष्ठ पत्रकार नितिन सेठी, बिजनेस स्टैंडर्ड अखबार की राजनीतिक संपादक अदिति फड़नीस और द वायर के संस्थापक संपादक एमके वेणु से चर्चा कर रहे हैं वरिष्ठ पत्रकार उर्मिलेश.
जो लोग इस बजट से भाजपा के चुनावी वादों को पूरा करने के किसी रोडमैप की उम्मीद कर रहे थे, उन्हें इस बजट में एक भी बड़ा विचार या कोई बड़ी पहल दिखाई नहीं दी. रोजगार सृजन और कृषि को फायदेमंद बनाने जैसे मसले पर चुप्पी हैरत में डालने वाली है.
मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल का पहला बजट काफी अच्छी-अच्छी बातें करता है, लेकिन जब एक बड़ी तस्वीर बनाने की कोशिश करते हैं, तो इसमें काफी दरारें दिखाई देती हैं.
जब तक भूमंडलीकरण की आर्थिक नीतियों में कोई निर्णायक परिवर्तन नहीं होता, भारत विश्वशक्ति बन जाए तो भी, सरकार का सारा बोझ ढोने वाले निचले तबके की यह नियति बनी ही रहने वाली है कि वह तलछट में रहकर विश्वपूंजीवाद के रिसाव से जीवनयापन करे.