अब और नहीं ग़ुलामी: बिहार की मछुआरी महिलाओं का यौन शोषण और जातिवाद के ख़िलाफ़ संघर्ष 

प्रभुत्ववान जातियों द्वारा मछुआरी औरतों का शारीरिक शोषण एक सामान्य घटना थी. भले वे ब्राह्मण हों, यादव या कोई और, पुरुषों की जाति और धन की शक्ति सुनिश्चित करती थी कि शोषित औरतें उत्पीड़न को उजागर न करें.

साहित्य की नागरिकता ऐसी विशाल नागरिकता से घिरी है, जिसे उसके होने का पता ही नहीं

कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: हम जिस हिंदी समाज में लिखते हैं, जिसके बारे में लिखते हैं और जिससे समझ और संवेदना की अपेक्षा करते हैं वह ज़्यादातर पुस्तकों-लेखकों से मुंहफेरे समाज है. उसके लिए साहित्य कोई दर्पण नहीं है जिसमें वह जब-तब अपना चेहरा देखने की ज़हमत उठाए.

स्त्री तेरी आज़ादी: दर्द की अंजुमन जो मिरा देश है

एक स्वतंत्र और ख़ुद को विकसित बताने वाले देश में स्त्रियों का सुरक्षित न महसूस कर पाना हमारे लोकतंत्र और समाज की साझी असफलता है, लेकिन अपराधी को समय से सज़ा न दे पाना उससे भी बड़े ख़ौफ़ और शर्म का सबब है.

क्या सौगात की तरह दी जा रहीं सरकारी योजनाएं नागरिकों के हक़ ख़त्म कर देती हैं?

वीडियो: देश के विमर्श में अब मतदाता शब्द कम प्रचलित है और इसकी जगह 'लाभार्थी' ने ले ली है. क्या यह बदलाव देश के नागरिकों के लिए ख़ुश होने की वजह है या उनके अधिकारों के लिए ख़तरा? पब्लिक पॉलिसी विशेषज्ञ यामिनी अय्यर से बात कर रहे हैं द वायर हिंदी के संपादक आशुतोष भारद्वाज.

संवैधानिक आचरण समूह का होना निष्पक्ष ढंग से असहमत और प्रतिरोधी होने का प्रमाण है

कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: पूर्व सिविल सेवकों के 'संवैधानिक आचरण समूह' ने सांप्रदायिक घृणा, हिंसा, चुनाव और मतदान, मौलिक अधिकारों समेत विभिन्न मुद्दों को लेकर पत्र लिखे हैं. किताब के रूप में उन पत्रों का संचयन इस डराऊ-धमकाऊ समय में निर्भय, जागरूक साहस और असहमति का दस्तावेज़ है.

सवाल सेहत का: विज्ञापन देख आयुर्वेदिक दवाएं लेना हो सकता है ख़तरनाक़

वीडियो: आम तौर पर ऐसा समझा जाता है कि आयुर्वेदिक दवाओं से कोई साइड-इफ़ेक्ट नहीं होता, क्योंकि उनका मानना है कि अगर कोई उत्पाद 'प्राकृतिक' है, तो इसका कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा. लेकिन यह पूरा सच नहीं है. ये दवाएं किसी भी तरह के रेगुलेशन के अभाव में आम लोगों के स्वास्थ्य पर गंभीर दुष्प्रभाव छोड़ रही हैं. सवाल सेहत का की इस कड़ी में इसी बारे में बात की गई है.

मास्टर ऑफ रोस्टर पर जजों और वकीलों ने कहा- सुप्रीम कोर्ट के रिमोट कंट्रोल से चलने की धारणा बनी है

द वायर और लाइव लॉ के सहयोग से कैंपेन फॉर ज्युडिशियल एकाउंटेबिलिटी एंड रिफॉर्म्स द्वारा आयोजित एक सेमिनार में सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस मदन लोकुर ने कहा कि आज की तारीख़ में ऐसी धारणा बन चुकी है कि अगर कोई केस फलां पीठ के समक्ष गया है, तो नतीजा क्या होगा.

बोलने की आज़ादी तब है, जब बिना किसी डर के सरकार की आलोचना की जा सके: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट

मध्य प्रदेश के ग्वालियर चंबल क्षेत्र के लहार निर्वाचन क्षेत्र में चुनावों पर संदेह व्यक्त करने वाले पत्रकार के ख़िलाफ़ दर्ज एफ़आईआर को रद्द करते हुए हाईकोर्ट ने यह टिप्पणी की. अदालत ने कहा कि लोकतंत्र का लक्ष्य बहुलवादी और सहिष्णु समाज बनाना है. इसे सफलतापूर्वक पूरा करने के लिए नागरिकों को स्वतंत्र रूप से बोलने में सक्षम होना चाहिए.

हम अधकचरी परंपरा और अधकचरी आधुनिकता के बीच फंसा भारत होते जा रहे हैं

कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: नेहरू युग में संस्कृति और राजनीति, सारे तनावों और मोहभंग के बावजूद, सहचर थे जबकि आज संस्कृति को राजनीति रौंदने, अपदस्थ करने में व्यस्त है. बहुलता, असहमति आदि के बारे में सांस्कृतिक निरक्षरता का प्रसार हो रहा है. व्यंग्य-विनोद-कटूक्ति-कॉमेडी पर लगातार आपत्ति की जा रही है.

सवाल सेहत का: भारत में मर्ज़ का क़र्ज़

वीडियो: भारत की स्वास्थ्य सेवा व्यवस्था पर द वायर ने नई श्रृंखला शुरू की है. पहले एपिसोड में भारत में किन बीमारियों का बोझ सर्वाधिक है और उनसे कैसे निपटा जा सकता है, इस बारे में एम्स, दिल्ली के डॉ. आनंद कृष्णन और द वायर की हेल्थ रिपोर्टर बनजोत कौर से बात कर रही हैं आरफ़ा ख़ानम शेरवानी.

नई सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक संभावनाओं की तलाश करती है ‘बॉडी ऑन द बैरिकेड्स’

पुस्तक समीक्षा: जेएनयू प्रोफेसर ब्रह्म प्रकाश की किताब 'बॉडी ऑन द बैरिकेड्स- लाइफ, आर्ट एंड रेसिस्टेंस इन कंटेंपररी इंडिया’ पन्ना-दर-पन्ना समझाती है कि फासीवाद के इस दौर में कभी भूमि सुधार की मांग करने वाले लोग अब राज्य द्वारा उनके घरों पर बुलडोजर चलाने के आपराधिक कृत्य का विरोध तक नहीं कर पा रहे हैं.

यूनिवर्सिटी की दहलीज़ पर ‘विश्वगुरु’ के जासूस

क्या बुद्धिजीवी वर्ग को पालतू बनाए रखने की सरकार की कोशिश या विश्वविद्यालयों में इंटेलिजेंस ब्यूरो को भेजने की उनकी हिमाक़त उसकी बढ़ती बदहवासी का सबूत है, या उसे यह एहसास हो गया है कि भारत एक व्यापक जनांदोलन की दहलीज़ पर बैठा है.

अयोध्या के लोगों को ‘त्रेता की वापसी’ की अभी और कितनी बड़ी क़ीमत चुकानी होगी?

अयोध्या का रंग-रूप बदलकर ‘त्रेता की वापसी’ करा देने के लिए वहां चल रही व्यापक तोड़-फोड़ की आपाधापी और अनियोजित कवायदों से ध्वस्त हुई नागरिक व्यवस्थाओं के चलते कई लोग जान गंवा चुके हैं.

केंद्र सरकार के मंत्रालयों और विभागों में 9.6 लाख से अधिक पद ख़ाली

सरकार ने लोकसभा में एक सवाल के जवाब में कहा है कि केंद्र सरकार के मंत्रालयों और विभागों में 1 मार्च 2023 तक 9,64,359 पद ख़ाली थे. तृणमूल कांग्रेस की सांसद माला रॉय और भारत राष्ट्र समिति के सांसद नामा नागेश्वर राव ने इस संबंध में सवाल पूछा था.

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